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मरकज की घटना को लेकर प्रेस पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, कहा- प्रेस का गला नहीं दबाएंगे, प्रेस परिषद को इस मामले मे पक्षकार बनाएं

By भाषा | Updated: April 14, 2020 09:35 IST

मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने कोई भी अंतरिम आदेश देने से इंकार कर दिया, जिसमें मीडिया के एक वर्ग को रोकने के लिए अपील की गई थी।

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ठळक मुद्देन्यायालय ने कहा कि ‘‘वह प्रेस का गला नहीं घोटेगा।’’ कोर्ट ने यह मामला दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कोरोना वायरस महामारी फैलने को हालिया निजामुद्दीन मरकज की घटना से जोड़कर कथित रूप से सांप्रदायिक नफरत और धर्मान्धता फैलाने से मीडिया के एक वर्ग को रोकने के लिये मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की याचिका पर कोई भी अंतरिम आदेश देने से सोमवार को इंकार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि ‘‘वह प्रेस का गला नहीं घोटेगा।’’

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एम एम शांतनगौडर की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने इस मुस्लिम संगठन की याचिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई की और उससे कहा कि इस मामले में भारतीय प्रेस परिषद को भी एक पक्षकार बनाये। पीठ ने कहा कि वह इस समय याचिका पर कोई अंतरिम आदेश नहीं देगा और उसने यह मामला दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिये सूचीबद्ध कर दिया।

याचिकाकर्ता ने इस याचिका में आरोप लगाया है कि मीडिया का एक वर्ग दिल्ली में पिछले महीने आयोजित तबलीगी जमात के कार्यक्रम को लेकर सांप्रदायिक नफरत फैला रहा है। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने अपनी याचिका में फर्जी खबरों को रोकने और इसके लिये जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का निर्देश केन्द्र को देने का अनुरोध किया है।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि तबलीगी जमात की दुर्भाग्यपूर्ण घटना का इस्तेमाल सारे मुस्लिम समुदाय को दोषी ठहराने के लिये किया जा रहा है। पश्चिमी निजामुद्दीन में पिछले महीने तबलीगी जमात के मुख्यालय में हुये धार्मिक कार्यक्रम में कम से कम नौ हजार लोगों ने शिरकत की थी और यह कार्यक्रम ही भारत में कोविड-19 महामारी के संक्रमण फैलने का एक मुख्य स्रोत बन गया क्योंकि इसमें हिस्सा लेने वाले अधिकांश व्यक्ति अपने धार्मिक कार्यो के सिलसिले में देश के विभिन्न हिस्सों में गये जहां वे अन्य लोगों के संपर्क में आये।

इस याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया कि देश में कोरोना वायरस महामारी के फैलने के संबंध मे मीडिया की रिपोर्टिंग और सरकार की रिपोर्ट लगातार तलबीगी जमात के बारे में ही बात कर रही हैं। इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हम सोचते हैं कि आप भारतीय प्रेस परिषद को भी इस मामले में एक पक्षकार बनायें। भारतीय प्रेस परिषद इस मामले में एक जरूरी पक्ष है। उन्हें पक्षकार बनायें और इसके बाद हम सुनवाई करेंगे।’’

याचिकाकर्ता के वकील ने जब यह दावा किया कि मीडिया की खबरों की वजह से लोगों पर हमला हुआ है तो पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘हम खबरों के बारे में ठोस दीर्घकालीन उपाय करना चाहते हैं। एक बार जब हम संज्ञान लेंगे तो लोग समझेंगे। यदि यह हत्या करने या बदनाम करने का मसला है तो आपको राहत के लिये कहीं और जाना होगा। लेकिन अगर यह व्यापक रिपोर्टिंग का मामला है तो प्रेस परिषद को पक्षकार बनाना होगा।’’

इस याचिका में मीडिया के सभी वर्गों को यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है कि वे शीर्ष अदालत के उन निर्देशों का सख्ती से पालन करें जिसमें यह सुनिश्चत किया जाये कि खबरें पूरी जिम्मेदारी के साथ दी जायें और अपुष्ट खबरें संप्रेषित नहीं हों।

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