नई दिल्लीः राष्ट्रीय राजधानी के कई इलाकों में घना कोहरा छाया हुआ है। राष्ट्रीय राजधानी में स्मॉग की मोटी परत छाई हुई है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के अनुसार यहां AQI 'गंभीर' कैटेगरी में रखा गया है। द्वारका सेक्टर-14 में AQI 469 है, जिसे 'गंभीर' कैटेगरी में रखा गया है। राष्ट्रीय राजधानी में मौसम का सबसे उच्च वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) दर्ज किया गया और यह एक दिन पहले के 432 से बढ़कर 461 हो गया। वायु गुणवत्ता "गंभीर" श्रेणी में बनी रही। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यह जानकारी दी है।
दिल्ली में सोमवार को धुंध छाई रही और वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 498 रहा जो ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है। दिल्ली के 38 निगरानी केंद्रों पर वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ श्रेणी में दर्ज की गई ,जबकि दो केंद्रों पर यह ‘बेहद खराब’ श्रेणी में दर्ज की गई। जहांगीरपुरी में एक्यूआई 498 दर्ज किया गया, जहां सभी 40 केंद्रों में से सबसे खराब वायु गुणवत्ता दर्ज की गई।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मानकों के अनुसार, एक्यूआई शून्य से 50 के बीच ‘अच्छा’, 51 से 100 ‘संतोषजनक’, 101 से 200 ‘मध्यम’, 201 से 300 ‘खराब’, 301 से 400 ‘बेहद खराब’ और 401 से 500 ‘गंभीर’ माना जाता है। दिल्ली में रविवार को वायु गुणवत्ता सूचकांक 461 तक पहुंच गया, जो इस सर्दी में राष्ट्रीय राजधानी का सबसे प्रदूषित दिन था और दिसंबर का दूसरा सबसे खराब वायु गुणवत्ता वाला दिन रहा। कमजोर हवाओं और कम तापमान के कारण प्रदूषक कण सतह के करीब ही रहे।
वजीरपुर स्थित वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्र ने दिन के दौरान अधिकतम एक्यूआई 500 दर्ज किया।सीपीसीबी, एक्यूआई के 500 के पार हो जाने के बाद डेटा दर्ज नहीं करता है। वायु गुणवत्ता पूर्व चेतावनी प्रणाली (एक्यूईडब्ल्यूएस) के अनुसार, दिल्ली की वायु गुणवत्ता ‘गंभीर' श्रेणी में रहने की आशंका है और अगले छह दिनों के लिए भी वायु गुणवत्ता ‘बेहद खराब’ श्रेणी में रहने की आशंका है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने कहा कि वर्तमान में हवा की औसत गति 10 किलोमीटर प्रति घंटे से कम है, जो प्रदूषक कणों के बिखराव के लिए प्रतिकूल है। मौसम विभाग के अनुसार, दिन में अधिकतम तापमान लगभग 25 डिग्री सेल्सियस रहने की संभावना है।
वायु प्रदूषण विरोधी कानून पर पुनर्विचार और एनजीटी को नयी जिंदगी देने की जरूरत: कांग्रेस
कांग्रेस ने दिल्ली और कई अन्य शहरों में वायु प्रदूषण की स्थिति पर चिंता जताते हुए सोमवार को कहा कि सिर्फ सर्दियों के कुछ महीनों के बजाय पूरे साल ठोस कदम उठाने की जरूरत है तथा 1981 के वायु प्रदूषण विरोधी कानून पर भी पुनर्विचार किया जाना चाहिए। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को फिर से नयी जिंदगी देने की जरूरत है।
