सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (04 नवंबर) को दिल्ली-एनसीआर में फैले वायु प्रदूषण को गंभीरता से लिया है। शीर्ष अदालत ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों को तलब किया है। प्रदूषण को लेकर उसका कहना है कि यह जीवन के मौलिक अधिकार का घोर उल्लंघन है। विभिन्न राज्य सरकारें और नगर निकाय अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह विशेषज्ञों की मदद से कदम उठाए। कोर्ट ने निर्देश दिया कि दिल्ली-एनसीआर में निर्माण कार्य पर लगे प्रतिबंध का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों पर 1 लाख रुपये और कचरा जलाने वालों पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। कोर्ट ने नगर निकायों को कचरे के खुली डंपिंग को रोकने का भी निर्देश दिया है। वहीं, मामले में सुनवाई की अगली तारीख 6 नवंबर तय की है।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली जलाये जाने की घटनाओं को भी गंभीरता से लिया और कहा कि हर साल निरंकुश तरीके से ऐसा नहीं हो सकता। पीठ ने स्थिति की गंभीरता पर चिंता व्यक्त की और सवाल किया, ‘‘क्या इस वातावरण में हम जीवित रह सकते हैं? यह तरीका नहीं है जिसमें हम जीवित रह सकते हैं।’’
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘दिल्ली का हर साल दम घुट रहा है और हम इस मामले में कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। सवाल यह है कि हर साल ऐसा हो रहा है। किसी भी सभ्य समाज में ऐसा नहीं हो सकता।’’
वायु प्रदूषण के मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रही वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि केन्द्र के हलफनामे के अनुसार पंजाब में पराली जलाने के मामले में सात फीसदी का इजाफा हुआ है जबकि हरियाणा में इसमें 17 प्रतिशत कमी हुयी है।
पीठ ने दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण को भयानक बताया और कहा कि अपने घरों के भीतर भी कोई सुरक्षित नहीं है। न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकारें लोगों को सलाह दे रही हैं कि प्रदूषण की गंभीर स्थिति को देखते हुये वे दिल्ली नहीं आयें। न्यायालय ने कहा कि इस स्थिति को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा और इसके लिये सरकारों की जिम्मेदारी तय की जायेगी। (समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के आधार पर)