बिहार: विधानसभा में हुई अवैध नियुक्ति मामले में बुरी तरह फंसे सदानंद सिंह, जाना पड़ सकता है जेल

By एस पी सिन्हा | Published: August 31, 2019 05:06 PM2019-08-31T17:06:33+5:302019-08-31T17:06:33+5:30

जब पूरी बात खुली तो सदानंद सिंह ने विजिलेंस को सफाई दी कि ’गड़बड़ी थी, तो इसे सेक्रेटरी को देखना-रोकना चाहिए था. वह नियुक्ति की सिफारिश ही नहीं करते. रिश्तेदारों को आप परीक्षा देने से कैसे रोक सकते हैं?

Bihar: Sadanand Singh trapped badly in illegal appointment in assembly, may have to go to jail | बिहार: विधानसभा में हुई अवैध नियुक्ति मामले में बुरी तरह फंसे सदानंद सिंह, जाना पड़ सकता है जेल

कांग्रेस पार्टी का झंडा। (फाइल फोटो)

बिहार में कांग्रेस के दिग्गज नेता व विधानसभा में विधायक दल के नेता सदानंद सिंह की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं. बिहार विधानसभा में हुई अवैध नियुक्ति मामले में निगरानी की विशेष अदालत ने 41 आरोपितों के खिलाफ समन जारी करने का आदेश दिया है. इस मामले जल्द हीं सभी आरोपितों को कोर्ट का समन जारी कर दिया जायेगा. इसके बाद उन्हें अदालत में हाजिरी देनी होगी या फिर अग्रिम जमानत के लिए कोर्ट की शरण लेनी होगी. 

यहां बता दें कि मामले की जांच कर रहे निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने करीब दो हफ्ते पहले चार्जशीट दाखिल की थी. सदानंद सिंह वर्ष 2000 से 2005 तक बिहार विधानसभा के अध्यक्ष  रहे थे. इस दौरान बड़ी संख्या में बहाली हुई थी. विधानसभा के रसूखदार नेताओं-अफसरों ने हाईकोर्ट के आदेश को तोड़-मरोड़ कर विज्ञापन निकाला और फिर जिनके रिश्तेदार परीक्षा दे रहे थे, उन्हें ही मूल्यांकन का जिम्मा भी दे दिया. नंबर कम आए तो उसे भी बढ़ाया और तो और नंबर बढ़ाने के लिए इंटरव्यू राउंड भी लिया गया. ये सब सारा खेल हुआ था 2001-02 में विधानसभा में 90 क्लर्क की नौकरी में, अब इस पूरे खेल का राज निगरानी ब्यूरो की चार्जशीट ने खोला है.

ब्यूरो की चार्जशीट में लिखा कि कांग्रेस नेता सदानंद सिंह ने संवैधानिक पदधारक (विधानसभा अध्यक्ष) होने के बावजूद नियुक्ति प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखने के लिए कोई प्रयास नहीं किया, बल्कि चयन समिति में मनमाना परिवर्तन कर और उस पर कब्जा कर ऐसे सदस्यों को इसमें ले लिया. जिनके बच्चे-रिश्तेदार इस परीक्षा में उम्मीदवार बनाए गए थे. ये सब के सब नौकरी पा गए. सदानंद सिंह ने ऐसा तब किया था जब उनके पास नियुक्ति का अधिकार भी नहीं था.

ब्यूरो की चार्जशीट कहती है कि "राज्यपाल के आदेश का उल्लंघन, आदेश की गलत व्याख्या कर, पद का दुरुपयोग करते हुए यह नियुक्ति इनके द्वारा कराई गई. बहाली की प्रक्रिया को शुरू करने से लेकर अंतिम रूप से नियुक्ति तक में उनकी भूमिका रही.

प्राप्त जानकारी के अनुसार मामले की जब पूरी बात खुली तो सदानंद सिंह ने विजिलेंस को सफाई दी कि ’गड़बड़ी थी, तो इसे सेक्रेटरी को देखना-रोकना चाहिए था. वह नियुक्ति की सिफारिश ही नहीं करते. रिश्तेदारों को आप परीक्षा देने से कैसे रोक सकते हैं?

