कोरोना लॉकडाउन संकट: मांग कर जीवन बिताने वाले किन्नरों को नहीं मिल रहा भोजन-दवाई, सरकारी मदद से भी दूर

By भाषा | Updated: April 21, 2020 14:31 IST2020-04-21T14:29:47+5:302020-04-21T14:31:39+5:30

ट्रांसजेंडर के कल्याण के लिए काम करने वाले संगठनों के मुताबिक भारत में किन्नरों की आबादी 4.88 लाख है और समुदाय के ज्यादातर सदस्य ट्रैफिक सिग्नलों और ट्रेनों में मांगकर, शादियों में नाच कर और यौन कर्म के जरिए अपना जीवन यापन करते हैं।

coronavirus lockdown in india transgenders struggle as COVID-19 lockdown | कोरोना लॉकडाउन संकट: मांग कर जीवन बिताने वाले किन्नरों को नहीं मिल रहा भोजन-दवाई, सरकारी मदद से भी दूर

लोकमत फाइल फोटो

Highlightsसरकार ने किन्नरों की सहायता के लिए 1500 रुपये देने का ऐलान किया है, पहचान पत्र ना होने की वजह से उसमें दिक्कत आ रही हैकिन्नर समुदाय के अधिकतर सदस्य रोजाना कमाते हैं, लॉकडाउन की अवधि में उनकी कमाई पूरी तरह से बंद है

कोरोना वायरस को लेकर लॉकडाउन की अवधि बढ़ने के साथ ही यात्री रेल सेवाओं और सभी सामाजिक अवसरों पर रोक लगने के चलते ट्रेन में भीख मांगकर या बच्चे के जन्म और शादी-ब्याह जैसे अवसरों पर नाच-गाकर पैसा कमाने वाले ज्यादातर किन्नर जीवन गुजारने के लिए संघर्ष करते नजर आ रहे हैं। मधुमेह से पीड़ित 42 वर्षीय चांदनी को अब यह समझ नहीं आ रहा कि उनके पास जो थोड़े बहत पैसे बचे हैं उनसे वह खाना खरीदे या दवा।

चांदनी ने कहा, “मैं हर दिन कम से कम 500 रुपये कमा लेती थी। यह बहुत नहीं था लेकिन मेरी जरूरतें पूरा करने के लिए काफी थी। बंद के बाद से, कोई आमदनी नहीं होने के कारण मेरे पास पैसे नहीं बचे हैं।” मुख्यधारा की नौकरियां कर रहे कुछेक किन्नरों को छोड़कर समाज में हाशिए पर डाले गए भारत के 4.88 लाख किन्नर दूसरों से पैसा मांगकर जीवन बिताने के लिए बेबस हैं। चांदनी ने किसी से 4,000 रुपये मांगे हैं और उन्हें उम्मीद है कि अगले महीने बंद की अवधि खत्म होने तकत इस पैसे से उनका गुजारा चल जाएगा।

एक अन्य ट्रांसजेंडर रश्मि, नोएडा के सेक्टर-16 में सड़कों पर भीख मांगकर अपना गुजारा चलाती थी। उन्होंने कहा कि लोग अपनी गाड़ियों से भले ही पैसा नही भी देते थे लेकिन खाने का कुछ सामान दे दिया करते थे। रश्मि ने कहा, “अब, मैं घर पर बंद हूं। कोरोना वायरस से नहीं भी मरें तो यह भूख मेरी जान ले लेगी।”

भारत में किन्नर समुदाय के ज्यादातर सदस्य ट्रैफिक सिग्नलों और ट्रेनों में मांगकर, शादियों में नाच कर और यौन कर्म के जरिए अपना जीवन यापन करते हैं। विश्व के सबसे बड़े लॉकडाउन ने उनसे आमदानी के सभी तरीके छीन लिए हैं और सरकार भले ही किन्नरों को राहत के तौर पर 1,500 रुपये दे रही है लेकिन कई के पास यह राशि पाने के लिए जरूरी दस्तावेज नहीं हैं।

समुदाय आधारित संगठन ‘नई भोर’ की संस्थापक पुष्पा ने कहा, “किन्नर समुदाय के ज्यातादर सदस्य रोजाना कमाते हैं। सरकार ने उन्हें 1,500 रुपये दिए हैं लेकिन उनका इस 1,500 से क्या होगा। यह 1,500 रुपये देने के लिए अधिकारी पहचान-पत्र, बैंक खाता नंबर मांगते हैं जो उनके पास नहीं है।” उन्होंने कहा कि लोग पिछले, “1,100 वर्षों” से समुदाय के साथ भेदभाव कर “सामाजिक दूरी’’ बनाए हुए हैं। 

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