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Coronavirus Impact: लॉकडाउन के चलते मध्य प्रदेश में 300 से अधिक छोटे एवं मझोले समाचार पत्र छपने बंद

By भाषा | Updated: April 1, 2020 20:34 IST

मध्यप्रदेश में लॉकडाउन के चलते यातायात की सुविधा न मिलने एवं विज्ञापनों में आई भारी कमी के चलते मध्य प्रदेश में 300 से अधिक छोटे एवं मझोले समाचार पत्रों ने अपने-अपने समाचार पत्र छापने बंद कर दिये हैं। लॉकडाउन से पहले इनमें से अधिकांश समाचार पत्र मध्य प्रदेश के विभिन्न जिला मुख्यालयों से प्रकाशित हुआ करते थे।

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ठळक मुद्देलोगों में यह डर है कि यदि वे समाचार पत्रों को इस महामारी के समय खरीदेंगे तो इसके जरिये वे भी इस वायरस से संक्रमित हो सकते हैं।मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग में करीब 670 समाचार पत्र पंजीबद्ध हैं, जिन्हें सरकारी विज्ञापन मिलते हैं। इनमें से करीब 287 अकेले भोपाल से ही प्रकाशित होते हैं।

भोपाल। दुनियाभर में फैली कोरोना वायरस महामारी के असर से अब समाचार पत्र उद्योग भी अछूता नहीं रह गया है। इस महामारी पर लगाम लगाने के लिए लगे देशव्यापी लॉकडाउन के कारण यातायात की सुविधा के अभाव के साथ—साथ विज्ञापनों में आई भारी कमी की वजह से मध्य प्रदेश के 300 से अधिक छोटे एवं मझोले समाचार पत्रों के मालिकों ने अपने—अपने समाचार पत्र छापने बंद कर दिये हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने बुधवार को यहां बताया, ''यातायात की सुविधा न मिलने एवं विज्ञापनों में आई भारी कमी के चलते मध्य प्रदेश में 300 से अधिक छोटे एवं मझोले समाचार पत्रों ने अपने—अपने समाचार पत्र छापने बंद कर दिये हैं। लॉकडाउन से पहले इनमें से अधिकांश समाचार पत्र मध्य प्रदेश के विभिन्न जिला मुख्यालयों से प्रकाशित हुआ करते थे।''

उन्होंने कहा कि इसके अलावा, लोगों में यह डर है कि यदि वे समाचार पत्रों को इस महामारी के समय खरीदेंगे तो इसके जरिये वे भी इस वायरस से संक्रमित हो सकते हैं। यह भी लोगों द्वारा समाचार पत्र न लेने के मुख्य कारणों में से एक है। हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन का हवाला देकर बार-बार यह स्पष्ट किया जा रहा है कि समाचार पत्रों के माध्यम से इसके फैलाव का खतरा लेश मात्र ही है। अधिकारी ने बताया कि मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग में करीब 670 समाचार पत्र पंजीबद्ध हैं, जिन्हें सरकारी विज्ञापन मिलते हैं। इनमें से करीब 287 अकेले भोपाल से ही प्रकाशित होते हैं। उन्होंने कहा कि लेकिन स्थिति अब ऐसी खराब हो गई है कि मध्य प्रदेश के 52 जिलों में से अब 49 जिलों में अखबार नहीं छप रहे हैं और केवल तीन ही जिलों में ही अखबार छप रहे हैं। देवास जिले में न्यूजपेपर हॉकर्स एसोसिएशन ने यह कहते हुए 25 मार्च से अखबारों का वितरण बंद कर दिया है कि वे कोरोना वायरस की महामारी के चलते अपनी जान को खतरे में नहीं डालना चाहते हैं।

इस एसोसिएशन के पदाधिकारी राजेन्द्र चौरसिया ने बताया कि हमने फैसला किया है कि हम 14 अप्रैल तक अखबारों का वितरण नहीं करेंगे। अब तक मिली रिपोर्टों के मुताबिक मध्य प्रदेश में कुल 86 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं। इनमें इंदौर के सर्वाधिक 63 मरीज शामिल हैं। इसके अलावा, जबलपुर के आठ, उज्जैन के छह, भोपाल के चार, शिवपुरी एवं ग्वालियर के दो-दो एवं खरगोन में एक मरीज में इस वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई है। इनमें से छह लोगों की मौत हो चुकी है। ऐसी स्थिति में अखबारों को छापना बंद करने के बाद कुछेक मझोले स्तर के समाचार पत्रों के मालिकों ने अपने अखबार को ई—पेपर्स के माध्यम से लोगों तक पहुंचाना शुरू कर दिया है, ताकि समाचारों की दुनिया में अपना अस्तित्व बचाया जा सके। कुछ समाचार पत्र अब पाठकों के मन से डर भगाने के लिए संपादकीय लेख लिख रहे हैं 'समाचार पत्र कोरोना वायरस के खतरे से सुरक्षित हैं' ताकि पाठक समाचार पत्र खरीदते रहें और हॉकर्स इनको वितरित करते रहें।

