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अयोध्या मामले में देवता स्पष्ट विजेता बन कर उभरे क्योंकि न्यायालय ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया

By भाषा | Updated: November 9, 2019 23:14 IST

इस संबंध में 1989 में देवता की ओर से मुकदमा दायर किया गया था जो वाद मित्र के जरिये दायर किया गया था। इसमें यह घोषित करने की मांग की गयी थी कि ‘‘श्री राम जन्मभूमि का पूरा परिसर’’ नये मंदिर के हक में दिया जाए और उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ सेंट्रल बोर्ड सहित अन्य पक्षों को इसमें बाधा डालने से रोका जाए।

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ठळक मुद्देअवकाश के दिन पहली बार फैसला देने वाली प्रधान न्ययाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि देवता का मुकदमा परिसीमा अवधि के भीतर था और मालिकाना हक उनके पक्ष में मंजूर किया।प्रधान न्यायाधीश के अलावा न्यामूर्ति एस ए बोबड़े, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी इस पीठ में शामिल थे।

राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में उच्चतम न्यायालय का फैसला शनिवार को मंदिर निर्माण के हक में आया और अदालत ने अयोध्या के विवादित 2.77 एकड़ जमीन मंदिर ट्रस्ट को स्थानांतरित करने के आदेश देने के साथ ही इस मामले में ‘‘भगवान श्री राम लला विराजमान’’ देवता असली विजेता के रूप में उभरे हैं।

इस संबंध में 1989 में देवता की ओर से मुकदमा दायर किया गया था जो वाद मित्र के जरिये दायर किया गया था। इसमें यह घोषित करने की मांग की गयी थी कि ‘‘श्री राम जन्मभूमि का पूरा परिसर’’ नये मंदिर के हक में दिया जाए और उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ सेंट्रल बोर्ड सहित अन्य पक्षों को इसमें बाधा डालने से रोका जाए।

अवकाश के दिन पहली बार फैसला देने वाली प्रधान न्ययाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि देवता का मुकदमा परिसीमा अवधि के भीतर था और मालिकाना हक उनके पक्ष में मंजूर किया।

संविधान पीठ, हालांकि, पूर्व अटॉर्नी जनरल के परासरन और वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन के तर्क से सहमत नहीं था कि देवता के अलावा, जन्म स्थान भी न्यायिक व्यक्ति है तो जो मुकदमा दायर करने में सक्षम है।

प्रधान न्यायाधीश के अलावा न्यामूर्ति एस ए बोबड़े, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी इस पीठ में शामिल थे।

पीठ ने कहा, ‘‘मुकदमा संख्या पांच (जिसमें देवता पहले वादी और जन्मस्थान दूसरा वादी है) पहले वादी (राम लला) की ओर से दायर वाद विचारयोग्य है और इसका प्रतिनिधित्व तीसरा वादी (राम लला के मित्र के रूप में वाद दायर करने वाले) करता है ।’’

उच्चतम न्यायालय ने सर्व सम्मति से दिये गए 1045 पृष्ठों के अपने फैसले में कहा, ‘‘केंद्र सरकार इस फैसले की तारीख से तीन महीने के भीतर अयोध्या अधिनियम 1993 के तहत योजना तैयार करे ।’’

फैसले में कहा गया है कि केंद्र सरकार निदेशकमंडल के साथ एक न्यास स्थापित करने के बारे में योजना की परिकल्पना करेगी। इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार न्यास के प्रबंधन, न्यासियों को प्रदत्त शक्तियां एवं राम मंदिर निर्माण समेत इसके कार्यान्वयन एवं संचालन के लिए भी जरूरी प्रावधान करेगी।

देवता के मुकदमे की चुनौतियों को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि बाहरी और भीतरी बरामदे का अधिकार न्यास अथवा गठित किये जाने वाले निकाय को सौंपा जाए।

मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करते हुए अदालत ने कहा कि विवादित 2.77 एकड़ भूमि के अलावा 1993 में अधिग्रहित 68 एकड़ जमीन न्यास को देने के कानूनी प्रावधान में बदलाव करने की केंद्र को आजादी होगी। इसमें कहा गया है कि यह जमीन न्यास को सौंपे जाने तक विवादित भूमि सरकारी रिसीवर के पास बनी रहेगी।

शीर्ष अदालत ने केंद्र अथवा राज्य सरकार को अयोध्या में मस्जिद निर्माण के लिए उचित स्थान पर सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ भूखंड उपलब्ध कराने का आदेश दिया। देवता की तरफ से उनके मित्र के रूप में देवकी नंदन अग्रवाल द्वारा दायर मुकदमे में सुन्नी वक्फ बोर्ड सहित 27 लोगों को पक्षकार बनाया गया था।

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