बिहार में मंत्री और विधायकों को चाहिए अपनी जाति के अफसर, सिफारिश पत्रों से परेशान है विभाग

By एस पी सिन्हा | Updated: June 30, 2021 21:05 IST2021-06-30T21:02:43+5:302021-06-30T21:05:06+5:30

बिहार के ज्यादातर विधायक इन दिनों सचिवालय के चक्कर काटते दिखाई दे रहे हैं. विधायक अपनी जाति के चहेते अधिकारियों की पोस्टिंग अपने क्षेत्र में करवाने के लिए सिफारिश लेकर मंत्रियों के पास जा रहे हैं.

Bihar ministers and MLAs need officers their caste departments are troubled recommendation letters | बिहार में मंत्री और विधायकों को चाहिए अपनी जाति के अफसर, सिफारिश पत्रों से परेशान है विभाग

प्रखंड स्तर की सभी विकास योजनाएं बीडीओ के नियंत्रण में संचालित होती हैं.

Highlightsअधिकारियों का चयन नेता योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि जाति के आधार पर किया जा है.परेशान विभागीय मंत्री दफ्तर में नहीं बैठ रहे हैं.सिफारिश भरे पत्रों के आने से विभाग के अधिकारी परेशान हो गये हैं.

पटनाः बिहार में राजनेता जातीय समीकरण से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. हाल यह है कि अपने जातीय व मनपसंद अधिकारियों को अपने क्षेत्र में ले जाने के लिए विधायक-मंत्री सरकार से सिफारिश कर रहे हैं.

सरकार इन विधायकों व मंत्रियों के द्वारा की जा रही सिफारिशों ने इस वजह से परेशान है, क्योंकि इनके द्वारा अधिकारियों का चयन नेता योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि जाति के आधार पर किया जा है. बिहार के ज्यादातर विधायक इन दिनों सचिवालय के चक्कर काटते दिखाई दे रहे हैं. विधायक अपनी जाति के चहेते अधिकारियों की पोस्टिंग अपने क्षेत्र में करवाने के लिए सिफारिश लेकर मंत्रियों के पास जा रहे हैं.

उनके पसंदीदा अधिकारी पहला पैमाना उनकी जाति वाला होता है. ऐसे में पैरवी करने वाले माननीय के पहुंचने का आलम यह है कि इससे परेशान ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार को सचिवालय छोडकर क्षेत्र के लिए निकल जाना उचित समझा. कारण कि अभी बिहार में अधिकारियों के तबादले का दौर चल रहा है. रोज तबादले हो रहे हैं.

यहां बता दें कि बिहार में जून महीने में ही प्रखंड विकास पदाधिकारियों सहित सभी विभागों में ट्रांसफर-पोस्टिंग बडे़ पैमाने पर की जाती है. इसमें विभागीय मंत्री का फैसला अंतिम होता है. यही वजह है कि विधायक खुद सचिवालय पहुंचकर संबंधित विभाग के मंत्री से मिलने की लगातार कोशिश कर रहे हैं. पैरवी और आवेदनों के पहुंचने का यह आलम है कि इससे परेशान विभागीय मंत्री दफ्तर में नहीं बैठ रहे हैं.

कई मंत्री तो पटना भी छोड़ चुके हैं. ऐसे में सिफारिश भरे पत्रों के आने से विभाग के अधिकारी परेशान हो गये हैं. अधिकारी यह समझ नही पा रहे हैं कि आखिर में वे करें तो क्या करें?  सबसे ज्यादा दबाव ग्रामीण विकास विभाग में देखा जा रहा है, कारण कि प्रखंड स्तर की सभी विकास योजनाएं बीडीओ के नियंत्रण में संचालित होती हैं. पंचायती राज संस्थाएं भी उनसे निर्देशित होती हैं.

ऐसे में अगर पसंद का बीडीओ रहे तो वह सरकारी धन के जरिए उन लोगों को उपकृत करता है, जो विधायक की मदद करते हैं. विकास योजनाओं से होने वाली आमदनी के बंटवारा में भी परेशानी नहीं होती है. इसलिए विधायकों के लिए बीडीओ का पद बेहद अहम होता है. 

वहीं, सरकार भी अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग में सामाजिक समीकरण का ख्याल रखती है, लेकिन विधायक अपनी जात पर ही ज्यादा भरोसा कर रहे हैं. एक विधायक के क्षेत्र में कई प्रखंड होते हैं और हर प्रखंड में विधायक के स्वजातीय अधिकारी की पोस्टिंग नया विवाद खड़ा कर सकती है.

ऐसा नहीं कि सिफारिश करने वालों में केवल सत्तारूढ़ दल के विधायक हैं, बल्कि विपक्षी दलों के विधायक भी सिफारिश लेकर पहुंच रहे हैं. सिफारिश करने वालों में दूसरे विभाग के मंत्री भी पीछे नहीं हैं. पत्र भेजने वालों में कई मंत्रियों के नाम भी शामिल हैं. बिहार में कुल 534 प्रखंड हैं. अब विभाग के सामने धर्मसंकट यह है कि वह किसे खुश करे और किसे नाराज करे.

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