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बिहार के गांवों में तेजी से फैल रहा कोरोना, गांव-गांव लोग हैं बीमार, झोला छाप डॉक्टर कर रहे इलाज

By एस पी सिन्हा | Updated: May 14, 2021 17:18 IST

गांवों में रहने वाले झोला छाप चिकित्सकों के सहारे इसका इलाज कराने में जुटे हुए हैं। इसतरह से लोंगों की लापरवाही कम होने का नाम ही नहीं ले रही है और बडे पैमाने पर लोगों की जानें भी जा रही हैं। लेकिन इसका किऒ आंकडा सामने नही आ पा रहा है।

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ठळक मुद्दे ग्रामीण क्षेत्र की स्थिति भयावह बनी हुई है।मरीजों की मौत भी उपचार के दौरान हो रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में सब्जी हटिया हो या दुकान अधिकांश जगहों पर भारी भीड़ जमा रहती है।

बिहार में जारी कोरोना के कहर पर भले ही सभी की नजरें शहरों पर ज्यादा टिकी हों और जांच भी ज्यादा हो रहे हैं, लेकिन कोरोना अब गांवों में भी कहर बरपाने लगा है। राज्य का शायद ही कोई ऐसा गांव होगा जहां सैकड़ों लोग संक्रमित नही हुए हों। पर जांच के अभाव में लोग इस बीमारी से बेपरवाह घरों में रहकर उपचार करा रहे हैं। गांवों को यही कहा जा रहा है कि यह मौसमी सर्दी-खांसी और बुखार है। 

ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिती की भयावहता का आलम यह है कि लगभग प्रत्येक गांव में 80 फेसदी लोग बीमार हैं। वे लोग अपने-अपने तरह से ईलाज में जुटे हैं। लेकिन सरकार की तरफ से कोई देखने वाला नही है। वहीं शहरी क्षेत्रों में पुलिस पदाधिकारियों और जवानों की उपस्थिति और सक्रियता से लोग कोरोना गाइडलाइंस और लॉकडाउन नियम का पालन करने लगे हैं। 

लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों की तस्वीर कुछ लग ही है। यहां किसी तरह के गाइडलाइन के पालन से किसी को कोई मतलब नही है। लोग धडल्ले से घूम रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी अधिकांश लोग सैनिटाइजर का इस्तेमाल तो दूर मास्क तक नहीं लगा रहे है। जबकि ग्रामीण क्षेत्र की स्थिति भयावह बनी हुई है। लोग कोरोना से होने वाली मौत की भयावह तस्वीर की जानकारी के बाद भी कोरोना गाइडलाइंस के अनुपालन को लेकर लापरवाही बरतने से बाज नहीं आ रहे हैं। 

ग्रामीण क्षेत्रों में सब्जी हटिया हो या दुकान अधिकांश जगहों पर भारी भीड़ जमा रहती है। यहां शारीरिक दूरी का जरा भी अनुपालन नहीं हो रहा है। ना ही दुकानदार मास्क पहने हैं और ना ही आम लोग मास्क के प्रति कोई रूची दिखाते हैं। गांवों में अगर किसी की मौत भी होती है तो उसे सामान्य मौत मानकर या तो अन्त्येष्टी कर दी जाती है अथवा नदियों में प्रवाहित कर दिया जा रहा है। 

राज्य के भोजपुर जिले के सहार प्रखंड सहित सभी प्रखंड क्षेत्रों में पुलिस भी लापरवाही बरत रही है। भीड वाले जगहों पर ना तो माइकिंग कर लोगों को अगाह कर रही ना ही कोरोना गाइडलाइंस के उलंघन को लेकर सख्ती बरत रही है। यह केवल भोजपुर जिले का नही बल्कि बिहार के लगभग सभी जिलों के तस्वीर यही है। जबकि ग्रामीण इलाकों में भी कोरोना मरीजों की संख्या कम नहीं है, जो घरों में रहकर अपना उपचार करा रहे हैं। 

मरीजों की मौत भी उपचार के दौरान हो रही है। लेकिन ग्रामीण अंचल में जांच प्रक्रिया न के बराबर होने से सच्चाई सामने नही आ पा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में पुलिस थाना परिसर और वाहनों के चेक नाके की बैरियर तक ही खुद को सीमित कर रखा है। प्रखंडों में पीएचसी में भी सुविधा न के बराबर होने से आम लोग वहां कम हीं जा रहे हैं। वैसे भी कोई अपनी बीमारी को कोरोना मानने को तैयार नही दिखता है। 

ऐसी स्थिती में जानकारों का मानना है कि अगर अभी से ही सख्ती नही बरती गई और गांव-गांव सघन जांच अभियान नही चलाया गया तो स्थिती और भी ज्यादा भयावह हो जा सकती है। अभी हीं ग्रामीण क्षेत्रों में मौतों का आंकड़ा कम नही है, लेकिन यह सरकार की ओर से पटल पर नही आ पा रहा है, जिससे लोग केवल शहरी क्षेत्रों की तस्वीरें सामने रख रहे हैं।

 जानकारों का कहना है कि जिन गांवों में लोगों की मृत्यु चाहे जिस कारण से भी हो रही हो रही है, उन गांवों में सैनिटाइजेशन कराया जाना चाहिये। कारण की मौत के कारणों को जाने बिना ही लोग शवों की अंत्येष्टी कर दे रहे हैं। यह आगे चलकर भयावह रूप धारण कर सकती है।

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