पटनाः बिहार में जारी सियासी लड़ाई अब अपने निर्णायक मुकाम पर पहुंच चुका है. आज तीसरे व अंतिम चरण का मतदान संपन्न होने के साथ ही लोकतंत्र का ‘महापर्व’ भी थम गया.
अब सबकी निगाहें 10 नवंबर को चुनाव परिणाम पर टिक गई हैं. इसबार के चुनाव में एक तरफ जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने के संकेत दिए तो दूसरी ओर राजद नेता व महागठबंधन के मुख्यमंत्री चेहरा तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री पद के शुभारंभ के लिए दिन-रात एक किए. अब चुनाव के नतीजे बताएंगे कि जनता नीतीश कुमार को आशीर्वाद देकर ‘अंत भला तो सब भला’ करती है या तेजस्वी को ‘तय’ करती है. बिहार विधानसभा चुनाव में आखिरी चरण की 78 सीटों पर कांटे की टक्कर मानी जा रही है.
तीसरे चरण में मिथिलांचल और सीमांचल वाले इलाके में जदयू और राजद के बीच कड़ा मुकाबला है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रचार के अंतिम दिन इसे अपना आखिरी चुनाव बताकर इमोशनल कार्ड खेला है. तीसरे चरण की 78 सीटों में से 45 पर एनडीए का कब्जा है. जिनमें से जदयू के पास सबसे ज्यादा 25 सीटें हैं और भाजपा के पास 20 सीटें हैं.
बता दें कि 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के महागठबंधन ने इस इलाके में जबर्दस्त जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार समीकरण बदल चुके हैं. अंतिम चरण तय करेगा कि किसकी सरकार बनेगी. इस चरण की बाजी किसके हाथ लगेगी. यह तय करने में 18 से 19 साल आयु वाले कुल चार लाख 32 हजार 765 फर्स्ट टाइम वोटर की बहुत बड़ी भूमिका रहेगी.
इसी ताकत के चलते हर पार्टी और उम्मीदवारों की नजर युवाओं और नये मतदाताओं पर टिकी है. इस चुनाव में सभी दलों ने सोशल मीडिया का खूब सहारा लिया. भाजपा पहली बार वोट डालने वाले मतदाताओं पर ज्यादा फोकस कर रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अपनी हर रैली में पुराने मतदाताओं को संबोधित करते यह दोहराते रहे हैं कि ‘नयी पीढ़ी को जरूर बता दीजियेगा कि 15 साल पहले क्या- क्या होता था’.
नौकरी- रोजगार को फोकस में रखा चुनाव में टर्निंग प्वाइंट की भूमिका निभाते रहे
महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने पूरे प्रचार के दौरान नौकरी- रोजगार को फोकस में रखा चुनाव में टर्निंग प्वाइंट की भूमिका निभाते रहे. अब चुनाव परिणाम को लेकर राजनीतिक दल जो भी दावे करें, मतदान के प्रतिशत और वोटर के मूड के आधार पर माना जा रहा है कि अधिकतर सीटों पर जीत- हार का फैसला करीब का होगा.
ऐसे में कहा जा सकता है कि अंतिम चरण की 78 विधानसभा सीटों पर फर्स्ट टाइम वोटर का निर्णय ही हार-जीत तय करेगा. कुल मतदाताओं में इनकी भागेदारी करीब दो फीसदी है. संख्या की बात करें, तो तीसरे चरण की प्रत्येक विधानसभा सीट पर औसतन 5548 मतदाता 18 से 19 साल आयु वाले हैं. ये अपने जीवन का पहला वोट इस चुनाव में करने जा रहे हैं.
तीसरे चरण में महिला मतदाताओं का रुख भी जीत का आधार बनेगा. तीसरे चरण में कुल 2.35 करोड़ वोटर हैं. इनमें छह लाख 61 हजार 516 वोटर नये मतदाता हैं. इनका नाम एक जनवरी 2020 के बाद मतदाता सूची में शामिल हुआ है. पुरुष वोटर 281436 तथा महिलाओं की संख्या 379956 है. नये वोटरों में महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले करीब एक लाख अधिक है.
मिथिलांचल के सीतामढ़ी, मधुबनी और दरभंगा जिले में वोट डाले गये
तीसरे व अंतिम दौर के चुनाव में मिथिलांचल के सीतामढ़ी, मधुबनी और दरभंगा जिले में वोट डाले गये. यहां ब्राह्मण वोटरों का दबदबा है और इन इलाकों में एनडीए की मजबूत पकड़ मानी जाती है. ब्राह्मण के अलावा यादव मतदाता भी अहम साबित होते हैं. ऐसे में महागठबंधन और एनडीए के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है.
