भाकियू (भानु) का कृषि कानूनों के खिलाफ लबित याचिकाओं में पक्षकार बनने के लिये न्यायालय में आवेदन

By भाषा | Updated: December 11, 2020 20:27 IST2020-12-11T20:27:04+5:302020-12-11T20:27:04+5:30

Bakiu (Bhanu) application to the court to be a party to petitions written against agricultural laws | भाकियू (भानु) का कृषि कानूनों के खिलाफ लबित याचिकाओं में पक्षकार बनने के लिये न्यायालय में आवेदन

भाकियू (भानु) का कृषि कानूनों के खिलाफ लबित याचिकाओं में पक्षकार बनने के लिये न्यायालय में आवेदन

नयी दिल्ली, 11 दिसंबर तीन केन्द्रीय कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमा पर किसानों के आन्दोलन के बीच ‘भारतीय किसान यूनियन, भानु’ ने इन कानूनों की संवैधानिक वैधता को लेकर उच्चतम न्यायालय में लंबित याचिकाओं में पक्षकार बनने के लिये आवेदन दायर किया है। कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 17 दिसंबर का सुनवाई होने की संभावना है।

भारतीय किसान यूनियन (भानु) के मथुरा निवासी अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने द्रमुक सांसद तिरूचि शिवा की याचिका में पक्षकार बनने के लिये यह आवेदन दायर किया है।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबड़े, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने 12 अक्टूबर को तीन कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली राजद सांसद मनोज झा, द्रमुक सांसद तिरूचि शिवा और छत्तीसगढ़ किसान कांग्रेस के राकेश वैष्णव की याचिकाओं पर केन्द्र को नोटिस जारी किये थे। केन्द्र को चार सप्ताह के भीतर नोटिस का जवाब देना था।

अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने उसी समय पीठ से कहा कि इन सभी याचिकाओं पर केन्द्र एक समेकित जवाब दाखिल करेगा।

न्यायालय में मामलों की स्थिति दर्शाने वाले विवरण के अनुसार इसके 17 दिसंबर को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध होने की संभावना है।

संसद के मानसून सत्र में तीन विधेयक - कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक, 2020, कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 पारित किये गये थे। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी मिलने के बाद तीनों विधेयकों को कानून का दर्जा मिल गया था और ये 27 सितंबर से प्रभावी हो गये थे।

इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि संसद द्वारा पारित कृषि कानून किसानों को कृषि उत्पादों का उचित मुल्य सुनिश्चित कराने के लिये बनाई गई कृषि उपज मंडी समिति व्यवस्था को खत्म कर देंगे।

वैष्णव की ओर से दलील दी गयी है कि ये कानून राज्य के अधिकारों में हस्तक्षेप करते हैं और ऐसी स्थिति में शीर्ष अदालत को इन पर विचार करना चाहिए।

अधिवक्ता फौजिया शकील के माध्यम से याचिका दायर करने वाले मनोज झा ने कहा कि इन कानून से सीमांत किसानों का बड़े कापोर्रेट घरानों द्वारा शोषण की संभावना बढ़ जायेगी। याचिका में कहा गया है कि यह कार्पोरेट के साथ कृषि समझौते पर बातचीत की स्थिति असमानता वाली है और इससे कृषि क्षेत्र पर बड़े घरानों का एकाधिकार हो जायेगा।

द्रमुक नेता तिरूचि शिवा ने अपनी याचिका में कहा है कि ये नये कानून पहली नजर में ही असंवैधानिक, गैरकानूनी और मनमाने हैं। उन्होंने दलील दी है कि ये कानून किसान और कृषि विरोधी हैं। याचिका में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान बनाये गये इन कानूनों का एकमात्र मकसद सत्ता से नजदीकी रखने वाले कुछ कार्पोरेशन को लाभ पहुंचाना है।

इस याचिका में कहा गया है कि ये कानून कृषि उपज के लिये गुटबंदी और व्यावसायीकरण का मार्ग प्रशस्त करेंगे और अगर यह लागू हुआ तो यह देश को बर्बाद कर देगा क्योंकि बगैर किसी नियम के ये कार्पोरेट एक ही झटके में हमारी कृषि उपज का निर्यात कर सकते हैं।

केरल से कांग्रेस के एक सांसद टीएन प्रतापन ने भी नये किसान कानून के तमाम प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुये न्यायालय में याचिका दायर कर रखी है।

दूसरी ओर, सरकार का दावा है कि नये कानून में कृषि करारों पर राष्ट्रीय फ्रेमवर्क का प्रावधान किया गया है। इसके माध्यम से कृषि उत्‍पादों की बिक्री, फार्म सेवाओं, कृषि का कारोबार करने वाली फर्म, प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जुड़ने के लिए सशक्‍त करता है।

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Web Title: Bakiu (Bhanu) application to the court to be a party to petitions written against agricultural laws

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