क्योंकि इसे पिछले कुछ वर्षों में कमजोर कर दिया गया है। रमेश ने एक बयान में कहा, ‘‘नौ दिसंबर, 2025 को मोदी सरकार द्वारा राज्यसभा में घोषणा की गई कि ‘देश में ऐसा कोई पक्का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि मृत्यु या बीमारी का सीधा संबंध केवल वायु प्रदूषण से है।’ यह दूसरी बार है जब सरकार ने चौंकाने वाली असंवेदनशीलता दिखाते हुए वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु या बीमारी में योगदान को नकारा है।’’ उन्होंने कहा कि इससे पहले भी 29 जुलाई 2024 को राज्यसभा में सरकार ने यही दावा किया था।
रमेश के अनुसार, सबसे हालिया सार्वजनिक रूप से उपलब्ध वैज्ञानिक प्रमाण कई तथ्य उजागर करते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘जुलाई, 2024 की शुरुआत में प्रतिष्ठित 'लांसेट' जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला कि भारत में होने वाली कुल मौतों में से 7.2 प्रतिशत मौतें वायु प्रदूषण से जुड़ी हैं। इस अध्ययन के मुताबिक, सिर्फ 10 शहरों में ही हर साल लगभग 34,000 मौतें वायु प्रदूषण से संबंधित हैं।’’
उन्होंने कुछ अन्य अध्ययनों का भी हवाला दिया और कहा कि ‘नेशनल एम्बिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स’ को आख़िरी बार नवंबर 2009 में व्यापक सलाह-मशविरे के बाद जारी किया गया था। उस समय इन्हें प्रोग्रेसिव माना गया था लेकिन आज इन्हें उन्नत करने की ज़रूरत है और उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है कि इन्हें सख़्ती से लागू किया जाए।
रमेश ने कहा, ‘‘फिलहाल पीएम2.5 के लिए जो मानक तय हैं, वे विश्व स्वास्थ्य संगठन के वार्षिक सुरक्षित दिशानिर्देशों से आठ गुना गुना अधिक हैं। 2017 में ‘नेशनल क्लियर एयर प्रोग्राम’ शुरू होने के बावजूद पीएम 2.5 का स्तर लगातार बढ़ता गया है और देश का हर नागरिक ऐसे इलाक़ों में रह रहा है जहां यह स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों से कहीं ज़्यादा हैं।’’
उनके मुताबिक, चरणबद्ध प्रतिक्रिया कार्य योजना (ग्रैप) साफ़ हवा के लिए जरूरी कदमों का मुख्य केंद्रबिंदु नहीं रह सकते। उनका कहना है कि ये योजनाएं मूलतः प्रतिक्रियात्मक हैं और आपात स्थितियों के जवाब में हैं। कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘हमें पूरे साल सिर्फ़ सर्दियों के अक्टूबर-दिसंबर महीनों में ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर और तेज़ी से कई क्षेत्रों में कड़े कदम उठाने की ज़रूरत है।
वायु प्रदूषण (नियंत्रण और निवारण) अधिनियम, 1981, जो पिछले चार दशकों से अधिक समय तक पर्याप्त माना जाता रहा है, अब उसपर पुनर्विचार करने की जरूरत है क्योंकि उस कानून को बनाने के पीछे का कारण स्वास्थ्य आपात स्थिति नहीं था।’’ रमेश ने कहा कि संसद के अधिनियम के तहत अक्टूबर 2010 में सभी राजनीतिक दलों के समर्थन से स्थापित राष्ट्रीय हरित अधिकरण को पिछले एक दशक में कमज़ोर कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि इसे एक नयी ज़िंदगी की ज़रूरत है।
रमेश ने जोर देकर कहा, ‘‘इसके अलावा बिजली संयंत्रों के लिए उत्सर्जन मानकों में ढील और क़ानूनों व नियमों में किए गए अन्य बदलावों को वापस लिया जाना चाहिए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘भारत खुशहाली के लिए प्रदूषण फैलाने का जोखिम नहीं उठा सकता। देश के लोगों को तेज़ विकास के नाम पर ज़्यादा प्रदूषण की कीमत चुकाने की ज़रूरत नहीं है और न ही चुकानी चाहिए।’’