न्यायालय का महाराष्ट्र विधानसभा के अधिकारी को कारण बताओ नोटिस, अर्णब गोस्वामी को गिरफ्तारी से संरक्षण

By भाषा | Published: November 6, 2020 10:26 PM2020-11-06T22:26:51+5:302020-11-06T22:26:51+5:30

Court's show cause notice to Maharashtra Legislative Assembly officer, protection from arrest of Arnab Goswami | न्यायालय का महाराष्ट्र विधानसभा के अधिकारी को कारण बताओ नोटिस, अर्णब गोस्वामी को गिरफ्तारी से संरक्षण

न्यायालय का महाराष्ट्र विधानसभा के अधिकारी को कारण बताओ नोटिस, अर्णब गोस्वामी को गिरफ्तारी से संरक्षण

नयी दिल्ली, छह नवंबर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को महाराष्ट्र विधानसभा के सहायक सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर पूछा है कि पत्रकार अर्णब गोस्वामी को वह पत्र लिखने के कारण क्यों नहीं उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाये जिससे लगता है कि उन्हें कथित विशेषाधिकार हनन के प्रस्ताव के मामले में शीर्ष अदालत जाने की वजह से ‘धमकाया’ गया है।

इस बीच, शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र विधानसभा में लंबित कथित विशेषाधिकार हनन की कार्यवाही के मामले में अर्णब गोस्वामी को गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान कर दिया।

न्यायालय ने विधान सभा के अधिकारी द्वारा 13 अक्टूबर को अर्णब गोस्वामी को भेजे पत्र के बयानों को ‘अभूतपूर्व’ बताया और कहा कि यह न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करने वाला है और निश्चित ही यह ‘बहुत गंभीर’ तथा न्यायालय की अवमानना करना है।

न्यायालय ने कहा कि लगता है कि यह पत्र रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक को कानूनी राहत के लिये संविधान के अनुच्छेद 32 में प्रदत्त मौलिक अधिकार का इस्तेमाल करने के कारण सजा के लिये धमकी देने वाला है।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, जो तीन सदस्यी पीठ की अध्यक्षता कर रहे थे, ने कहा, ‘‘हमें देश में ऐसा कोई प्राधिकारी दिखाई नहीं पड़ता जो किसी को न्यायालय आने के लिये दंडित कर सके। अनुच्छेद 32 किस लिये है? यह अधिकारी ऐसा कैसे कर सकता है? मैंने इस तरह का कभी कोई पत्र नहीं देखा।’’ पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन शामिल थे।

अर्णब गोस्वामी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने महाराष्ट्र विधान सभा के सचिवालय के सचिव के कार्यालय द्वारा 13 अक्टूबर को गोस्वामी को भेजे गये इस पत्र की ओर न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया।

पीठ ने इस तथ्य को नोट किया कि यह पत्र महाराष्ट्र विधान मंडल सचिवालय के सहायक सचिव विलास आठवले द्वारा हस्ताक्षरित है।

न्यायालय ने अपने आदेश में इस पत्र का एक अंश शामिल किया है। इसमें कहा गया है, ‘‘आपको सूचित किया गया था कि सदन की कार्यवाही गोपनीय है....इसके बावजूद, यह पाया गया है कि आपने सदन की कार्यवाही आठ अक्टूबर, 2020 को उच्चतम न्यायालय के सामने पेश की है। इस कार्यवाही को न्यायालय के समक्ष पेश करने से पहले महाराष्ट्र विधान सभा के अध्यक्ष से कोई पूर्व अनुमति नहीं ली गयी। आपने जानबूझ कर महाराष्ट्र विधान सभा के अध्यक्ष के आदेशों का हनन किया है और आपकी कार्रवाई गोपनीयता का हनन है। निश्चित ही यह गंभीर मामला है और अवमानना है।’’ जब प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ को विधान सभा सचिव द्वारा लिखे गये इस पत्र के मजमून से अवगत कराया गया तो पीठ ने इस पर अपनी नाराजगी व्यक्त की।

पीठ ने इस पत्र को बेहद गंभीरता से लिया और टिप्पणी की कि कोई भी व्यक्ति किसी को न्यायालय आने के कारण इस तरह से धमकी नहीं दे सकता है और ‘‘हमारे लिये इसे नजरअंदाज करना मुश्किल है।’’

पीठ ने आदेश में आगे कहा, ‘‘महाराष्ट्र विधान सभा सचिवालय के सहायक सचिव विलास आठवले के उपरोक्त बयान अभूतपूर्व हैं और ये न्याय के प्रशासन की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने वाले हैं। ऐसा लगता है कि इस पत्र के लेखक, महाराष्ट्र विधान सभा सचिवालय के सहायता सचिव, की मंशा याचिकाकर्ता (गोस्वामी) को धमकी देने और दंड देने की है क्योंकि याचिकाकर्ता कानूनी राहत के लिये इस न्यायालय में आया है।’’

इस मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र विधान सभा सचिवालय के सचिव कार्यालय को नोटिस जारी किया था जो इस मामले में प्रतिवादियों में से एक है।

बाद में जब इस मामले का आदेश न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड हुआ तो स्पष्ट हुआ कि 13 अक्टूबर के पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले सहायक सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।

पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र विधान सभा सचिवालय के सचिव के कार्यालय को यह समझने की सलाह दी गयी होगी कि अनुच्छेद 32 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय आने का अधिकार अपने आप में ही मौलिक अधिकार है।

पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर किसी नागरिक को शीर्ष अदालत आने के लिये अनुच्छेद 32 में प्रदत्त अधिकार का इस्तेमाल करने पर डराया जाता है तो यह निश्चित की देश में न्याय के प्रशासन में गंभीर हस्तक्षेप होगा।’’

शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में इस तथ्य का भी उल्लेख किया कि महाराष्ट्र की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने गोस्वामी को लिखे पत्र के विवरण पर जवाब देने के लिये कहा गया लकिन उन्होंने इस मामले में ‘‘स्पष्टीकरण देने या इसे न्यायोचित ठहराने में असमर्थता व्यक्त की क्योंकि यह पत्र विधान सभा सचिवालय के सचिव कार्यालय द्वारा लिखा गया था।

पीठ ने आदेश में कहा, ‘‘इसलिए, हम महाराष्ट्र विधान मंडल सचिवालय के सहायक सचिव विलास आठवले को कारण बताओ नोटिस जारी कर यह पूछ रहे हैं कि संविधान के अनुच्छेद 129 में प्रदत्त शक्ति का इस्तेमाल करते हुये क्यों नहीं उनके खिलाफ न्यायालय की अवमानना के लिये कार्यवाही की जानी चाहिए। नोटिस का जवाब 23 नवंबर, 2020 तक देना है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘ इस बीच,याचिकाकर्ता (गोस्वामी) को इस रिट याचिका से संबंधित वर्तमान कार्यवाही के सिलसिले में गिरफ्तार नहीं किया जायेगा।’’

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वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान साल्वे ने इस पत्र का जिक्र करते हुये कहा कि गोस्वामी को इस मामले में शीर्ष अदालत आने के कारण धमकी दी गयी है। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही गंभीर मामला है और इस मामले में न्यायालय को पत्रकार को संरक्षण प्रदान करना चाहिए।

न्यायालय महाराष्ट्र विधान सभा द्वारा अर्णब गोस्वामी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की कार्यवाही शुरू करने के लिये जारी कारण बताओ नोटिस के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था।

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