दिल्ली: चार सरकारी अस्पतालों में कम से कम 120 डॉक्टर कोविड पॉजिटिव, एम्स में सर्दी की छुट्टियां रद्द
By विशाल कुमार | Published: January 5, 2022 09:23 AM2022-01-05T09:23:21+5:302022-01-05T09:33:04+5:30
नीट-पीजी काउंसलिंग में देरी के कारण जहां पहले से ही सभी सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की संख्या पहले से ही कम है तो वहीं उनके इतनी बड़ी संख्या में कोविड-19 पॉजिटिव होने से यह समस्या बढ़ गई है।
नई दिल्ली: देशभर में कोविड-19 के बढ़ते मामलों के साथ ही राजधानी दिल्ली के चार बड़े सरकारी अस्पतालों के कम से कम 120 डॉक्टर पॉजिटिव पाए गए हैं और सभी क्वारंटीन हैं।
नीट-पीजी काउंसलिंग में देरी के कारण जहां पहले से ही सभी सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की संख्या पहले से ही कम है तो वहीं उनके इतनी बड़ी संख्या में कोविड-19 पॉजिटिव होने से यह समस्या बढ़ गई है।
पिछले कुछ दिनों में कोविड-19 पॉजिटिव होने वालों में एम्स के करीब 50 डॉक्टर, सफदरजंग के भी 50 डॉक्टर, राम मनोहर लोहिया के 15 डॉक्टर और हिंदू राव अस्पताल के 20 डॉक्टर शामिल हैं। अगर अन्य अस्पतालों को शामिल किया जाए तो यह संख्या कहीं अधिक हो सकती है।
एम्स में डॉक्टरों सहित कुल 65 कर्मचारी कोविड के कारण आइसोलेशन में हैं और यही कारण है कि 10 जनवरी से शुरू होने वाली सर्दी की छुट्टियों को रद्द कर दिया गया है। सफदरजंग, एम्स, आरएमएल और हिंदू राव सभी विशेष कोविड अस्पताल हैं।
मंगलवार को स्वास्थ्य विभाग ने निजी अस्पताल और नर्सिंग होम को आदेश जारी करते हुए कहा है कि वार्ड और आईसीयू दोनों में ही 40 फीसदी बिस्तरों को कोरोना मरीजों के लिए तत्काल आरक्षित किया जाए। यह आदेश 50 या फिर उससे अधिक बिस्तर की क्षमता रखने वाले सभी प्राइवेट अस्पताल व नर्सिंग होम में लागू होगा। राजधानी में इनकी संख्या करीब 170 से अधिक है।
बता दें कि, राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) पीजी काउंसिलिंग में देरी को लेकर दो हफ्तों से प्रदर्शन कर रहे दिल्ली के रेजीडेंट डॉक्टरों ने सरकार के इस आश्वासन के बाद शुक्रवार को अपनी हड़ताल वापस ले ली थी कि उनकी मांगों पर विचार किया जाएगा।
प्रदर्शन के दौरान रेजीडेंट डॉक्टरों ने सभी सेवाओं का बहिष्कार कर दिया था जिससे दिल्ली के कई प्रमुख अस्पतालों में मरीज देखभाल सेवाएं प्रभावित रही थीं।
तीन केंद्र संचालित अस्पतालों, सफदरजंग अस्पताल, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, आरएमएल अस्पताल और मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज और उससे जुड़े अस्पतालों और दिल्ली सरकार द्वारा संचालित कई अन्य अस्पतालों के रेजीडेंट डॉक्टरों ने यहां आंदोलन में हिस्सा लिया था।