क्या जैन समुदाय के लोगों को मंदिरों से विशेष भोजन घर ले जाने की अनुमति दी जा सकती है: अदालत
By भाषा | Published: April 15, 2021 04:41 PM2021-04-15T16:41:37+5:302021-04-15T16:41:37+5:30
मुंबई, 15 अप्रैल बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को महाराष्ट्र सरकार से जानना चाहा कि क्या जैन समुदाय के लोगों को नौ दिनों के वार्षिक ‘अयंबिल ओली तप’ के लिए उपवास के दौरान अपने मंदिरों से विशेष भोजन घर ले जाने की अनुमति दी जा सकती है। अदालत ने इस बात का उल्लेख किया किया कि यह एक ‘‘तर्कसंगत अनुरोध’’ है।
‘अयंबिल ओली तप’ के दौरान जैन समुदाय के लोग एक विशेष प्रकार का उबला हुआ भोजन करते हैं। यह बिल्कुल सादा भोजन होता है।
न्यायमूर्ति एस सी गुप्त और न्यायामूर्ति अभय आहूजा की पीठ दो जैन न्यासों की याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिका के जरिए समुदाय के सदस्यों को न्यास के परिसरों से उपवास के दौरान उबला हुआ विशेष भोजन घर ले जाने देने की अनुमति मांगी गई है।
न्यासियों के अधिवक्ता प्रफुल्ल शाह ने कहा कि वे मंदिरों या डायनिंग हॉल को लोगों को आकर भोजन करने देने के लिए खोले जाने की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि भोजन घर ले जाने देने की अनुमति मांग रहे हैं।
अधिवक्ता ने कहा , ‘‘संक्रमण की कड़ी को तोड़िए शीर्षक वाले 13 अप्रैल के सरकारी आदेश में रेस्तरां और बार को घर पर खाने-पीने की चीजें पहुंचाने और वहां से भोजन पैक करा कर घर ले जाने की अनुमति दी गई है। हम भी इसी तरह की ही अनुमति मांग रहे हैं, लेकिन यह अनुमति सिर्फ नौ दिनों के लिए, 19 अप्रैल से 27 अप्रैल तक के लिए दी गई है। मंदिरों में कोई भीड़ नहीं लगेगी।’’
अतिरिक्त सरकारी वकील ज्योति चव्हाण ने कहा कि लोगों को भोजन के अपने पार्सल लेने के लिए इन मंदिरों में नहीं उमड़ना चाहिए।
इस पर , अदालत ने भोजन पार्सल पहुंचाने के लिए स्वयंसेवकों के उपयोग का सुझाव दिया।
अदालत ने कहा, ‘‘स्वयंसेवक पार्सल पहुंचा सकते हैं। (जैन) समुदाय में कई अच्छे लोग है। हम सिर्फ यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या समाधान हो सकता है। ’’
अदालत ने सरकार से इस विषय पर विचार करने को कहा।
पीठ ने कहा, ‘‘यह एक तर्कसंगत अनुरोध जान पड़ता है। वे (याचिकाकर्ता) धार्मिक स्थलों को नहीं खोलने जा रहे हैं, बल्कि सिर्फ भोजन के पार्सल देने जा रहे हैं। ’’
बहरहाल, पीठ ने याचिकाओं की सुनवाई शुक्रवार के लिए सूचीबद्ध कर दी।
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