बिहार: बालिका गृह और अल्पावासों में शारीरिक संबंध बनाने से पहले रोजना दिया जाता था ड्रग्स
By एस पी सिन्हा | Published: July 24, 2018 08:30 PM2018-07-24T20:30:02+5:302018-07-24T20:31:04+5:30
उल्लेखनीय है कि टिस की रिपोर्ट में बच्चियों को दी गई शारीरिक यातना का ब्यौरा है। 29 बच्चियों के साथ रेप की पुष्टि पीएमसीएच में गठित मेडिकल बोर्ड ने की है।
पटना,24 जुलाई: बिहार के मुजफ्फरपुर और छपरा में स्थित बालिका अल्पवास गृह में बच्चियों के साथ हुए यौन उत्पीडन के सनसनीखेज घटना के बाद राज्य भर में फैले बालिका अल्पवास गृहों के संचालन के तौर-तरीकों पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। बच्चियों के यौन शोषण की घटनाएं कैमूर, छपरा और हाजीपुर के अल्पावास गृह समेत राज्य के ऐसे अन्य ठिकानों पर भी होने की खबर है। राज्य के समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव अतुल प्रसाद के मुताबिक टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) को सरकार ने ही सोशल ऑडिट करने के लिए कहा था जिसकी रिपोर्ट से गड़बडियों का खुलासा हुआ है।
मुजफ्फरपुर की घटना इतनी व्यापक और सुनियोजित है कि इसने प्रशासनिक मशीनरी के साथ-साथ राजनीतिक हलकों में भी तूफान ला दिया है। दरअसल कुछ लडकियों ने ये बताया है कि बाहरी लोग भी बालिका गृह में आते थे और जोर-जबर्दस्ती करते थे। उन्हें बालिका गृह के बाहर भी ले जाया जाता था। यही कारण है कि विरोधी दल के नेता तेजस्वी यादव ने इसकी सीबीआई जांच कराने की मांग की और इसे संगठित सेक्स ट्रेड बताते हुए कुछ सफेदपोशों के शामिल होने का दावा किया है। उधर संसद में पप्पू यादव ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह से उच्चस्तरीय जांच की मांग की। उन्होंने सदन में कहा कि लडकियों ने मूंछ वाले अंकल और पेट वाले अंकल का नाम लिया था। ये कौन हैं, इसकी जांच होनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि टिस की रिपोर्ट में बच्चियों को दी गई शारीरिक यातना का ब्यौरा है। उन्हें जलाया जाता था और शारीरिक संबंध बनाने से पहले हर रोज इंजेक्शन से ड्रग दिया जाता था। 29 बच्चियों के साथ रेप की पुष्टि पीएमसीएच में गठित मेडिकल बोर्ड ने की है। पुलिस बालिका गृह चलाने वाले एनजीओ सेवा संकल्प एवं विकास समिति के संरक्षक ब्रजेश ठाकुर समेत 10 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है। बाद में जिला बाल संरक्षण अधिकारी रवि रौशन को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
इन सभी के खिलाफ चार्जशीट की तैयारी चल रही है। वहीं, छपरा में नारी उत्थान केंद्र द्वारा मौना मोहल्ले में संचालित अल्पावास गृह में एक विक्षिप्त लडकी का गार्ड द्वारा यौन शोषण किया गया और वह लडकी गर्भवती हो गई। सबसे बडी बात यह है कि इस मामले को अल्वासगृह संचालिका द्वारा महीनों तक दबाए रखा गया। जब यह मामला उजागर हुआ तो अल्पावास गृह की संचालिका सरोज कुमारी और आरोपी गार्ड रामस्वरूप पंडित को गिरफ्तार कर लिया गया। इस मामले में नगर थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई गई है।
परियोजना प्रबंधक मनमोहन को इस मामले का शक हुआ था जिसके बाद एक राज्यस्तरीय टीम ने छपरा के अल्पावास गृह का मुआयाना किया और यह मामला सामने आया। वहीं, एनजीओ सचिव रणधीर कुमार की तलाश में छापेमारी जारी है। एनजीओ नारी कल्याण संस्था के सचिव रणधीर कुमार के दिघवारा सहित कई ठिकानों पर छापेमारी की जा रही है। इस मामले में दो लोगों को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है।
कैमूर और रोहतास में उठ चुका है मामला
कैमूर और रोहतास जिले का इकलौता अल्पावास गृह जो कैमूर जिले के कुदरा प्रखंड के लालापुर में स्थित है जहां अभी 22 लडकियां रहती हैं। अल्पावास गृह की संचालक ग्राम स्वराज संस्थान को लगभग सवा दो लाख रुपए प्रतिमाह तो मिलता है। लेकिन व्यवस्था के नाम पर कुछ भी दिखाई नहीं देता है। एक ही कमरे में सभी लडकियों को ठूंस कर जैसे-तैसे लकडी की चौकी पर बिना बेड के ही रखा जाता है। वहीं खाने-पीने की भी कोई सुख-सुविधा दिखाई नहीं देती। पास के बाथरूम से दुर्गंध इतनी ज्यादा निकल रही थी की नाक रखना भी मुश्किल है। एक माह पूर्व एक लडकी ने फोन से शिकायत दर्ज कराई थी कि अल्पावास गृह का एक गार्ड उसके साथ छेडखानी करता है। भभुआ महिला थाना प्रभारी और मोहनिया डीएसपी ने संयुक्त रुप से जांच की और मामला सही पाया गया था
