Delhi Violence: हिंसा पर BJP रक्षात्मक नहीं आक्रामक आएगी नजर, संसद में विपक्ष को सांप्रदायिक तनाव के लिए ठहराएगी जिम्मेदार
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 2, 2020 08:05 AM2020-03-02T08:05:44+5:302020-03-02T08:05:44+5:30
अपने आलोचकों, राजनीतिक विरोधियों और सिविल सोसाइटी की ओर से 'सांप्रदायिकता',सीएए, एनपीआर और एनआरसी को लेकर लगातार हमलों का शिकार हो रही भगवा पार्टी, दिल्ली के दंगों को रोक पाने में विफलता के लिए जरा भी शर्मसार नहीं है.
वेंकटेश केसरी की रिपोर्ट
40 से ज्यादा लोगों की जान लेने वाले दिल्ली के दंगों को लेकर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने रक्षात्मक रुख नहीं अपनाया है बल्कि वह इसे लेकर संसद और उसके बाहर उस पर होने वाले विपक्षी हमलों का आक्रामक तरीके से सामना करने की तैयारी में है. वह देश की राजधानी में सांप्रदायिक हिंसा-तनाव के लिए विपक्ष को ही जिम्मेदार ठहराएगी.
भाजपा की यह रणनीति सोमवार से पुन: शुरू हो रहे संसद के सत्र की पूर्व संध्या पर ही स्पष्ट हो गई है. अपने आलोचकों, राजनीतिक विरोधियों और सिविल सोसाइटी की ओर से 'सांप्रदायिकता',सीएए, एनपीआर और एनआरसी को लेकर लगातार हमलों का शिकार हो रही भगवा पार्टी, दिल्ली के दंगों को रोक पाने में विफलता के लिए जरा भी शर्मसार नहीं है. वह भी ऐसे समय में जब उसके अपने गठबंधन सहयोगी और मित्र दल, राष्ट्रीय राजधानी में कानून और व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेवार गृह मंत्री अमित शाह का बचाव करने के लिए आगे नहीं आए हैं.
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने मोदी सरकार को उसका 'राजधर्मं' याद दिलाते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल से अमित शाह के इस्तीफे की मांग की है, लेकिन सत्तारूढ़ दल को भरोसा है कि विपक्ष इस मामले में विभाजित है. मीडिया के एक हिस्से में छपी खबरों में अमित शाह के हवाले से कहा गया कि 'विपक्षी दल गलत जानकारी दे रहे हैं कि सीएए की वजह से मुस्लिम अपनी भारतीय नागरिकता खो देंगे. वे लोगों को उकसा रहे हैं और दंगे भड़का रहे हैं.
उन्होंने कहा 'मै देश की जनता से कहना चाहता हूं कि ये विपक्ष के लोग सीएए को लेकर भ्रांति फैला रहे हैं ,लोगों को उकसा रहे हैं, दंगे करा रहे हैं. संदेश तीखा और स्पष्ट है. अमित शाह इस्तीफा नहीं देंगे, बल्कि वह सीएए पर लोगों को गुमराह करने के लिए कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, वाम दलों को दोषी ठहराएंगे.
विपक्ष अगर लोकसभा में कामरोको प्रस्ताव लाकर दिल्ली के दंगों पर चर्चा करवाने का प्रयास करेगा तो सरकार इसका विरोध करेगी. ऐसी उम्मीद थी कि कांग्रेस, मोदी सरकार के खिलाफ उसके विरोधी दलों के साथ मिलकर साझा रणनीति बनाएगी लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी और टीआरएस , कांग्रेस के साथ सहज नहीं हैं, मायावती की अगुवाई वाली बसपा ने राजस्थान में अपने विधायकों को तोड़ने के बाद कांग्रेस से किनारा कर लिया तो समाजवादी पार्टी की भी कुछ आपत्तियां हैं. सिर्फ एनसीपी, डीएमके, आरजेडी और कुछ हद तक शिवसेना और कुछ क्षेत्रीय दल ही संसद के अंदर कांग्रेस के साथ मिलकर काम कर सकते हैं.