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बटुकेश्वर दत्त पुण्यतिथि: देश के लिए 15 साल जेल में रहे, आजादी के बाद रोजी-रोटी के लिए घिसनी पड़ीॆ एडियाँ

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: July 20, 2018 07:27 IST

बटुकेश्वर दत्त दत्त क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के करीबी माने जाते थे। दत्त की भगत सिंह से दोस्ती कानपुर में हुई जो अंत तक कायम रही।

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ब्रिटिश शासन से भारत को आजाद कराने की लड़ाई के दौरान बहुत ही मशहूर रहा जगदम्बा प्रसाद मिश्र "हितैषी" का निम्न शेर आपने भी सुना होगा।

"शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही आखिरी निशाँ होगा।" 

किसी और देश के लिए भले ही यह बात सही हो लेकिन अपने देश में शहीदों की चिताओं पर मेले जुड़ने की बात काफी हद तक झूठ साबित हुई है। हमारे देश में शहीद वही है जिसे कोई राजनीतिक पार्टी गोद ले ले या कोई निर्माता-निर्देशक उसके जीवन पर फिल्म बनाए। वतन पर मरने वालों से भी ज्यादा बेकद्री हमारे देश में उनकी होती है जिन्होंने निस्वार्थ भाव से देश की सेवा की और जिंदा रहकर देश को आजाद होते देखा। बटुकेश्वर दत्त ऐसे ही अभागे बलिदानियों में एक थे। 

आज भूले-बिसरे कुछ लोग बटुकेश्वर दत्त को याद भी करते हैं तो भगत सिंह के साथी के रूप में। दत्त की सबसे ज्यादा चर्चा इस बात के लिए होती है कि उन्होंने आठ अप्रैल 1929 को ब्रिटिश सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में भगत सिंह के साथ बम फेंका और था "बहरों को सुनाने के लिए आवाज की जरूरत होती है" नामक पर्चा फेंका था। इस पर्चे में बताया गया था कि क्रांतिकारी पार्टी ने ब्रिटिश पुलिस के लाठीचार्ज की वजह लाला लाजपत राय की मौत और पब्लिक सेफ्टी बिल के विरोध में यह कार्रवाई की थी। भगत सिंह और दत्त ने असेंबली में "इंकलाब जिंदाबाद" का नारा भी लगाया था। बटुकेश्वर दत्त को असेंबली बम काण्ड के लिए आजीवन कारावास की सजा हुई थी। भगत सिंह असेंबली बम काण्ड के अलावा लाहौर षडयंत्र में भी दोषी पाये गये थे। लाहौर षडयंत्र में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनायी गयी। दत्त को असेंबली बम काण्ड के लिए कालापानी की सजा हुई। उन्हें अण्डमान निकोबार स्थित सेलुलर जेल भेज दिया गया।

बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवंबर 1910 को पश्चिम बंगाल के एक गांव में हुआ था। दत्त ने कानपुर से हाई स्कूल की पढ़ाई की थी। यहीं वो हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े। इस दौरान उन्होंने बम बनाना सीखा था। दत्त  क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के करीबी माने जाते थे। भगत सिंह ने कुछ समय तक कानपुर में रहे थे। यहीं से भगत सिंह और दत्त की दोस्ती हुई। असेंबली बम काण्ड से लेकर जेल में सजा काटने तक दोनों की दोस्ती कायम रही। भगत सिंह, सुखेदव और राजगुरु के साथ 1931 में शहीद हो गये। वहीं दत्त 1938 में आजीवन कारावास की सजा काटकर जेल से छूटे लेकिन उन्हें क्षय रोग (टीबी) हो चुका था। जेल से छूटने के बाद बटुकेश्वर दत्त ने महात्मा गांधी  द्वारा शुरू किये गये "भारत छोड़ो आंदोलन" में हिस्सा लिया। अंग्रेजों ने दत्त को फिर से चार साल जेल की सजा सुना दी और वो 1945 में जेल से रिहा हुए।

बटुकेश्वर दत्त के जीवनी "भगत सिंह के साथ बटुकेश्वर दत्त" के लेख अनिल वर्मा ने अपनी किताब में बताया है कि दत्त ने आजादी के बाद नवंबर 1947 में शादी कर ली। दत्त आजादी के बाद पटना में रहने लगे। अपना परिवार का भरण-पोषण के लिए दत्त के पास कोई साधन नहीं था। दत्त ने एक सिगरेट कंपनी के एजेंट की नौकरी कर ली। आर्थिक तंगी से उबरने के लिए उन्होंने बिस्कुट और डबलरोटी का कारखाना भी शुरू किया लेकिन सफलता नहीं मिली। दत्त ने टूरिस्ट एजेंट और ट्रांसपोर्ट का भी काम किया लेकिन वो उसमें भी विफल रहे। 

उनकी पत्नी स्कूल टीचर थीं और उन्हीं की कमायी से दत्त परिवार का खर्च चलता रहा। 1963 में सरकार जागी और दत्त को करीब पांच महीने के लिए विधान परिषद सदस्य बनाया गया। 1964 में दत्त की तबीयत जब बहुत ज्यादा बिगड़ गयी तो उनके पुराने साथियों ने देश के कर्णधारों का ध्यान दत्त के योगदान की तरफ खींचा। रातोंरात उन्हें इलाज के लिए दिल्ली लाया गया। दत्त को एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। 20 जुलाई 1965 को भारत का यह सपूत इस दुनिया को अलविदा कह गया। 

दत्त की आखिरी इच्छा थी कि उनके मित्र भगत सिह की समाधि के बगल में ही उनकी समाधि बनायी जाए। भारत सरकार ने उनकी यह इच्छा पूरी की और पंजाब के हुसैनीवाला में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की समाधि के पास ही बटुकेश्वर दत्त की समाधि बनायी गयी। 

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