आठ राज्यों में विधानसभा में उपाध्यक्ष पद खाली? झारखंड में 20 वर्षों से अधिक समय से कोई उपाध्यक्ष नहीं, देखिए राज्यों की सूची
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 18, 2025 07:46 IST2025-05-18T05:12:49+5:302025-05-18T07:46:13+5:30
विचारक संस्था ने रिपोर्ट में कहा कि आठ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं में अप्रैल 2025 तक उपाध्यक्ष का पद रिक्त था।

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नई दिल्लीः लोकसभा में उपाध्यक्ष की अनुपस्थिति पर चल रही बहस के बीच, एक विचारक संस्था द्वारा संकलित आंकड़ों से पता चलता है कि आठ राज्य विधानसभाओं में भी यह पद रिक्त है, जबकि झारखंड में 20 वर्षों से अधिक समय से कोई उपाध्यक्ष नहीं चुना गया है। ‘पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च’ द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्ष राज्य विधानसभाओं की बैठकें औसतन 20 दिन चलीं। इन विधानसभाओं की बैठकों का औसतन समय 100 घंटे था। राज्य कानूनों की वार्षिक समीक्षा, 2024 रिपोर्ट के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 178 के अनुसार राज्य विधानसभाओं को यथाशीघ्र अपने दो सदस्यों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुनना होगा। विचारक संस्था ने रिपोर्ट में कहा कि आठ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं में अप्रैल 2025 तक उपाध्यक्ष का पद रिक्त था।
विधानसभा में उपाध्यक्ष पद खालीः
1. झारखंड
2. उत्तर प्रदेश
3. छत्तीसगढ़
4. जम्मू - कश्मीर
5. मध्य प्रदेश
6. राजस्थान
7. तेलंगाना
8. उत्तराखंड।
इस सूची में झारखंड भी शामिल है, जहां 20 साल से अधिक समय से विधानसभा उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं हुआ है। पिछली उत्तर प्रदेश विधानसभा ने अपने अंतिम सत्र में उपाध्यक्ष का चुनाव किया था वहीं वर्तमान विधानसभा, जिसका कार्यकाल तीन वर्ष हो चुका है, अभी तक उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं कर सकी है।
रिपोर्ट के मुताबिक, “संविधान में उपाध्यक्ष को कुछ प्रमुख कार्य सौंपे गए हैं। वह अध्यक्ष के निधन या त्यागपत्र के कारण पद के रिक्त होने की स्थिति में अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है। वह अध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस भी प्राप्त करता है तथा उस प्रस्ताव पर चर्चा की अध्यक्षता भी करता है।”
अन्य राज्य विधानसभाएं जिनमें उपाध्यक्ष नहीं हैं, उनमें छत्तीसगढ़, जम्मू - कश्मीर, मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और उत्तराखंड शामिल हैं। लोकसभा में जून 2019 से कोई उपाध्यक्ष नहीं हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में राज्य विधानसभाओं की बैठक औसतन 20 दिन हुयी। ओडिशा विधानसभा में सबसे अधिक 42 दिन बैठक हुई, उसके बाद केरल (38) और पश्चिम बंगाल (36) का स्थान रहा।
मणिपुर में, जहां फरवरी में राष्ट्रपति शासन स्थापित किया गया था, विधानसभा 14 दिन चली थी। नगालैंड विधानसभा छह दिन, सिक्किम विधानसभा आठ दिन और अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड की विधानसभाएं 10-10 दिन चलीं। बड़े राज्यों में, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की विधानसभाएं 16-16 दिन चलीं।
रिपोर्ट के अनुसार, “संविधान में विधानमंडलों को छह महीने में कम से कम एक बार बैठक करने का आदेश दिया गया है। ग्यारह राज्यों ने एक या दो दिन तक चले छोटे सत्रों के माध्यम से इस अनिर्वायता को पूरा किया।”