हां, इसकी प्रक्रिया सही होनी चाहिए और सही तरीके से ही हुई. उन्होंने यह भी कहा कि विधानसभा में पदों को लेकर मेरे पास कभी, किसी स्तर से, कोई आपत्ति नहीं आई. लेकिन इन निम्नवर्गीय लिपिक (एलडीसी) की नियुक्ति की जांच में एजेंसी को आश्चर्यजनक सबूत मिले हैं.

उत्तर पुस्तिकाओं से छेड़छाड़ की गई. निगरानी ने इस मामले में पूर्व विधान सभा अध्यक्ष के साथ-साथ उन लोगों को भी आरोपित बनाया है जो चयन समिति में शामिल थे, जिन्होंने अवैध तरीके से नौकरी हासिल की. 

बताया जाता है कि उस वक्त राजकिशोर रावत, चयन समिति के सदस्य थे. उनके बेटे संजय कुमार रावत को दूसरी चयन समिति के सदस्य रामेश्वर प्रसाद चौधरी ने 64 नंबर दिए. यह 62 में 2 जोड़कर दिया गया, जबकि प्रश्नों पर प्राप्तांक 63 है.

संजय कुमार (क्रमांक 1802) को पहले 51 नंबर मिले. दोबारा जांच में यह 59 पहुंचा और फिर इसमें 1 जोड़कर इसे 60 किया गया. इसके अलावे प्रेरणा कुमारी (1198) को 70 नंबर मिले. इसे बढ़ाकर 72 किया गया.

अनिल कुमार वर्मा (1081) को 64 नंबर मिले. पहले इसमें चार अंक बढ़ाए गए, फिर दोबारा जांच के बहाने इसे 70 किया गया. जबकि, कॉपी पर कुल प्राप्तांक 66 होता है. संजीव कुमार (क्रमांक 1071) को 24 अंक मिले. बाद में यह 70 हुआ. इंटरव्यू में उसे 13 नंबर मिले. चुने गए कुल 30 लोगों के नंबरों में इसी तरह का उलटफेर पाया गया. यही नही गडबडी इंटरव्यू के दौरान भी पाई गई. जांच में पाया गया कि विज्ञापन में इंटरव्यू का कोई जिक्र नहीं था औऱ बावजूद इसके  28 गुणा (2544) आवेदक बुलाए गए. 25 नंबर के इंटरव्यू में अफसरों ने अपने-अपपने रिश्तेदारों को खूब नंबर दिया. फेल वालों को भी जबर्दस्त नंबर देकर पास करा दिया गया. 

आरोप है कि सभी नियमों को ताक पर रखकर विधानसभा में तृतीय वर्ग के पदों पर अपने और अपने अधिकारियों और कर्मचारियों के परिवार के नाते-रिश्तेदारों को नियुक्ति दी गयी थी.  चार्जशीट में प्रमुख आरोप है कि नियम के विरुद्ध साक्षात्कार कराया गया. चयन कमेटी के चयन में मनमानी की गई. 

वहीं, कानून के जानकारों का कहना है कि पूर्व विधान सभा अध्यक्ष व अन्य को अब अग्रिम जमानत लेनी होगी. अग्रिम जमानत नहीं मिलने पर कोर्ट में सरेंडर करना होगा. आरोपित के फरार होने के संदेह पर निगरानी की जिम्मेदारी होगी कि वह आरोपितों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करे. 

हालांकि बिहार विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष सदानंद सिंह ने कहा कि मुझ पर लगे सारे आरोप गलत और बेबुनियाद हैं. विधानसभा अध्यक्ष के होने के नाते मैंने अपनी जिम्मेदारी बहुत अच्छे से निभाई है. मुझे इस बात पर घोर आपत्ति है कि मैंने रिश्तेदार-मित्रों को बिना परीक्षा में बैठे चयनित कर नियुक्ति कर ली गई. मैं 1969 से जनता का सेवक हूं और ऐसे आरोपों, ऐसी बातों से मेरी प्रतिष्ठा पर आघात पहुंचा है.

Web Title: Bihar: Sadanand Singh trapped badly in illegal appointment in assembly, may have to go to jail

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