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नई किताब: बॉलीवुड विलेन्स की विकिपीडिया किताब है 'मैं हूं खलनायक', अच्छी होते-होते रह गई

By मेघना वर्मा | Updated: December 26, 2018 15:22 IST

किताब की शरुआत काफी अच्छी है। आपके अंदर के एक्साइटमेंट को जगाए रखती है। प्राण, अमरीश पुरी, अमजद खान तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता है मगर उसके बाद चीजें बहुत सिमटी हुई सी दिखती हैं।

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किताब का नाम- मैं हूं खलनायकराइटर- फजले गुफरानदाम- 399 रूपये 

एक फिल्म की रील में जितना जरूरी हीरो होता है उतना ही जरूरी विलेन भी होता है। सिनेमा के सौ साल के इतिहास में विलेन की अपनी अलग पहचान रही है। समय के साथ ना सिर्फ हीरो के बल्कि विलेन के स्वरूप में भी बहुत सारे बदलाव आए है। इसी बदलाव को दिखाती है वरिष्ठ पत्रकार और राइटर फजले गुफरान की नई किताब मैं हूं खलनायक। किताब में ना सिर्फ सिनेमा के विलेन्स की जानकारी है बल्की कई ऐसी बातें हैं जो फिल्म से लगाव रखने वाले लोग जानना और पढ़ना पसंद करेंगे। चलिए आपको देते हैं किताब मैं हूं खलनायक का रिव्यू...

सभी दौर की हैं बातें

बॉलीवुड ऑडियंस के दिल में हीरो इस कदर घर कर बैठे हैं कि विलेन को जगह बनाने में पूरी सदियां लग गई। मगर अब समय के साथ-साथ लोग हीरो से ज्यादा विलेन्स को पसंद करने लगे हैं। इस किताब की शुरुआत में भारतीय सिनेमा के इतिहास की बातें की गई हैं। अच्छी बात ये है कि आप किताब पढ़ते समय कहीं भटकेंगे नहीं। विलेन की बात की गई है तो शुरुआत से अंत तक सिर्फ विलेन और उनसे जुड़ी बातें ही हैं। 

इस किताब में जहां प्राण, अमरीश पुरी, अमजद खान, गुलशन ग्रोवर से लेकर प्रेमचोपड़ा, शक्ति कपूर, रंजीत और आशुतोष राणा तक की बात की गई है तो वहीं सुनहरे दौर के विलेन में जीवन, केएन सिंह और जयंद के साथ मदन पुरी देव कुमार की भी चर्चा है। किताब में नई पीढ़ी के खलनायकों के पर्सनल और प्रोफेशनल दोनों जीवन पर बातें की गई हैं। इस दौर के रजा मुराद, गोगा कपूर, कबीर बेदी, सोनू सूद, राहुल देव के साथ केके मेनन और पंकज त्रिपाठी तक की बात की गई है। 

कितने ही नए विलेन की मिली है जानकारी

इस किताब की सबसे खास बात ये है कि इसे पढ़ते समय आपको बहुत से नए विलेन्स के बारे में जानने को मिलेगा। आपने इन विलेन्स को अक्सर फिल्मों में देखा होगा मगर इनका नाम और इनसे जुड़ी रोचक जानकारियां इस किताब के माध्यम से आपको पढ़ने को मिल जाएंगी। इन नामों में बीएम व्यास, कमल कपूर, शेख मुख्तार, राम नरायण तिवारी, चंद्र मोहन जैसे कई नाम शामिल हैं। 

शरूआत है सही पर स्लो हो गए साहब

किताब की शरुआत काफी अच्छी है। आपके अंदर के एक्साइटमेंट को जगाए रखती है। प्राण, अमरीश पुरी, अमजद खान तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता है मगर उसके बाद चीजें बहुत सिमटी हुई सी दिखती हैं। शब्दों के साथ जानकारी की भी कमी लगने लगती है। तो ये कह सकते हैं कि बुक कुछ ही पन्नों के बाद स्लो हो जाती है।  

विकिपीडिया सी आ जाती है फीलिंग

पन्ना दर पन्ना गर आप आगे बढ़ेंगे तो आपको बिल्कुल ऐसी ही फीलिंग आएगी जैसे आप विकिपीडिया पढ़ रहे हों। जन्म कब हुआ, कहां हुआ और किन-किन फिल्मों में काम किया बस इसके अलावा तीसरी कोई जानकारी आप इस किताब में नहीं पाएंगे। 

खलनायिकाओं की है कमी

मुझे इस किताब की एक और बात जो खराब लगी वो ये कि किताब का सिर्फ 5 प्रतिशत हिस्सा ही खलनायिकाओं को समर्पित किया गया है। फजले गुफरान ने मुश्किल से 10 खलनायिकाओं के बारे में ही हमें बताया है। जबकि बॉलीवुड की कई ऐसी अदाकाराएं हैं जिन्होंने अपनी विलेनबाजी से सबकी नफरत जीती है।

सिर्फ पुराने ही नहीं नए जमाने की अभिनेत्रियों ने जैसे माही गिल(साहब, बीवी और गैग्सटर), कलकी कोचिन(एक थी डायन), प्रियंका चोपड़ा(ऐतराज), विद्या बालन (इश्किया), काजोल(गुप्त) जैसी अदाकाराओं ने भी अपने फिल्मी सफर में विलेन का किरदार निभाया है। मगर किताब में इसका कोई जिक्र नहीं है। 

ओवर ऑल किताब की बात करें तो ये और अच्छी हो सकती थी मगर कहीं ना कहीं लेखक ने यूं ही इसे छोड़ दिया। किताब की शुरुआत काफी अच्छी है मगर आगे बढ़ने के बाद आपको इस किताब में किसी तरह का चार्म नहीं मिलेगा। 

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