चंद्रयान-2 को सोमवार को बड़ी कामयाबी मिली है। आज चंद्रयान-2 ऑर्बिटर से लैंडर विक्रम को सफलतापूर्वक अलग किया गया है। रविवार शाम 6: 21 बजे वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-2 को चंद्रमा की पांचवी कक्षा में सफलता पूर्व प्रवेश करवाया। अब सोमवार 2 सितंबर को चांद की पांचवीं कक्षा में परिक्रमा करते हुए ऑर्बिटर से लैंडर विक्रम को अलग किया।
आर्बिटर इसी कक्षा में चांद का चक्कर लगाएगा जबकि लैंडर विक्रम चांद की दो और कक्षा बदल कर चांद के और करीब आ गया। इसके बाद 7 सितंबर को विक्रम की चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करवाई जाएगी। चंद्रयान-2 चांद की कक्षा में परिक्रमा करते हुए चंद्रमा की शानदार तस्वीरें भेज रहा है।
आर्बिटर से अलग होने के बाद विक्रम लैंडर चांद की नजदीकी परिक्रमा करते हुए उसकी सतह की स्कैनिंग करेगा । इसके गहन अध्ययन के बाद यह तय किया जाएगा कि चांद की किस जगह पर लैंडर की लैंडिंग करवाई जाए। चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था।
आखिर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर ही क्यों उतरेगा चंद्रयान-2?
पानी की उपलब्धता तलाशेगाचंद्रयान-2 चांद के भौगोलिक वातावरण, खनिज तत्वों, उसके वायुमंडल की बाहरी परत और पानी की उपलब्धता की जानकारी एकत्र करेगा। इसकी प्रबल संभावनाएं हैं कि दक्षिणी ध्रुव पर जल मिले। भारत के चंद्रयान-1 मिशन के दौरान दक्षिणी ध्रुव में बर्फ के बारे में पता चला था। तभी से चांद के इस हिस्से के प्रति दुनिया के देशों की रुचि जगी है।
चंद्रयान-2 चांद की सतह की मैपिंग भी करेगा। इससे उसके तत्वों के बारे में भी पता चलेगा।
हो सकती है अनमोल खजाने की खोजमाना जा रहा है कि भारत मिशन मून के जरिए दूसरे देशों पर बढ़त हासिल कर लेगा। चंद्रयान-2 के जरिए भारत एक ऐसे अनमोल खजाने की खोज कर सकता है जिससे न केवल अगले करीब 500 साल तक इंसानी ऊर्जा जरूरतें पूरी की जा सकती हैं, बल्कि खरबों डॉलर की कमाई भी हो सकती है।
चांद से मिलने वाली यह ऊर्जा न केवल सुरक्षित होगी बल्कि तेल, कोयले और परमाणु कचरे से होने वाले प्रदूषण से मुक्त होगी। रोचक है चांद का दक्षिणी ध्रुव: विशेषरूप से चांद का दक्षिणी ध्रुव दिलचस्प है क्योंकि इसकी सतह का बड़ा हिस्सा उत्तरी ध्रुव की तुलना में अधिक छाया में रहता है। संभावना जताई जा रही कि इस हिस्से में पानी भी हो सकता है। चांद के दक्षिणी ध्रुव में ठंडे क्रेटर्स (गड्ढों) में प्रारंभिक सौर प्रणाली के लुप्त जीवाश्म रिकॉर्ड मौजूद हैं।
काम खत्म कर चांद पर ही सो जाएगा प्रज्ञानचंद्रयान-2 मिशन को लेकर सभी के मन में बहुत से सवाल हैं। इनमें से एक सवाल यह भी है कि मिशन में अहम योगदान देने वाले रोवर, जिसे प्रज्ञान नाम दिया गया है उसका क्या होगा? यह रोवर कितने दिन चांद की सतह पर गुजारेगा और फिर उसका क्या होगा? उल्लेखनीय है कि प्रज्ञान नाम संस्कृत से लिया गया है, जिसका मतलब ज्ञान होता है।
मिशन में प्रज्ञान ही चांद की सतह पर उतरेगा और नई जानकारियां उपलब्ध कराएगा। चंद्रयान-2 के कुल तीन मुख्य हिस्से हैं। पहला हिस्सा ऑर्बिटर है। चांद की सतह के नजदीक पहुंचने के बाद चंद्रयान को चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर उतरने की प्रक्रि या में 4 दिन लगेंगे। चांद की सतह के नजदीक पहुंचने पर लैंडर (विक्र म) अपनी कक्षा बदलेगा।
फिर वह सतह की उस जगह को स्कैन करेगा जहां उसे उतरना है। लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा और आखिर में चांद की सतह पर उतर जाएगा। दूसरा लैंडर। लैंडिंग के बाद लैंडर (विक्र म) का दरवाजा खुलेगा और वह रोवर (प्रज्ञान) को रिलीज करेगा। रोवर के निकलने में करीब 4 घंटे का समय लगेगा। फिर यह वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए चांद की सतह पर निकल जाएगा।
इसके 15 मिनट के अंदर ही इसरो को लैंडिंग की तस्वीरें मिलनी शुरू हो जाएंगी। तीसरा हिस्सा है रोवर। जिसे प्रज्ञान नाम दिया गया है। 27 किलोग्राम का यह रोवर 6 पहिए वाला एक रोबोट वाहन है। 14 दिन बाद हो जाएगा बंद: रोवर प्रज्ञान चांद पर 500 मीटर तक घूम सकता है। यह सौर ऊर्जा की मदद से काम करता है।
रोवर सिर्फ लैंडर के साथ संवाद कर सकता है, इसकी कुल लाइफ 1 लूनर डे की है। जिसका मतलब पृथ्वी के लगभग 14 दिन होता है। चंद्रयान पर कुल 13 पेलोड हैं। इसमें से 2 पेलोड रोवर पर भी होंगे।