उधर, सीमांचल के अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार जिले में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने मुकाबले को कडा बना दिया है. 24 सीटों वाले सीमांचल में ओवैसी की पार्टी की मजबूती ने महागठबंधन की नींदे उड़ा दी है. अभी तक राजद का कोर वोटर मुसलमान और यादव उसके साथ नजर आ रहा है, लेकिन एआईएमआईएम के खाते में जाना वाला हर एक वोट महागठबंधन को नुकसान पहुंचाएगा. इन दोनों दलों के बीच वोटों के बिखराव के बीच ध्रुवीकरण हुआ तो भाजपा यहां अपना कमाल दिखा सकती है. तीसरे दौर की वोटिंग में कई सीटों पर अति पिछडे़ मतदाता अहम भूमिका में हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रचार के दौरान उन्हें लुभाने की पूरी कोशिश की थी. वहीं, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के कारण एनडीए को मल्लाहों का भी पूरा समर्थन इन इलाकों में मिलने का अनुमान है.
बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर (एंटी इनकंबेंसी) है
हालांकि तेजस्वी यादव की रैलियों में उमड़ी भीड़ इस बात का इशारा करती है कि बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर (एंटी इनकंबेंसी) है. कोरोना के दौरान लचर व्यवस्था का आरोप झेलती सरकार बेरोजगारी और गरीबी के मुद्दे पर बुरी तरह से घिरी है. एनडीए की विरोधी पार्टियों ने लॉकडाउन का मुद्दा उछालकर सरकार को और गंभीर चिंता में डाल दिया. लॉकडाउन के दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों से बिहार के गांव-घर पहुंचे प्रवासी अब रोजगार की मांग कर रहे हैं.
विपक्षी दलों ने इस माहौल को भांपते हुए अपना पूरा जोर लगाया और सरकार के खिलाफ पूरी लहर झोंक दी. जबकि नीतीश कुमार भले कोरोना और लॉकडाउन में अपने काम गिना रहे हैं. लेकिन विपक्ष ने जनता में यह बात बैठा दी है कि बेरोजगारी और गरीबी की समस्या आज की नहीं है बल्कि पिछले 15 वर्षों में ज्यादा विकराल हुई है और मौजूदा सरकार ने इसके लिए कुछ नहीं किया. तेजस्वी यादव ने इस माहौल का फायदा उठाते हुए 10 लाख रोजगार का वायदा किया है.
वे रैलियों में यह भी कहते सुने गए कि नीतीश कुमार अब थक गए हैं और उनसे बिहार नहीं संभल सकता. लिहाजा जनता उन्हें काम का मौका दे. वहीं, नीतीश कुमार के खिलाफ बचा-खुचा प्रयास लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने पूरी कर दी. लोजपा की पार्टी बिहार में एनडीए का हिस्सा नहीं है, लेकिन केंद्र में है.
महागठबंधन के ‘धर्म’ से अलग उन्होंने नीतीश कुमार के खिलाफ आवाज तेज की और तेजस्वी के सुर में अपनी बात रखते हुए ऐलान कर दिया कि नीतीश कुमार किसी भी सूरत में अगले मुख्यमंत्री नहीं हो सकते. चिराग ने यहां तक कहा कि नीतीश कुमार के ‘घोटालों’ के खिलाफ जांच होगी और उन्हें जेल भी जाना होगा.
चिराग पासवान बिहार की रैलियों में यह कहते सुने गए कि नीतीश कुमार ने अपने स्तर पर कुछ नहीं किया, लेकिन केंद्र के काम जरूर गिना दिए. चिराग पासवान का कहना है कि बिहार में अगली सरकार भाजपा की बनेगी और लोजपा उसमें अहम हिस्सेदारी निभाएगी.
जानकारों के अनुसार इसबार के चुनाव में अच्छी बात यह रही कि पार्टियों ने विकास पर भी अपनी बातें रखीं और बेरोजगारी-गरीबी का मुद्दा बुलंद रखा. नीतीश कुमार जहां सात निश्चय योजना के तहत बिहार को चहुंमुखी विकास के रास्ते पर दौड़ा देने का वादा करते रहे तो दूसरी ओर तेजस्वी यादव ने ‘नौकरी संवाद’ कर यह बताया कि 10 लाख रोजगार देने का वादा कैसे पूरा होगा. अब नजर 10 नवंबर पर टिक गई है कि क्या नीतीश कुमार बिहार के तख्तो-ताज पर अंतिम बार शासन कर संन्यास ले लेंगे या बिहार की जनता तेजस्वी यादव का धमाकेदार शुभारंभ कराएगी.