नई दिल्लीः कर्नाटक के एक दलित कपड़ा मिल मजदूर के बेटे की कांग्रेस के एक जमीनी कार्यकर्ता से चलकर पार्टी के शीर्षस्थ पद तक की यात्रा ही मल्लिकार्जुन खड़गे के संघर्ष की कहानी है. खड़गे के राजनीतिक सफर में सबसे महत्वपूर्ण बात पार्टी और उसके नेतृत्व के प्रति उनका अगाध विश्वास है.
उनके पिता मपन्ना ने बेटे को पढ़ा लिखा कर वकील बनाया. स्कूल में हेड बॉय थे तो कॉलेज में छात्र नेता. गुलबर्गा जिले के पहले दलित बैरिस्टर बने. वह कबड्डी और हॉकी में अपने कॉलेज का प्रतिनिधित्व करते थे. 27 वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीता. उसके बाद लगातार 9 बार विधायक बने. दो बार लोकसभा का चुनाव जीते.
जिंदगी में पहली हार उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उन्हें फौरन न सिर्फ राज्यसभा भेजा बल्कि नेता विपक्ष भी नियुक्त किया. हालांकि वे तीन बार कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए. अपने 60 वर्षों के राजनीतिक जीवन में खड़गे ने पार्टी लाइन से इतर जाने की बात तो दूर कभी कोई बयान तक नहीं दिया.
तब भी नहीं जब 2004 में एसएम कृष्णा के मंत्रिमंडल में दूसरे नंबर की हैसियत वाले खड़गे की अनदेखी कर धरम सिंह को मुख्यमंत्री बना दिया गया था. अपने समर्थकों के दबाव के बावजूद खड़गे ने सोनिया गांधी से शिकायत तक न की. 2013 में भी उनकी जगह सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बना दिया गया था.
राजनीति में प्रवेश से पहले खड़गे ने वकालत शुरू कर दी थी. मिल मजदूरों के मामले में मुफ्त में लड़ते थे. कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के बाद उन्होंने बतौर जमीनी कार्यकर्ता कार्य करना शुरू किया. लेकिन उन्होंने कभी भी दलित कार्ड का इस्तेमाल नहीं किया. हमेशा कहते रहे कि मैं जो कुछ भी हूं अपनी मेहनत के बूते हूं ना कि दलित होने के कारण. उन्होंने बहुत पहले ही बौद्ध धर्म अपना लिया था.
पहली बार में ही मंत्री
1972 में जब वे पहली बार विधायक बने तो उनकी वाकपटुता और राजनीतिक कौशल से प्रभावित हो तत्कालीन मुख्यमंत्री देवराज उर्स ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया. तब से वे धरम सिंह एसएम कृष्णा, वीरप्पा मोइली, एस बंगारप्पा जैसी लगभग कांग्रेसी सरकारों में मंत्री रहे. लंबे समय तक वे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे. लेकिन जब 2006 में जनता दल एस नेता एस सिद्धारमैया कांग्रेस में शामिल हुए उनको अधिक जगह देने के लिए खड़गे को दिल्ली बुला लिया गया.
कर्नाटक में लाभ नहीं
खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने का कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को अधिक लाभ मिलने की संभावना नहीं है. अब वहां पर पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया सबसे बड़े कांग्रेस नेता है और पार्टी इकाई पर उनकी जबरदस्त पकड़ है. उनके बाद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार का नंबर आता है. खड़गे के तीन बेटे और दो बेटियां हैं. बड़ा बेटा राहुल व्यापार करता है दूसरा मिलिंद डॉक्टर है और सबसे छोटा प्रियांक गुलबर्गा की चितपुर सीट से विधायक है.