मुंबई: महाराष्ट्र की सत्ता में हुए बड़े बदलाव और अजित पवार के साथ एनसीपी के विधायकों के शिंदे-फड़नवीस सरकार में शामिल होने के बाद सियासी गलियारों में लग रहे मुख्यमंत्री के बदलाव की अटकलों पर भाजपा ने साफ कर दिया है कि मौजूदा स्थिति में इस तरह का कोई विचार नहीं है और मुख्यमंत्री की गद्दी पर एकनाथ शिंदे की मौजूदगी शिवसेना, भाजपा और एनसीपी गठबंधन वाली इस सरकार के लिए बेहद आवश्यक है।
दरअसल बीते रविवार को बदले घटनाक्रम में जिस तरह से एनसीपी नेता अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार की इच्छा के विरूद्ध जाकर राजभवन में डिप्टी सीएम पद की शपथ ली, उसके बाद से सियासी गलियारों में हलचल थी कि सरकार में अजित पवार के एनसीपी गुट के शामिल होने के बाद एकनाथ शिंदे की सीएम पद से विदाई हो सकती है लेकिन बीते बुधवार को भाजपा नेताओं ने साफ किया कि फिलहाल एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने रहेंगे और पार्टी आने वाले लोकसभा चुनाव सहित अन्य चुनाव फड़नवीस, शिंदे और पवार की "तिकड़ी" बनकर लड़ेगी।
समाचार वेबसाइट इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक भाजपा सूत्रों का कहना है कि भाजपा का निशाना महाविकास अघाड़ी है, जिसमें एनसीपी (शरद पवार), कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) का गठबंधन भाजपा के खिलाफ दम ठोंक रहा है। भाजपा अघाड़ी को शिंदे, फड़नवीस और पवार के जरिये सियासी चोट देने के प्रयास में करना चाहती है और 2024 का लोकसभा और विधानसभा चुनाव इसी तिकड़ी के बल पर लड़ना चाहती है।
इस मामले में पेंच तब फंस गया, जब डिप्टी सीएम अजित पवार ने बुधवार को यह कह दिया कि वह भी किसी दिन मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। इसके बाद से उठे सियासी बवंडर पर भाजपा सूत्र ने कहा, "जब उनसे पूछा गया कि क्या वह सीएम बनना चाहते हैं तो भला वो और क्या कह सकते हैं।”
महाराष्ट्र भाजपा का एक धड़ा अजित पवार के सरकार में शामिल होने और एनसीपी तोड़न से खुश है क्योंकि उसे उम्मीद है कि अजित पवार अपने चाचा शरद पवार के मजबूत मराठा वोटबैंक में सेंधमारी करेंगे, जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा। वैसे भाजपा के पास मराठा नेता के तौर पर राधाकृष्ण विखे पाटिल हैं, जो साल 2019 में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए थे। लेकिन पाटिल पार्टी के लिए मराठा वोटों की सेंधमारी करने में नाकामयाब रहे और भाजपा की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे।
वहीं अब अजित पवार के भाजपा खेमे में आने से पार्टी को उम्मीद है कि वो शरद पवार के मराठा वोटों पर मजबूत पकड़ को ढीला करने का प्रयास करेंगे और इसका सीधा लाभ भाजपा को 2024 के आम चुनाव में होगा।