Bihar Bhumi Survey: 45000 राजस्व गांव में सर्वे, जुलाई 2025 तक समय सीमा, डिजिटलीकरण करना और सरकारी जमीन को कब्जे से मुक्त कराना, जानें असर
By एस पी सिन्हा | Updated: August 31, 2024 14:19 IST2024-08-31T14:17:10+5:302024-08-31T14:19:28+5:30
Bihar Bhumi Survey: भूमि विवाद कम होंगे और न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या में भी कमी आएगी।

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पटनाः बिहार में भूमि सर्वेक्षण का कार्य काफी तेजी से की जा रही है। राज्य के करीब 45 हजार राजस्व ग्रामों में सर्वे का कार्य किया जाना है। इस सर्वे कार्य को पूरा करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर जुलाई 2025 तक की समय सीमा तय की गई है। इस सर्वे का मुख्य उद्देश्य जमीन से जुड़े विवादों को कम करना, भूमि रिकॉर्ड्स का डिजिटलीकरण करना और सरकारी जमीन को कब्जे से मुक्त कराना आदि है। सर्वे हो जाने से भूमि संबंधित विवाद और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता बढ़ेगी। दरअसल बिहार में आजादी के पहले जमीन का सर्वे किया गया था, बाद में साठ के दशक में रिवाइज्ड सर्वे किया गया। हालांकि, यह पूरा नहीं हो पाया। हाल यह है कि सरकार के पास कोई अपडेट रिकॉर्ड नहीं है कि जमीन का वर्तमान मालिक कौन है।
इसके चलते बिहार में लंबे समय से भूमि संबंधी विवाद एक गंभीर समस्या रही है। इन विवादों का मुख्य कारण भूमि की गलत माप और स्वामित्व अभिलेखों में अनियमितता है। नए सर्वेक्षण के तहत सभी भूमि की सही माप और स्वामित्व अधिकारों का सत्यापन किया जाएगा। इससे भूमि विवाद कम होंगे और न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या में भी कमी आएगी।
इससे न केवल भूमि स्वामियों को राहत मिलेगी बल्कि न्यायिक व्यवस्था पर दबाव भी कम होगा। वहीं, जमीन सर्वे कराने का मकसद यह है कि जमीन के रिकॉर्ड को सरकार और अधिक पारदर्शी बनाना चाहती है। इसके साथ ही बिहार में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिनकी पुश्तैनी जमीन का मौखिक बंटवारा हुआ है।
आशय यह कि परिवार के सदस्यों की संख्या के अनुरूप कागज पर उनके बीच पैतृक जमीन का बंटवारा नहीं किया गया है। उनके पास कोई लिखित दस्तावेज नहीं है। सर्वे के लिए मौखिक बंटवारा मान्य नहीं है। अब इसके लिए सभी भाइयों व बहनों के हस्ताक्षर वाला कागजात तैयार करना होगा। यदि किसी भाई या बहन की मौत हो चुकी है तो उसके सभी बच्चे बंटवारे के उस पेपर पर हस्ताक्षर करेंगे।
बिहार में अब भी जो खतियान इस्तेमाल में है, वह काफी पुराना है। अधिकतर जगहों पर यह 1910 तक का बना हुआ है। जब यह पुराना हो जाता है तो इसके कई दावेदार हो जाते हैं क्योंकि तब तक परिवार कई हिस्सों में बंट चुका होता है। किंतु उनके नाम पर कुछ होता नहीं है। डिजिटल रिकॉर्ड होने से न केवल भूमि मालिकों को लाभ होगा, बल्कि प्रशासनिक प्रक्रियाओं में भी तेजी आएगी।
अब किसी भी भूमि के स्वामित्व का पता ऑनलाइन लगाया जा सकेगा, जिससे भ्रष्टाचार की संभावना भी कम होगी। जमीन का सही और अपडेट रिकॉर्ड होने से जमीन खरीदने-बेचने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी। लोग बिना किसी संदेह के जमीन खरीद-बेच सकेंगे।
भूमि के सटीक आंकड़ों से सरकार को कृषि, सिंचाई और अन्य विकास योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू करने में मदद मिलेगी। किसानों और अन्य लाभार्थियों को समय पर सही लाभ मिल सकेगा, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति में भी सुधार आएगा।