लोकसभा चुनावः पूर्व चुनाव आयुक्तों ने कहा कि प्रत्येक असहमति को रिकॉर्ड में रखे जाने की आवश्यकता

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 6, 2019 04:05 PM2019-05-06T16:05:00+5:302019-05-06T16:05:00+5:30

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के कम से कम तीन मामलों में और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को एक मामले में क्लीन चिट देने के लिए चुनाव आयुक्तों में से एक द्वारा असहमति जताए जाने को लेकर विवाद के बीच दो पूर्व चुनाव आयुक्तों ने कहा कि प्रत्येक असहमति को रिकॉर्ड में रखे जाने की आवश्यकता होती है।

Complainant has right to know about dissent in Election Commission decisions, say former CECs. | लोकसभा चुनावः पूर्व चुनाव आयुक्तों ने कहा कि प्रत्येक असहमति को रिकॉर्ड में रखे जाने की आवश्यकता

निर्वाचन आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तें और कार्य निष्पादन) कानून 1991 कहता है कि यदि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों के बीच किसी मामले में मतभेद होता है, तो ऐसे मामलों में फैसला बहुमत के आधार पर लिया जाएगा। 

Highlightsशिकायतकर्ता ईसी के फैसलों में असहमति के बारे में जानने का हकदार: पूर्व निर्वाचन आयुक्तों ने कहाचुनाव आयुक्तों में से एक ने मोदी को वर्धा में एक अप्रैल के और लातूर में नौ अप्रैल के उनके भाषण के सिलसिले में निर्वाचन आयोग द्वारा क्लीन चिट दिए जाने पर असहमति जताई थी।

दो पूर्व चुनाव आयुक्तों ने कहा है कि किसी निर्वाचन आयुक्त द्वारा किसी मामले में जताई गई असहमति का उल्लेख फाइलों में किया जाना होता है और शिकायतकर्ता को इसके बारे में जानने का अधिकार है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के कम से कम तीन मामलों में और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को एक मामले में क्लीन चिट देने के लिए चुनाव आयुक्तों में से एक द्वारा असहमति जताए जाने को लेकर विवाद के बीच दो पूर्व चुनाव आयुक्तों ने कहा कि प्रत्येक असहमति को रिकॉर्ड में रखे जाने की आवश्यकता होती है।

इनमें से एक पूर्व चुनाव आयुक्त ने कहा, ‘‘चाहे चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन पाया गया हो या नहीं, आम तौर पर किसी सचिव द्वारा शिकायतकर्ता को जानकारी दी जाती है। लेकिन जानकारी स्पष्ट होनी चाहिए कि फैसला सर्वसम्मति से लिया गया या बहुमत से।’’

उन्होंने कहा कि असहमति से संबंधित नोट को जानकारी के साथ भेजे जाने की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन शिकायतकर्ता को यह जानने का अधिकार है कि असहमति किसने जताई। दूसरे पूर्व चुनाव आयुक्त ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय की तरह ही असहमति निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर अपलोड की जानी चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि असहमति आंतरिक विमर्श और लोकतांत्रिक प्रणाली का हिस्सा होती है। इनमें से एक ने कहा, ‘‘यदि उन्होंने शिकायतों पर तभी फैसला किया होता, जब वे प्राप्त हुईं तो वर्तमान स्थिति उत्पन्न नहीं हुई होती।’’ सूत्रों के अनुसार, चुनाव आयुक्तों में से एक ने मोदी को वर्धा में एक अप्रैल के और लातूर में नौ अप्रैल के उनके भाषण के सिलसिले में निर्वाचन आयोग द्वारा क्लीन चिट दिए जाने पर असहमति जताई थी।

वर्धा में मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर केरल की अल्पसंख्यक बहुल वायनाड सीट से चुनाव लड़ने को लेकर हमला बोला था। वहीं, लातूर में मोदी ने बालाकोट हवाई हमले और पुलवामा आतंकी हमले में सीआरपीएफ जवानों की शहादत का जिक्र करते हुए पहली बार मतदान करने वालों से वोट देने की अपील की थी।

कहा जाता है कि इसी चुनाव आयुक्त ने शाह को नागपुर में उनके भाषण के सिलसिले में क्लीन चिट दिए जाने पर असहमति जताई थी। नागपुर में भाजपा प्रमुख ने कथित तौर पर कहा था कि केरल का वायनाड निर्वाचन क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जहां बहुसंख्यक ही अल्पसंख्यक हैं।

निर्वाचन आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तें और कार्य निष्पादन) कानून 1991 कहता है कि यदि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों के बीच किसी मामले में मतभेद होता है, तो ऐसे मामलों में फैसला बहुमत के आधार पर लिया जाएगा। 

Web Title: Complainant has right to know about dissent in Election Commission decisions, say former CECs.