बिहारः जूनियर डॉक्टर्स हड़ताल पर, पटना पीएमसीएच समेत तमाम अस्पतालों में स्वास्थ्य व्यवस्था का बुरा हाल, जानें क्या मांग
By एस पी सिन्हा | Updated: August 22, 2022 16:14 IST2022-08-22T16:13:29+5:302022-08-22T16:14:27+5:30
बिहारः जूनियर डॉक्टर्स के हड़ताल पर चले जाने से स्वास्थ्य सेवा बुरी तरह से प्रभावित हुई है। इमरजेंसी सेवा को दूर रखा गया है। बिहार में 9 मेडिकल कॉलेजों में इस समय स्वास्थ्य व्यवस्था प्रभावित है।

बड़ी संख्या में मरीजों ने निजी अस्पतालों की राह पकड़ ली।
पटनाः बिहार के सभी जूनियर डॉक्टर्स अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर चले गये हैं, जिससे राज्य की राजधानी पटना के पीएमसीएच समेत तमाम अस्पतालों में स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है। डॉक्टर आज सुबह में ही अपने हाथों में अपनी मांगों से संबंधित तख्ती लेकर निकले और अस्पताल पहुंचने के साथ ओपीडी बंद करा दिया।
आंदोलनकारियों की मांग है कि उनको उनका मानेदय नहीं मिल रहा है। इसे बढ़ाने की दिशा में दिए गए आवश्वासन भी कोरे कागज की तरह हैं। जूनियर डॉक्टर्स के हड़ताल पर चले जाने से स्वास्थ्य सेवा बुरी तरह से प्रभावित हुई है। हालांकि इमरजेंसी सेवा को इससे दूर रखा गया है।
उधर, स्वास्थ्य महकमे की जिम्मेदारी संभाल रहे उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के लिए यह सरकार में आने के बाद सबसे पहली चुनौती है। आंदोलनकारी डॉक्टरों के रुख को देखते हुए मरीजों के बीच अफरा-तफरी मच गई। मरीज इधर-उधर भटकने लगे। बड़ी संख्या में मरीजों ने निजी अस्पतालों की राह पकड़ ली।
कहा जा रहा है कि सरकारी मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टरों का स्टाइपेंड में बढ़ोतरी नहीं हुई थी। छात्र 1 जनवरी 2020 से राशि बढ़ाने की मांग कर रहे थे। मांग पूरी नहीं होने पर पीएमसीएच समेत बिहार के सरकारी मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टर आज से धरना प्रदर्शन पर बैठ गए हैं। बिहार में 9 मेडिकल कॉलेजों में इस समय स्वास्थ्य व्यवस्था प्रभावित है।
अस्पताल परिसर में न सिर्फ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम पर नारेबाजी की गई, बल्कि पहली बार स्वास्थ्य मंत्री बने तेजस्वी यादव का भी जूनियर डॉक्टरों ने विरोध जताया है। उनके खिलाफ जूनियर डॉक्टरों ने नारेबाजी की। विरोध कर रहे जूनियर डॉक्टरों का कहना है कि बिहार सरकार हमें झूठे आश्वासन देती रही है।
पिछले कई सालों से यहां जूनियर डॉक्टरों का स्टाईपेंड नहीं बढ़ाया गया है। लगभग 10 साल से सरकार जूनियर डॉक्टरों को सिर्फ 15 हजार स्टाईपेंड दे रही है, जो कि आज की स्थिति के अनुसार बेहद कम है। सरकार डॉक्टरों को मजदूरों की तरह काम कराना चाहती है। नियम है कि हर तीन साल में स्टाईपेंड की राशि को रिन्यूल किया जाता है ताकि उसके आधार पर राशि बढ़ाई जा सका है।
इसमें रिन्यूअल 2020 में ही किया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसकी जगह सिर्फ आश्वासन दिया जाता रहा और सभी जूनियर डॉक्टरों से साथ बार बार सरकार धोखा देती रही। उल्लेखनीय है कि जूनियर डॉक्टर्स को बिहार में सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ माना जाता है।
पीएमसीएच समेत सरकारी मेडिकल कॉलेजों में जूनियर डॉक्टर इलाज की कमान संभालते रहे हैं। इनके हड़ताल पर चले जाने से ओपीडी सेवा पर भी असर पड रहा है। डॉक्टरों की हड़ताल का सबसे ज्यादा खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।