बिहार के विश्वविधायलयों में भ्रष्टाचार की जांच पर राज्यपाल फागू चौहान ने जताई आपत्ति, रोकने का आदेश, जानें पूरा मामला
By एस पी सिन्हा | Published: January 28, 2022 06:15 PM2022-01-28T18:15:45+5:302022-01-28T18:17:18+5:30
बिहार में विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार के मामलों पर जांच को लेकर राजभवन ने आपत्ति जताई है. राजभवन की ओर से कहा गया कि जांच की कार्रवाई बिना अनुमति के हो रही है.
पटना: बिहार के विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच से राज्यपाल फागू चौहान नाराज हो गये हैं. राज्यपाल ने बिहार सरकार को पत्र लिखकर यह पूछा है कि उनकी अनुमति के बगैर विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार की जांच कैसे हो रही है? उन्होंने इसे तत्काल रोकने का आदेश दिया है. राज्य में मगध विश्वविद्यालय के साथ ही अन्य विश्वविद्यालयों में विशेष निगरानी की कार्रवाई पर राजभवन ने सवाल उठाए हैं.
राज्यपाल सह कुलाधिपति फागू चौहान के निर्देश पर उनके प्रधान सचिव राबर्ट एल चोंग्थू ने राज्य के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी को एक पत्र भेजा है. इसमें बगैर कुलधिपति की अनमुति इस प्रकार की कार्रवाई पर आपत्ति की गई है. मुख्य सचिव ने कहा कि इसकी समीक्षा की जा रही है.
राजभवन को भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच पर आपत्ति क्यों?
बिहार के राज्यपाल ही विश्वविद्यालयों के प्रमुख यानि कुलाधिपति होते हैं. बिहार के कई विश्वबिद्याल्यों में भ्रष्टाचार के मामलों में राजभवन की संदिग्ध भूमिका पहले ही सामने आ चुकी है. इसके बाद 25 जनवरी को चोंग्थू ने मुख्य सचिव को भेजे पत्र में लिखा है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 (यथा संशोधिक -2018) के सेक्शन 17ए में प्रविधान का अक्षरश: पालन नहीं किया जा रहा है.
पत्र में कहा गया है कि विशेष निगरानी इकाई वित्तीय प्रकरण में सीधे सूचनाएं मांग रही हैं. बिना कुलाधिपति की अनुमति ऐसा किया जाना गलत है. इस प्रकार की कार्रवाई से विश्वविद्यालय की स्वायतता पर कुठराघात हो रहा है और शैक्षणिक वातावरण प्रभावित हो रहा है.
हाल में सामने आए हैं भ्रष्टाचार के कई मामले
दरअसल, राज्य के ज्यादातार विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार के कई काले कारनामे सामने आ चुके हैं. बिहार सरकार की विशेष निगरानी इकाई ने मगध विश्वविद्यालय के कुलपति के ठिकानों पर छापा मारा था तो भ्रष्टाचार का कारखाना सामने आ गया था.
कुलपति राजेंद्र प्रसाद के ठिकानों से करोड़ो रुपये नगदी और करोड़ों की संपत्ति के कागजात मिले थे. उनके पास से विश्वविद्यालयों में हुए भारी घपले के सबूत भी बरामद हुए थे. वहीं, अरबी फारसी विश्वविद्यालयों से लेकर दूसरे कई विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार के दर्जनों गंभीर मामले सामने आये थे.
इसके बाद बिहार सरकार की विशेष निगरानी ईकाई विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार की जांच करने में लगी है. पिछले वर्ष 17 नवंबर को विशेष निगरानी इकाई ने मगध विश्वविद्यालय के कुलपति के खिलाफ 30 करोड़ की हेरफेर के मामले में कार्रवाई की थी.
इस मामले में 20 दिसंबर को मगध विश्वविद्यालय के रजिस्टार पुष्पेन्द्र प्रसाद वर्मा और प्रोक्टर प्रो. जयनंदन प्रसाद सिंह समेत चार पदाधिकारयों को एसवीयू ने पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया था. ऐसे में राज्यपाल के प्रधान सचिव द्वारा राज्य के मुख्य सचिव को भेजी गयी चिट्ठी बेहद दिलचस्प है.
राजभवन कह रहा है कि भ्रष्टाचार की जांच से विश्वविद्यालयों में भय का माहौल उत्पन्न हो गया है. पदाधिकारियों और कर्मचारियों पर मानसिक दबाव पड़ रहा है. विश्वविद्यालयों में पढाई का माहौल खराब हो रहा है. राजभवन कह रहा है कि अगर जांच ही करनी है तो हमसे अनुमति लो. भ्रष्टाचार निरोधक कानून में भी ये उल्लेखित है कि राज्यपाल की मंजूरी से ही कोई भी जांच हो सकती है.
क्या कहते हैं नियम?
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 में धारा 17-ए में यह प्रविधान है कि किसी लोक सेवा के शासकीय कृत्य के निर्वहन में की गई सिफारिश या गड़बड़ी के संबंध जांच या पूछताछ बिना शासन की अनुमति के नहीं की जा सकेगी. इसके पहले संबंधित पुलिस या जांच एजेंसी को शासन को तमाम दस्तावेज देकर अनुमति मांगनी होगी. दस्तावेज अध्ययन के बाद शासन कार्रवाई करने के संबंध में फैसला लेगा.