ओडिशा में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अपराध आठ प्रतिशत बढ़े
By भाषा | Updated: September 18, 2021 12:19 IST2021-09-18T12:19:20+5:302021-09-18T12:19:20+5:30

ओडिशा में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अपराध आठ प्रतिशत बढ़े
भुवनेश्वर, 16 सितंबर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, ओडिशा में अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के खिलाफ अपराध में पिछले वर्ष की तुलना में 2020 में आठ प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।
एनसीआरबी ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में बताया कि अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराध की दर प्रति लाख आबादी पर 28.5 है, जो 25 की राष्ट्रीय दर से अधिक है, जबकि एसटी के संदर्भ में यह दर 6.5 है, जबकि देश भर में यह दर 7.9 है।
मंगलवार को प्रकाशित 'क्राइम इन इंडिया 2020' रिपोर्ट में कहा गया कि देश में एससी के खिलाफ अपराधों में 9.4 प्रतिशत और एसटी के खिलाफ अत्याचारों में 9.3 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। ओडिशा में एसटी के खिलाफ अपराधों की संख्या पिछले साल 624 थी, और मामलों के लिहाज से वह देश में चौथे स्थान पर था। पिछले साल इन मामलों में 2019 की तुलना में 8.33 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। ओडिशा में 2020 में एससी के खिलाफ अत्याचार की 2,046 घटनाएं हुईं जो पिछले वर्ष की तुलना में 8.48 प्रतिशत अधिक हैं।
राज्य में 2011 की जनगणना के अनुसार एसटी वर्ग के 95.9 लाख लोग हैं। एसटी वर्ग में राज्य में बलात्कार के 114 मामले दर्ज किए गए और इन अपराधों के लिहाज से वह देश में पांचवें स्थान पर है। ओडिशा में आदिवासी महिलाओं पर गरिमा भंग करने के इरादे से 30 हमले दर्ज किए गए। भारतीय दंड संहिता के तहत एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत हत्या के आठ और हत्या के प्रयास के पांच मामले दर्ज किए गए थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एसटी के खिलाफ अपराधों के लिए 564 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जबकि पुलिस ने 2020 में 575 मामलों में आरोप पत्र दाखिल किया था। अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराधों के लिए कम से कम 1,556 लोगों को गिरफ्तार किया गया और पुलिस ने 2,088 मामलों में आरोप पत्र दायर किए।
अदालतों ने एसटी के खिलाफ अत्याचार के मामलों में आठ लोगों को बरी किया, जबकि इन मामलों में दोषसिद्धि शून्य रही। वर्ष के अंत तक कुल 5,229 मामले लंबित हैं, जिनके लंबित रहने की दर 99.8 प्रतिशत है।
इसके अलावा एससी के खिलाफ अत्याचारों के मामले में दोषसिद्धि की 3.72 दर के साथ केवल पांच लोगों को दोषी ठहराया गया, जबकि 170 आरोपियों को बरी कर दिया गया था। वर्ष के अंत में लंबित मामलों की संख्या 14,323 रही। इन मामलों के लंबित रहने की दर 99.1 प्रतिशत रही।
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