दिवाली और भाईदूज के बाद अब छठ को लेकर बढ़ी गहमा-गहमी, दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है घाट

By एस पी सिन्हा | Published: October 29, 2019 08:37 PM2019-10-29T20:37:13+5:302019-10-29T20:37:13+5:30

बिहार में इस पर्व को लेकर एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है. छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का पर्व है. गंगा घाटों व पवित्र नदियों में लाखों की तादाद में व्रती अर्घ्य देते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ को सूर्य देवता की बहन हैं.

chhath pooja 2019: After Diwali and bhaiyuduj, now the ghat is increased with respect to Chhath, Ghat is being decorated like a bride | दिवाली और भाईदूज के बाद अब छठ को लेकर बढ़ी गहमा-गहमी, दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है घाट

बिहार में इस पर्व को लेकर एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है.

Highlightsमहापर्व छठ को लेकर बिहार-झारखंड में चहल-पहल शुरू हो गई हैछठ पूजा मुख्य रूप से बिहार और पूर्वांचल के इलाकों में मनाई जाती है.

दिवाली और भाईदूज की समाप्ती के बाद अब लोकआस्था के महापर्व छठ को लेकर बिहार-झारखंड में चहल-पहल शुरू हो गई है, कारण कि अब छठ पर्व के आने में अब कुछ दिन रह गए हैं. पटना समेत तमाम शहरों के घाटों को सजाया जा रहा है. छठ पूजा मुख्य रूप से बिहार और पूर्वांचल के इलाकों में मनाई जाती है. 'छठ' की महिमा ऐसी है कि ये न केवल देश बल्कि विदेशों में भी प्रचलित है. 

वहीं, छठ की तैयारी में श्रद्धालु जुट चुके हैं. गुरुवार से महापर्व छठ की शुरुआत हो रही है. पर्व में इस्तेमाल आने वाले सामानों का बाजार भी सज चुका है. दिवाली के अगले दिन व्रत करने वालों ने जरूरी सामानों की खरीदारी शुरू कर दी है. इससे बाजार में चहल पहल देखी जा रही है. वहीं, इस महापर्व से पहले ही भोजपुरी के गीत भी गुंजने लगे हैं. लोकआस्था के महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान नहाय-खाए से कार्तिक शुक्ल चतुर्थी गुरुवार 31 अक्टूबर से शुरू होगा. 

बिहार में इस पर्व को लेकर एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है. छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का पर्व है. गंगा घाटों व पवित्र नदियों में लाखों की तादाद में व्रती अर्घ्य देते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ को सूर्य देवता की बहन हैं. मान्यता है कि छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठ माई प्रसन्न होती हैं और घर परिवार में सुख शांति व धन धान्य से संपन्न करती हैं. 

शुक्रवार 1 नवंबर  को खरना और शनिवार की शाम 2 नवंबर को भगवान भास्कर को पहला सायंकालीन अर्घ्य प्रदान किया जाएगा. कार्तिक शुक्ल सप्तमी रविवार 3 नवंबर को प्रात:कालीन अर्घ्य के साथ महापर्व का समापन होगा. इस व्रत में 36 घंटे तक व्रती निर्जला रहते हैं. 

यहां बता दें कि सूर्य देव की आराधना का यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है. चैत्र शुक्ल षष्ठी व कार्तिक शुक्ल षष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है. हालांकि कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाये जाने वाला छठ पर्व मुख्य माना जाता है. चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है. छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ होगी. 

मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन लेते हैं. व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के बाकि सदस्य भोजन करते हैं. नहाए-खाए के दिन खासतौर पर कद्दू की सब्जी बनाई जाती व व्रती इसे ग्रहण करते हैं. जानकारों की मानें तो कद्दू में पर्याप्त मात्रा में जल रहता है. लगभग 96 फीसदी पानी होता है. इसे ग्रहण करने से कई तरह की बीमारियां खत्म होती हैं. वहीं चने की दाल भी ग्रहण किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि चने की दाल बाकी दालों में सबसे अधिक शुद्ध है.   

जबकि कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है व शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं. इसे खरना कहा जाता है. इस दिन अन्न व जल ग्रहण किये बिना उपवास किया जाता है. शाम को चावल व गुड से खीर बनाकर ग्रहण किया जाता है. 

नमक व चीनी का इस्तेमाल नहीं किया जाता. चावल का पिठ्ठा व घी लगी रोटी भी ग्रहण करने के साथ प्रसाद के रूप में वितरीत की जाती है. पहला अर्घ्य यानी अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य प्रकृति को निमित है. प्रकृति, षष्ठी माता हैं. भगवान ब्रह्मा की मानसपुत्री. नि:संतान को संतान देती हैं और संतान की रक्षा करती हैं. कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह प्रात:कालीन अर्घ्य भगवान सूर्य को प्रदान किया जाता है. वह सूर्य जिनमें तेज है और संपूर्णता भी. 

अर्घ्य प्रदान करने के दौरान व्रती सात बार सूर्य की परिक्रमा भी करते हैं. शास्त्रों की मानें तो सूर्य को अर्घ्य देने से व्यक्ति के इस जन्म के साथ किसी भी जन्म में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं. जानकारों के अनुसार सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्य की प्राप्ति, सौभाग्य व संतान के लिए रखा जाता है. स्कंद पुराण के अनुसार राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा था. उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था. भगवान भास्कर से इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था. स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा है. वर्षकृत्यम में भी छठ की चर्चा है. 

अथर्वेद के अनुसार भगवान भास्कर की मानस बहन हैं षष्ठी देवी. प्रकृति के छठे अंश से  षष्ठी माता उत्पन्न हुई हैं. उन्हें बालकों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी माना जाता है. बालक के जन्म के छठे दिन भी षष्ठी मइया की पूजा की जाती है, ताकि बच्चे के ग्रह-गोचर शांत हो जाएं. एक अन्य आख्यान के अनुसार कार्तिकेय की शक्ति हैं षष्ठी देवी. 

षष्ठी देवी को देवसेना भी कहा जाता है. जानकार बताते हैं कि भगवान सूर्य को सप्तमी अत्यंत प्रिय है. विष्णु पुराण के अनुसार तिथियों के बंटवारे के समय सूर्य को सप्तमी तिथि प्रदान की गई. इसलिए उन्हें सप्तमी का स्वामी कहा जाता है. सूर्य भगवान अपने इस प्रिय तिथि पर पूजा से अभिष्ठ फल प्रदान करते हैं.

Web Title: chhath pooja 2019: After Diwali and bhaiyuduj, now the ghat is increased with respect to Chhath, Ghat is being decorated like a bride

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