जिसमें तीन लोगों को हटा दिया गया था और उस पीडिता को वहां से बक्सर अल्पावास गृह में शिफ्ट कर दिया गया। लेकिन सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि इस मामले में किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई। यही नहीं इस घटना से पहले ही टिस ने अपनी रिपोर्ट में बेहद बुरी इंतजामों का हवाला देते हुए एनजीओ को ब्लैकलिस्ट करने और अल्पावास गृह को अविलंब कहीं और शिफ्ट करने का सुझाव दिया था लेकिन अमल नहीं हुआ।
हाजीपुर के अल्पावास गृह में महिलाओं के साथ यौन शोषण का मामला
वहीं, 20 जुलाई को हाजीपुर अल्पावास गृह में रह रहीं लडकियों ने जिला परियोजना प्रबंधक (डीपीओ) पदाधिकारी मनमोहन प्रसाद सिंह पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए। लडकियों के आरोप के बाद प्रशासनिक महकमे में हडकंप मच गया। लडकियों का आरोप है कि जांच के नाम पर डीपीओ मनमोहन प्रसाद सिंह अल्पावास गृह आकर लडकियों के साथ अश्लील हरकत करते थे और मुंह खोलने पर उन्हें जान से मारने की धमकी देते थे। पीडित लडकी ने यहां तक बताया कि मना करने पर उन्होंने एक पीडित लडकी के कपडे भी फाड दिए। लडकियों का कहना है कि आरोपी अधिकारी अकेले कमरे में आ जाते थे और हाथ पैर दबाने के लिए दबाव बनाते थे और फिर अश्लील हरकत करते थे। इधर, अल्पावास गृह की संचालिका करूणा कुमारी का कहना है कि जांच के नाम पर अधिकारी सभी स्टाफ को नीचे रहने का निर्देश देते थे और अल्पावास गृह के ऊपर के कमरे में जांच के नाम पर अकेले चले जाते थे।
लड़कियों का आरोप है कि यह कारनामा लंबे समय से चल रहा था। लेकिन जब सरकार की ओर से इस अल्पावास गृह को समस्तीपुर तबादला किए जाने का आदेश आया उसके बाद लडकियां अधिकारी के खिलाफ भडक गईं और अल्पावास गृह का काला सच उजागर कर दिया। बालिका गृह में 6 से 18 साल की बच्चियों को रखा जाता है जबकि बाल गृह में भी 6-18 साल के बच्चों को रखने का प्रावधान है। बालिका और बाल गृह की तरह महिलाओं के लिए अल्पावास गृह का निर्माण किया गया है। अल्पावास गृह में 18 साल से ऊपर की लडकियों और महिलाओं को रखा जाता है।
बिहार में कुल 15 अल्पावास
बिहार में लगभग 11 बालिका गृह, 24 बाल गृह और 15 अल्पावास गृह फिलहाल चलाए जा रहे हैं। बिहार सरकार अपने स्तर के अलावा एनजीओ के जरिए इन संस्थानों का संचालन करती है। एक बालिका गृह में कुल 50 बच्चियों को रखने का प्रावधान है। इसका संचालन बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग द्वारा किया जाता है। वहीं, एक बालिका गृह- बाल गृह पर लगभग 30 लाख रुपए का सालाना खर्च आता है जिसमें मकान का किराया और बच्चे- बच्चियों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था की जाती है। गृहों के संचालन में एक काउंसलर के साथ-साथ 10 लोगों को रखने का प्रावधान है। इन गृहों के संचालन में 90 फीसदी सरकार और 10 फीसदी संबंधित एनजीओ के द्वारा खर्च करने का प्रावधान है।
बताया जाता है कि समाज कल्याण विभाग समय-समय पर इन संस्थानों का निरीक्षण करता है। जिले स्तर पर चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट का गठन किया है। जिले के बालिका गृह और बाल गृह के निरीक्षण की जिम्मेदारी एडिनशल डायरेक्टर (चाइल्ड प्रोटेक्शन) की होती है। साथ ही दो चाइल्ड प्रोटेक्शन अधिकारी भी होते हैं जो उनकी मदद करते हैं। एक एनजीओ से 11 महीने का कॉन्ट्रैक्ट किया जाता है और फिर रिकॉर्ड को देखते कर कॉन्ट्रैक्ट को आगे बढाया जाता है। अनियमितता की रिपोर्ट मिलने पर एनजीओ का कॉन्ट्रैक्ट कैंसल कर दूसरे को मौका दिया जाता है। किसी एनजीओ के सलेक्शन में 10 लाख का टर्न ओवर के साथ बाल कल्याण और बाल प्रोटेक्शन के क्षेत्र में तीन साल का अनुभव होना जरूरी होता है।