लेकिन, पाठक फिर भी इन्हें खरीदने से कतरा रहे हैं और हॉकर्स इनका वितरण करने से मना रहे हैं। भोपाल सहित कुछ अन्य जिलों से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र ‘राष्ट्रीय हिन्दी मेल’ के प्रधान संपादक एवं मालिक विजय दास ने 'पीटीआई—भाषा' को बताया, ''मैंने भोपाल एवं इंदौर से अपना अखबार छापना चार दिन पहले कुछ समय के लिए बंद कर दिया है और इसकी जगह मैंने अब ई—पेपर चालू किया है। हमने कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए अपने अखबार को आनलाइन किया है। इसे किसी अन्य परिप्रेक्ष्य में नहीं समझा जाना चाहिए। मैं बहुत ही कम स्टाफ से काम चला रहा हूं।'' दास भोपाल सेंट्रल प्रेस क्लब के संस्थापक एवं संयोजक भी हैं। उन्होंने कहा, ''अखबार छपने से लेकर वितरण में बड़ी तादाद में गरीब लोग जुडे हुए हैं। कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए इससे जुडे इन लोगों की भीड़ लगाना ठीक नहीं है। इसलिए हमने अखबार न छापने का फैसला लिया है।''

पिछले करीब 25 साल से अपना अखबार चला रहे दास ने कहा,''विश्व स्वास्थ्य संगठन :डब्ल्यूएचओ: के अनुसार अखबार कोरोना वायरस से सुरक्षित हैं, लेकिन मैं इस बात से सहमत नहीं हूं।'' उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि उन्होंने रायपुर, जबलपुर एवं ग्वालियर से अपने समाचार पत्र की छपाई वित्तीय तंगी के कारण बंद किया है। वहीं, वाटरशेड एवं नदी संरक्षण के विशेषज्ञ के जी व्यास :81: ने बताया, ''मेरी डाक्टर बेटी ने मुझे सलाह दी थी कि आजकल अखबार लेना बंद कर दें, क्योंकि हमारे घर में पहुंचने तक इस पर कई लोग हाथ लगाते हैं। इससे कोरोना वायरस घर में प्रवेश कर सकता है। इसलिए मैंने 25 मार्च से ही अखबार लेना बंद कर दिया है।'' उन्होंने कहा, ''मैं पिछले छह दशकों से अखबार पढ़ता हूं। लेकिन अब मेरे पास टेलीविजन चैनलों पर समाचार सुनने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।'' व्यास की तरह कई अन्य लोगों ने भी कोरोना के डर से आजकल अखबार लेना एवं पढ़ना बंद कर दिया है। इसी बीच, एक बड़े अखबार के सर्कुलेशन इंचार्ज ने बताया, ''मार्च 25 से सभी पैसेंजर ट्रेनों के न चलने से हमें भोपाल से डाक के जरिए आने वाले अखबार मिलने बंद हो गये हैं। लॉकडाउन के बाद हमारा सर्कुलेशन आधा हो गया है। कुछ हाउसिंग सोसाइटियों ने अपने इलाके में अखबारों को बांटने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके अलावा, कोई विज्ञापन भी हमें नहीं मिल रहा है। इससे हमारे लिये अखबार छापना मुश्किल हो गया है।''

उन्होंने कहा, ''न केवल हमारे अखबार की यह दशा हुई है, बल्कि मध्य प्रदेश के सबसे बड़े हिन्दी अखबार की बिक्री भी अब 60 प्रतिशत ही रह गई है।'' वहीं,जर्नलिस्ट यूनियन के नेता राधावल्लभ शारदा ने बताया, ''मैंने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से अनुरोध किया है कि राज्य सरकार द्वारा अखबारों को पूर्व में दिये गये विज्ञापनों का भुगतान तुरंत किया जाये, ताकि कोरोना वायरस की इस महामारी में छोटे अखबारों में काम करने वाले पत्रकारों को तनख्वाह मिल सके।'' उन्होंने कहा कि छोटे एवं मझोले अखबार मुख्य रूप से राज्य सरकार के विज्ञापनों पर ही निर्भर रहते हैं। इसलिए उन्हें तुरंत पूर्व में दिये गये विज्ञापनों का भुगतान किया जाये। मालूम हो कि कमलनाथ के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश की पूर्व कांग्रेस नीत सरकार ने समाचार पत्रों को विज्ञापन दिये थे, लेकिन उनकी सरकार गिर गई और प्रदेश में चौहान की अगुवाई में भाजपा की सरकार आ गई। चौहान की सरकार आने के बाद लॉकडाउन शुरू हो गया, जिससे अखबार मालिकों को सरकार द्वारा दिए गये विज्ञापनों का भुगतान रुक गया। इसके अलावा, अन्य स्रोतों से आने वाले विज्ञापन भी अब समाचार पत्रों के मालिकों को नहीं मिल रहे हैं और अखबारों की बिक्री भी बहुत कम हो गई है, जिससे वे आर्थिक संकट में आ गये हैं।

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