सामाजिक जरूरतों के साथ बदलते कानून को बदलती प्रौद्योगिकी को भी देखना चाहिए : केरल उच्च न्यायालय

By भाषा | Published: August 26, 2021 11:06 AM2021-08-26T11:06:49+5:302021-08-26T11:06:49+5:30

Changing law along with societal needs must also look at changing technology: Kerala High Court | सामाजिक जरूरतों के साथ बदलते कानून को बदलती प्रौद्योगिकी को भी देखना चाहिए : केरल उच्च न्यायालय

सामाजिक जरूरतों के साथ बदलते कानून को बदलती प्रौद्योगिकी को भी देखना चाहिए : केरल उच्च न्यायालय

कानून को केवल सामाजिक जरूरतों के साथ ही नहीं बदलना चाहिए बल्कि इसे प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे बदलावों को भी देखना चाहिए। केरल उच्च न्यायालय ने विशेष विवाह कानून (एसएमए) के तहत होने वाली शादियों को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से कराने की संभावना से जुड़े मामले को वृहद पीठ को भेजे जाने के दौरान यह बात कही। न्यायमूर्ति पी बी सुरेश कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय कपड़ा मजदूर संघ बनाम पी आर रामकृष्णन मामले में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी थी कि, “अगर कानून बदलते समाज की जरूरतों के अनुरूप ढलने में विफल रहता है तो या तो यह समाज के विकास को रोक देगा और इसकी प्रगति को बाधित करेगा, या यदि समाज पर्याप्त रूप से सशक्त है, तो वह कानून की जरूरत को समाप्त कर देगा।’’ उच्च न्यायालय ने कहा कि वह शीर्ष अदालत की टिप्पणी का जिक्र इसलिए कर रहा है क्योंकि उसके समक्ष बड़ी संख्या में ऐसे मामले हैं जिनमें ऐसी परिस्थितियां शामिल थीं जहां एक या दोनों पक्षों को शादी का नोटिस देकर देश छोड़ना पड़ा, जैसा कि अपरिहार्य सामाजिक आवश्यकताओं के कारण एसएमए के तहत आवश्यक था और परिणामस्वरूप विवाह नहीं हो सका। न्यायमूर्ति कुमार ने कहा, “ऐसी स्थितियां जहां विवाह के पक्षकार, जो इच्छित विवाह की सूचना देने के बाद भारत छोड़ चुके हैं, अपने नियंत्रण से बाहर के कारणों के चलते भारत वापस नहीं आ सके और इसके फलस्वरूप विवाह नहीं कर पाने के मामले, भी इस अदालत के संज्ञान में आए हैं।” उच्च न्यायालय ने कहा, “एसएमए के प्रावधानों की “व्यवहारिक व्याख्या” से “ऐसे कई लोगों की शिकायतों का निवारण किया जा सकता है।” इसने उच्च न्यायालय की दो अन्य एकल न्यायाधीश पीठों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को भी गलत करार दिया कि वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से एसएमए के तहत विवाह की अनुमति अधिनियम के प्रावधानों को कमजोर करेगी और दोनों पक्षों की प्रत्यक्ष उपस्थिति अनिवार्य है। अदालत ने कहा, “कानून को न केवल बदलती सामाजिक जरूरतों के साथ बदलना चाहिए, बल्कि इसे तकनीकी प्रगति को भी स्वीकार करना चाहिए एवं पहचानना चाहिए।” उच्च न्यायालय ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के प्रावधानों का भी उल्लेख किया और कहा कि वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पक्षकारों द्वारा किए गए प्रस्ताव एवं स्वीकृति को अमान्य नहीं कहा जा सकता है।

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Web Title: Changing law along with societal needs must also look at changing technology: Kerala High Court

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