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कॉलेजियम विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा, "कॉलेजियम बैठक की चर्चा और संबंधित दस्तावेज सार्वजनिक नहीं किये जा सकते हैं"

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: December 9, 2022 17:32 IST

सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम बैठक की चर्चा और संबंधित किसी भी दस्तावेज को पब्लिक डोमेन में रखे जाने से इनकार करते हुए कहा कि जजों की नियुक्ति के संबंध में केवल अंतिम फैसले को ही सार्वजनिक किया जा सकता है।

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ठळक मुद्देकॉलेजियम सिस्टम को लेकर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच बढ़ा विवादकोर्ट ने कहा है कि कॉलेजियम बैठक से संबंधित कोई भी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती हैकोर्ट ने कहा कॉलेजियम सिस्टम संवैधानिक बेंच से पास हुआ है, इस कारण इस पर विवाद नहीं होना चाहिए

दिल्ली: देश की सर्वोच्च न्यायिक सेवा (सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट) में जजों की नियुक्ति के संबंध में चल रही विवाद की स्थिति में उस समय नया मोड़ आ गया, जब सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कह दिया है कि कॉलेजियम बैठक की चर्चा और संबंधित कोई भी दस्तावेज पब्लिक डोमेन में नहीं रखे जा सकते हैं, इस संबंध में जजों की नियुक्ति के संबंध में केवल अंतिम फैसले ही सार्वजनिक किये जा सकते हैं।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में हुई कॉलेजियम की बैठक के एजेंडे की प्रति और उसमें लिये गये फैसले की प्रति हासिल करने के लिए दायर की गई याचिका को सिरे से खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट इस विषय में बेहद सख्त नीति अपना रहा है और उसका स्पष्ट मानना है कि केंद्र को सर्वोच्च अदालत द्वारा जजों की नियुक्ति से संबंध में भेजी गई सिफारिशों को स्वीकार करना चाहिए।

बीते गुरुवार को भी कॉलेजियम सिस्टम के संबंध में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि वो भारत सरकार के सबसे सीनियर लॉ अफसर हैं, इसलिए उन्हें उस रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन करते हुए सरकार को कानूनी स्थिति समझानी चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश की सर्वोच्च अदालत ही कानून की अंतिम व्याख्ता है।

कोर्ट ने कहा कि इस बात में हमें कोई संदेह या संशय नहीं है कि कानून बनाने का अंतिम अधिकार देश की संसद के पास है लेकिन उन सभी कानूनी की समीक्षा करने का अधिकार केवल सुप्रीम कोर्ट के पास ही है। इसलिए सभी को सर्वोच्च अदालत द्वारा निर्धारित कानूनों का पालन करना चाहिए।

इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम सिस्टम पर चल रहे विवाद पर अपना रूख स्पष्ट किया है। जबकि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम को अपारदर्शी बताते हुए कड़ा विरोध कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम पर अपनी मंशा को साफ करते हुए केंद्र को सीधा जवाब दिया कि इस विषय में दूसरी किसी राय पर कोई बात नहीं बनेगी।

सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई की। जिसकी अगुवाई जस्टिस एसके कौल कर रहे थे, वहीं उसके साथ बेंच में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस विक्रमनाथ भी शामिल थे। बेंच ने सुनवाई के दौरान संवैधानिक पदों पर कार्यरत लोगों द्वारा कॉलेजियम प्रणाली पर टिप्पणी करने पर कड़ी आपत्ति जताई और कोर्ट में मौजूद अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी को आदेश दिया कि वो सरकार में बैठे ऐसे लोगों पर लगाम लगाएं।

सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से पूछा, “क्या सुप्रीम कोर्ट के पास किसी कानून की न्यायिक समीक्षा की कोई शक्ति नहीं है, क्या केवल सरकार में और संवैधानिक पदों पर बैठे लोग इसे अपनी इच्छा के अनुसार चलाएंगे। अगर ऐसा ही चलता रहा तो कल यह भी कहा जा सकता है कि संविधान का मूल ढांचा भी संविधान में नहीं है। हम कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ की गई टिप्पणियों का कड़ा विरोध करते हैं।"

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “कॉलेजियम संविधान बेंच द्वारा दिया गया जजों की नियुक्ति का सिस्टम है। सिर्फ इसलिए कि कुछ वर्गों में इसके खिलाफ अपने विचार हैं, तो इसे नहीं बदला जा सकता है। संसद में भी कई ऐसे कानून बनते हैं, जिसे समाज के कुछ वर्गों द्वारा स्वीकार नहीं किए जाता है तो क्या अदालतों को जमीनी स्तर पर ऐसे कानूनों का क्रियान्वयन बंद कर देना चाहिए?”

सुप्रीम कोर्ट ने विवाद पर चेतावनी देते हुए कहा कि अगर समाज में व्यक्तियों को यह तय करने के लिए छोड़ दिया जाता है कि किस कानून का पालन करना है और किसका पालन नहीं करना है, तो पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। बेंच अटॉर्नी जनरल की उस टिप्पणी पर भड़क गई, जिसमें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने दो मामलों में पहले उल्लिखित नामों को वापस ले लिया था, जिससे यह संदेह पैदा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट जजों की नियुक्ति से समय खुद स्पष्ट स्थिति में नहीं होती है।

सुप्रीम कोर्ट ने अटर्नी जनरल से कहा कि कोर्ट किसी भी कानून की व्याख्या या समीक्षा करने के लिए स्वतंत्र है और कोर्ट द्वारा पारित आदेश कानून के समान हैं और यह सब पर लागू होने के लिए बाध्यकारी हैं। मालूम हो कि बीते दिनों केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू कोलिज़ीयम के ख़िलाफ़ लगातार टिप्पणियां कर रहे हैं। केंद्रीय मंत्री रिजिजू के अलावा हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने भी न्यायिक नियुक्तियों की प्रणाली को कठघरे में खड़ा किया था।

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