नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई अब राज्यसभा जाएंगे। उनके नाम को देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मनोनीत किया है। जब वह चीफ जस्टिस थे तो उन्हें हमेशा एक ऐसे जज के तौर पर याद किया जाता रहा जो कड़े फैसले लेने में जरा भी नहीं चूकते थे। सालों से लंबित अयोध्या विवाद का निपटारा हो या असम में NRC लागू करवाने का काम जस्टिस गोगोई ने इन सभी मुद्दे पर गंभीरता पूर्वक फैसला लिया।
हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं कि सेवा निवृत होने के बाद राजनीति में आने को लेकर गोगोई के फैसले के विरोध में भी लोग सोशल मीडिया पर अपनी बात रखते हुए न्यायपालिका की प्रासंगिकता व विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं।
बता दें कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा ऐसा पहली बार किया गया है, जब किसी सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत जज को एक राजनीतिक पद दिया गया हो। अब तक न्यायपालिका के कुछ ही सदस्यों को विधायिका में जगह मिली है।
President Kovind nominates former CJI Ranjan Gogoi to Rajya SabhaRead @ANI story | https://t.co/5Z0yiS26Wtpic.twitter.com/zhrR04ULnV— ANI Digital (@ani_digital) March 16, 2020
बता दें कि 3 अक्टूबर 2018 को भारत के 46वें चीफ जस्टिस बने गोगोई का कार्यकाल लगभग 13 महीने का रहा था। कम लोगों को यह पता है कि वह असम के मुख्यमंत्री रहे केशब चन्द्र गोगोई के बेटे हैं। उन्होंने 1978 में वकालत शुरु की और इसके बाद 2001 में गुवाहाटी हाईकोर्ट के स्थाई जज बने थे। 2011 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने और 23 अप्रैल 2012 को सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए।
इसके अलावा, गोगोई तब चर्चा में आए जब उन्होंने कोर्ट में 9 साल से लंबित पड़े अयोध्या विवाद मामले को अपनी बेंच में लेकर फैसला सुनाया। इस मामले में चीफ जस्टिस गोगोई ने 5 जजों की बेंच का गठन किया था और रोज़ाना सुनवाई शुरू कर दी थी। अपने कार्यकाल में जस्टिस गोगोई हमेशा बात को बेवजह लंबा खींचने वाले वकीलों को रोक दिया करते थे। लेकिन 40 दिन चली अयोध्या मामले की सुनवाई में उन्होंने सबको अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया।
यही नहीं जब गोगोई के कार्यकाल की बात होती है तो एक ऐतिहासिक घटना दिसंबर 2016 की चर्चा होना भी लाजिम है। इसमें केरल के चर्चित सौम्या हत्याकांड पर कोर्ट के फैसले के खिलाफ टिप्पणी करने पर जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के ही सेवानिवृत जज मार्कंडेय काटजू को अदालत में तलब कर लिया था। देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि कोई सेवानिवृत न्यायमूर्ति सुप्रीम कोर्ट में पेश हुआ हो और उसने बहस की हो।