नई दिल्ली, 1 अप्रैल: सोमवार (2 अप्रैल) को कई दलित संगठनों ने भारत बंद का ऐलान किया है। जगह-जगह संगठनों ने भारत बंद को सफल बनाने के लिए लोगों से इसमें शामिल होने का आह्वान किया है। पंजाब के भी कई संगठनों ने इस बंद में शामिल होने फैसला लिया है। जिसे देखते हुए पंजाब सरकार ने सार्वजनिक परिवहन सेवा के साथ ही, सारे शैक्षिक संस्थान और मोबाइल सेवा बंद करने का फैसला लिया है। मुख्य सचिव करण ए सिंह ने रक्षा विभाग को चिट्ठी लिखी है कि अगर बंद के दौरान हालात बिगड़ने पर पंजाब सरकार को सेना की मदद की जरूरत हो तो वो तैयार रहें।
दलित संगठन क्यों कर रहे हैं भारत बंद
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक देश भर में ससी-एसटी एक्ट के तहत साल 2016 में कुल 11060 ऐसे केस दर्ज हुए थे। जांच के दौरान इनमें से 935 मामले पूरी तरह से गलत पाए गए। जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी। उस याचिका पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट में एक्ट के तहत तुरंत होने वाली गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने नियमों में सुधार किया है। जिसके तहत किसी के खिलाफ शिकायत मिलने पर उसे तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। इसके बाद पुलिस का कोई वरिष्ठ अधिकारी पहले मामले की जांच करेगा। जिस पर मामला दर्ज कराया गया है, अगर वो पहली नजर में दोषी पाया गया तब जाकर उसकी गिरफ्तारी होगी।
क्या है एससी-एसटी एक्ट
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम 1989 को 11 सितम्बर 1989 को संसद में पारित किया गया था। 30 जनवरी 1990 को इस कानून को जम्मू-कश्मीर छोड़ पूरे देश में लागू किया गया। एक्ट के मुताबिक कोई भी ऐसा व्यक्ति जो कि एससी-एसटी से संबंध नहीं रखता हो, अगर अनुसूचित जाति या जनजाति को किसी भी तरह से प्रताड़ित करता है तो उस पर कार्रवाई होगी। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 के तहत आरोप लगने वाले व्यक्ति को तुरंत गिरफ्तार किया जाएगा। जुर्म साबित होने पर आरोपी को एससी-एसटी एक्ट के अलावा आईपीसी की धारा के तहत भी सजा मिलती है। आईपीसी की सजा के अलावा एससी-एसटी एक्ट में अलग से छह महीने से लेकर उम्रकैद तक की सजा के साथ जुर्माने की व्यवस्था भी है। अगर अपराध किसी सरकारी अधिकारी ने किया है, तो आईपीसी के अलावा उसे इस कानून के तहत 6 महीने से लेकर एक साल की सजा होती है।