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दिल्ली उच्च न्यायालय ने ईओडब्ल्यू के मामले में शिविंदर सिंह जमानत रद्द की

By भाषा | Updated: June 14, 2021 14:53 IST

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नयी दिल्ली, 14 जून दिल्ली उच्च न्यायालय ने रेलीगेर फिनवेस्ट लिमिटिड (आरएफएल) के धन के गबन के मामले में शिविंदर मोहन सिंह की जमानत सोमवार को खारिज करते हुए कहा कि उसके द्वारा रची गई साजिश और गबन किए गए पैसे का पता लगाने के लिए उसे हिरासत में रखना जरूरी है।

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत ने आरएफएल की एक याचिका पर यह फैसला दिया। इस याचिका में शिवंदर मोहन सिंह को जमानत देने के निचली अदालत के तीन मार्च के निचली अदालत आदेश को चुनौती दी गई थी। आर्थिक अपराध इकाई (ईओडब्ल्यू) ने सिंह के खिलाफ धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश और आपराधिक विश्वासघात का मामला दर्ज किया है।

आरएफएल की याचिका को स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि मौजूदा मामले में, “ प्रतिवादी संख्या दो (शिविंदर) के खिलाफ आरोपों की प्रकृति और गंभीरता संगीन है।”

न्यायमूर्ति कैत ने निचली अदालत से शिविंदर को मिली जमानत को खारिज करते हुए 29 पन्नों के फैसले में कहा कि धोखाधाड़ी, एक एजेंट द्वारा इतने पैसे के हितों के आपराधिक उल्लंघन के मामले में जमानत देना, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों पर प्रभाव पड़ता हो, उससे न सिर्फ मामले की प्रगति प्रभावित होती है बल्कि आपराधिक न्याय प्रणाली पर भी असर पड़ता है।

उन्होंने कहा, “ मौजूदा मामले के तथ्यों और विभिन्न फैसलों में उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए, मुझे यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि जिस आदेश को चुनौती दी गई है, उसमें गंभीर कमियां हैं जिस वजह से अन्याय हुआ।”

न्यायमूर्ति कैत ने कहा, “ इससे भी ज्यादा इस प्राथमिकी में प्रतिवादी संख्या दो (सिंह) को हिरासत में रखना न सिर्फ उसके द्वारा रची गई साजिश का पता लगाने के लिए जरूरी है, बल्कि गबन किए गए पैसे का पता लगाने के लिए भी आवश्यक है जो उसने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए जमा कराए।”

आरएफएल के अधिकृत प्रतिनिधि मनप्रीत सूरी ने शिविंदर, रेलीगेर एंटरप्राइजेस लिमिटिड (आरईएल) के पूर्व सीएमडी सुनील गोधवानी और आरईएल के पूर्व सीईओ कवि अरोड़ा एवं अन्य के खिलाफ दिल्ली पुलिस को शिकायत की और आरोप लगाया कि जब वे कंपनी का प्रबंधन संभाल रहे थे तब कर्ज लिया गया था जिसका निवेश अन्य कंपनियों में किया गया। इसके बाद दिल्ली पुलिस की ईओडब्ल्यू ने मार्च 2019 में प्राथमिकी दर्ज की।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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