अदालत ने कोविड के दौरान ऑक्सीजन की कमी से मौत होने पर मुआवजे के लिए उच्च अधिकार प्राप्त समिति को मंजूरी दी
By भाषा | Updated: September 21, 2021 19:10 IST2021-09-21T19:10:58+5:302021-09-21T19:10:58+5:30

अदालत ने कोविड के दौरान ऑक्सीजन की कमी से मौत होने पर मुआवजे के लिए उच्च अधिकार प्राप्त समिति को मंजूरी दी
नयी दिल्ली, 21 सितंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि उसे कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कथित कमी के कारण हुई मौतों की जांच के लिए आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा उच्च अधिकार प्राप्त स्तरीय जांच समिति (एचपीसी) गठित करने में कोई दिक्कत नहीं दिखती है।
अदालत, समिति गठित करने से संबंधित एक याचिका पर विचार कर रही है। अदालत ने रेखांकित किया दिल्ली सरकार का रुख है कि समिति किसी भी अस्पताल को कोई दोष नहीं देगी और किसी भी मुआवजे का भुगतान किया जाएगा और सरकार अकेले इसे वहन करेगी।
उच्च न्यायालय ने कहा कि दिल्ली सरकार के अनुसार, मुआवजे का निर्धारण करने का मानदंड जांच के लिए खुला होगा और इसका कार्य ऑक्सीजन के आवंटन और उपयोग पर उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित उप-समूह के साथ अतिव्याप्त (ओवरलैप) नहीं करेगा।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा, “ उक्त कथन के मद्देनजर, हमें जीएनसीटीडी (दिल्ली सरकार) द्वारा गठित एचपीसी को उसकी नियत भूमिका निभाने में कोई आपत्ति नहीं देखती है।”
पीठ की यह भी राय है कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार अनुग्रह राशि देने के संबंध में उच्चतम न्यायालय के आदेश का इंतजार करना जरूरी नहीं है।
अदालत ने कहा कि 27 मई को समिति गठित करने के संबंध में दिल्ली सरकार द्वारा जारी आदेश की मंशा कोविड-19 के पीड़ितों को अनुग्रह देने की नहीं है। पीठ ने कहा कि आदेश को पढ़ने से मालूम हो जाएगा कि इसका मकसद ऑक्सीजन की कमी के कारण कोविड से पीड़ित मरीज की मौत के संबंध में समिति को मिली हरेक शिकायत का परीक्षण करना है।
अदालत ने साफ किया कि पीड़ितों के लिए, जो मुआवज़ा इस समय दिया जा रहा है, अगर एनडीएमए उससे अधिक राशि तय करती है तो पीड़ित को बढ़ी हुई रकम दी जाएगी।
अदालत ने इस बात को रिकॉर्ड किया कि समिति गठित करने का फैसला विलंबित किए जाने के बाद दिल्ली सरकार ने इस समिति को बहाल करने की अपनी मंशा जाहिर की लेकिन समिति के अधिकार क्षेत्र को लेकर मंत्रिपरिषद और उपराज्यपाल के मतभेद के चलते गतिरोध जारी है।
सुनवाई के दौरान, पीठ ने कहा कि वह समिति को आगे बढ़ने की अनुमति तभी देंगी जब दिल्ली सरकार यह स्पष्ट करे कि अस्पतालों पर कोई दायित्व तय किए बिना वह (सरकार) मुआवजे का भुगतान करेगी।
अदालत ने सवाल किया, “यहां मामला कानूनी है। क्या आप किसी समिति द्वारा गलती पर आधारित दायित्व का निर्धारण तीसरे पक्ष पर डाल सकत हैं, ऐसा करना सिर्फ वित्तीय जिम्म्दारी ही नहं डालता है बल्कि पेशेवर प्रतिष्ठा को धूमिल करता है।”
उसने कहा, “(अगर) आप कहते हैं कि आप दायित्व तय करेंगे, तो ऐसा करके आप न्यायपालिका और चिकित्सा परिषद के क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। आप यह नहीं कर सकते हैं। ”
दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील राहुल मेहरा और वकील गौतम नारायण ने स्पष्ट किया कि समिति केवल एक " तथ्यान्वेषी समिति" है, जो किसी भी अस्पताल को किसी भी गलती या लापरवाही के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराएगी और मुआवजा सरकार की ओर से दिया जाएगा।
अदालत को बताया गया कि समिति अपने द्वारा तय किए गए मानदंडों के आधार पर पांच लाख रुपये तक के मुआवजे की गणना करेगी जिसे कोई भी पक्ष चुनौती दे सकता है।
उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार द्वारा 50,000 रुपये का मुआवजा दिया जा रहा है।
उपराज्यपाल की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने अदालत से समिति गठित करने को लेकर किसी भी आदेश को टालने का आग्रह किया और अनुरोध किया कि शीर्ष अदालत के आदेश के अनुसार एनडीएमए द्वारा एक समान अनुग्रह राशि देने के संबंध में दिशा-निर्देशों का इंतजार करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा गठित उप-समिति पहले से ही ऑक्सीजन के आवंटन और आपूर्ति और अन्य संबंधित मुद्दों के संबंध में पहलुओं को देख रही है।
इस पर अदालत ने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति ‘स्थूल स्तर’ के मुद्दे देखेगी जबकि दिल्ली सरकार की प्रस्तावित समिति ‘सूक्ष्म स्थिति’ को देखेगी।
मौजूदा मामले में याची रिति सिंह वर्मा ने न सिर्फ दिल्ली सरकार को समिति शुरू करने का निर्देश देने का आग्रह किया है, बल्कि मुआवजे के लिए उनके मामले को समिति को भेजने की भी गुजारिश की है। उनके पति की एक निजी अस्पताल में कोरोना वायरस के संक्रमण के इलाज के दौरान 14 मई को दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी।
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