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भीमा कोरेगांव केसः SC का SIT बनाने से इनकार, कहा-आरोपी नहीं तय कर सकता कौन एजेंसी जांच करेगी

By रामदीप मिश्रा | Updated: September 28, 2018 11:57 IST

Bhima Koregaon case: भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में कवि वरवर राव, वकील सुधा भारद्वाज, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनॉन गोंज़ाल्विस नजरबंद हैं। 

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नई दिल्ली, 28 सितंबर:  भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में नजरबंद 5 सामाजिक कार्यकर्ताओं की शुक्रवार को चार हफ्ते और नजरबंदी बढ़ा दी गई है। सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने अपना फैसला सुनाते समय एसआईटी का गठन करने से साफ इनकार कर दिया है। एससी की तीन जजों की पीठ ने फैसला सुनाया। फैसला सुनाते हुए जस्टिस खानविलकर ने कहा कि आरोपी यह नहीं चुनाव कर सकता है कि कौन सी जांच एजेंसी को मामले की जांच करनी चाहिए।

बता दे, भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में कवि वरवर राव, वकील सुधा भारद्वाज, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनॉन गोंज़ाल्विस नजरबंद हैं।सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भीमा-कोरेगांव केस में गिरफ्तार किए गए सभी आरोपी ऐक्टिविस्ट्स राहत के लिए ट्रायल कोर्ट जा सकते हैं।इससे पहले 20 सितंबर को मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने दोनों पक्षों के वकीलों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। इस मामले की जांच कर रही महाराष्ट्र पुलिस को पीठ ने केस की डायरी पेश करने के लिए कहा था। बता दें कि पांचों कार्यकर्ताओं 29 अगस्त से अपने-अपने घरों में नजरबंद हैं।  

28 अगस्त को हुई थी गिरफ्तारीबता दें कि 28 अगस्त को पुणे पुलिस ने अलग-अलग जगहों से इन पांचों सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था। 29 अगस्त को प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने इन कार्यकर्ताओं को छह सितंबर तक घरों में ही नजरबंद रखने का आदेश देते हुये महाराष्ट्र पुलिस को नोटिस जारी किया था। इस नोटिस के जवाब में ही राज्य पुलिस ने बुधवार 5 सिंतबर को हलफनामा दाखिल किया था।

न्यायालय ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में इन कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर तथा अन्य की यचिका पर 29 अगस्त को सुनवाई के दौरान स्पष्ट शब्दों में कहा था कि ''असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व'' है। 

क्या था पूरा मामलाएक जनवरी 1818 को ईस्ट इंडिया कंपनी और पेशवा बाजीराव द्वितीय की सेना के बीच पुणे के निकट भीमा नदी के किनारे कोरेगांव नामक गाँव में युद्ध हुआ था। एफएफ स्टॉन्टन के नेतृत्व में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने पेशवा की सेना को गंभीर नुकसान पहुँचाया। ब्रिटिश संसद में भी भीमा कोरेगांव युद्ध की प्रशंसा की गयी। ब्रिटिश मीडिया में भी इस युद्ध में अंग्रेज सेना की बहादुरी के कसीदे काढ़े गये। इस जीत की याद में ईस्ट इंडिया कंपनी ने कोरेगांव में 65 फीट ऊंचा एक युद्ध स्मारक बनवाया जो आज भी यथावत है। भीमा कोरेगांव के इतिहास में बड़ा मोड़ तब आया जब बाबासाहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने कोरेगांव युद्ध की 109वीं बरसी पर एक जनवरी 1927 को इस स्मारक का दौरा किया। 

शिवराम कांबले के बुलावे पर ही बाबासाहब कोरेगांव पहुंचे थे। बाबासाहब ने भीमा कोरेगांव स्मारक को ब्राह्मण पेशवा के जातिगत उत्पीड़न के खिलाफ महारों की जीत के प्रतीक के तौर पर इस युद्ध की बरसी मनाने की विधवित शुरुआत की। इस साल एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव की 200वीं बरसी पर आयोजित आयोजन का कई दक्षिणपंथी संगठनों ने विरोध किया था। विरोध करने वालों में अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा, हिन्दू अगाड़ी और राष्ट्रीय एकतमाता राष्ट्र अभियान ने शामिल थे। ये संगठन इस आयोजन को राष्ट्रविरोधी और जातिवादी बताते हैं।

टॅग्स :भीमा कोरेगांवसुप्रीम कोर्ट
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