बिहार: सरकार देती है दो हजार रुपये, फिर भी लावारिस लाशों को नहीं मिल पा रहे कफन

By एस पी सिन्हा | Updated: June 26, 2019 16:35 IST2019-06-26T16:34:54+5:302019-06-26T16:35:13+5:30

कहीं से सड़ी-गली लाशों को एकत्र किया जाता है, फिर एक साथ सब का निबटारा किया जाता है, तो कहीं इन्हें गंगा या अन्य नदियों में बहा दिया जाता है, तो कहीं लाशों के ढेर पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी जाती है.  

Bihar: Government gives Rs two thousand for unclaimed corpse funeral but even shroud not given | बिहार: सरकार देती है दो हजार रुपये, फिर भी लावारिस लाशों को नहीं मिल पा रहे कफन

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित एसकेएमसीएच अस्पताल परिसर के पिछले भाग में मिले नरकंकाल के बाद यह बात सामने आने लगी है कि सूबे में धन की कमी बताकर लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार बेहद अमानवीय तरीके से किया जा रहा है. नियमानुसार शव के अंतिम संस्कार के लिए सरकारी तौर पर दो हजार रुपये देने का प्रावधान है. लेकिन यह भी एक समान नहीं है.

सूबे में हालात ऐसे हैं कि धन की कमी की वजह से राज्य के सभी 38 जिलों में लावारिस लाशों को कफन तक मयस्सर नहीं हो रहा है. ऐसे में सरकारी दिशा-निर्देश की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, लेकिन इसकी मॉनिटरिंग करने वाला भी कोई नहीं है. नियमानुसार प्रत्येक लावारिस लाश को पहचान के लिए 72 घंटे तक सुरक्षित रखा जाना है. इसके बाद ही उसका अंतिम संस्कार कराना है. लेकिन सूबे के किसी भी सदर, रेफरल व अन्य अस्पतालों में लावारिस लाशों को 72 घंटे तक सुरक्षित रखने का कोई मुकम्मल इंतजाम नहीं है.

हालात ये हैं कि स्वास्थ्य विभाग एवं पुलिस प्रशासन के बीच फंसी पूरी प्रक्रिया के बीच लावारिश लाशों को देखने वाला तक नहीं है. कहीं से सड़ी-गली लाशों को एकत्र किया जाता है, फिर एक साथ सब का निबटारा किया जाता है, तो कहीं इन्हें गंगा या अन्य नदियों में बहा दिया जाता है, तो कहीं लाशों के ढेर पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी जाती है.  

बताया जाता है कि पुलिस प्रशासन द्वारा लावारिस लाशों के निबटारे में कम राशि के प्रावधान की दलील दी जाती है. पुलिस अधिकारियों की मानें तो लाश उठवाने व पोस्टमार्टम के बाद दाह संस्कार करवाने तक कुल खर्च लगभग छह से सात हजार रुपया आता है, जबकि प्रशासन इसके लिए मुश्किल एक से तीन हजार रुपये का भुगतान करता है. मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच में दो हजार तो दरभंगा मेडिकल कॉलेज और पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एक हजार रुपये तो गया मेडिकल कॉलेज में तीन हजार रुपये प्रति लाश दिए जाते हैं. वहीं, लावारिस लाशों के निबटारे के लिए रोगी कल्याण समिति के माध्यम से राशि का भुगतान किया जाता है.

बताया जाता है कि मधुबनी जिला अस्पताल में प्रति माह दस तो पीएमसीएच में औसतन 30 लाशें प्रति माह आती हैं. वहीं, गया में पिछले तीन माह में 13 लावारिस लाशें आईं. शवों के दाह-संस्कार के लिए रोगी कल्याण समिति द्वारा राशि दी जाने वाली राशि से शव के लिए कफन, फूल माला, लकड़ी एवं अन्य सामग्री की खरीद की जानी है. इसी में शवदाहगृह का शुल्क भी शामिल होता है. जहां शवदाह गृह नहीं है, वहां पारंपरिक तरीके से अंतिम संस्कार किया जाना है.

वैसे, कितनी राशि दी जाए, यह तय नहीं है. स्थानीय परिस्थिति के हिसाब से राशि दी जाती है. अंतिम संस्कार को लेकर पुलिस और अस्पताल प्रशासन की संयुक्त रूप से जिम्मेवारी होती है. अंतिम संस्कार के पहले मृतक की एक तस्वीर भी ली जाती है ताकि बाद में जानकारी हो सके कि किस व्यक्ति का अंतिम संस्कार किया गया है. अंतिम संस्कार में नगर निगम या नगरपालिका का प्रमाण पत्र जरूरी होता है. लेकिन धन के अभाव में शवों के अंतिम संस्कार की केवल खाना पूर्ति कर दी जाती है. इसी का उदाहरण है अभी मुजफ्फपुर के अस्पताल के पीछे मिले नरकंकालों का ढेर.  

Web Title: Bihar: Government gives Rs two thousand for unclaimed corpse funeral but even shroud not given

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