Ayodhya Verdict: धर्म से जुड़े मामलों में याचिकाकर्ताओं की पहली पसंद हैं न्यायमूर्ति नजीर, ‘तीन तलाक’ मामले में थे शामिल

By भाषा | Updated: November 9, 2019 17:44 IST2019-11-09T17:44:34+5:302019-11-09T17:44:34+5:30

अयोध्या मामले पर फैसले में न्यायमूर्ति नजीर मुस्लिम पक्षकारों की दलीलों से सहमत नहीं हुए और वह एकमत से दिए गए उस फैसले का हिस्सा बन गए कि विवादित 2.77 एकड़ भूमि के कब्जे का अधिकार राम लला को दिया जाएगा।

Ayodhya Verdict: Justice Nazir is the first choice of petitioners in matters related to religion, involved in 'triple talaq' case | Ayodhya Verdict: धर्म से जुड़े मामलों में याचिकाकर्ताओं की पहली पसंद हैं न्यायमूर्ति नजीर, ‘तीन तलाक’ मामले में थे शामिल

न्यायमूर्ति नजीर उच्चतम न्यायालय की नौ सदस्यीय उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने अगस्त 2017 में ‘निजता के अधिकार’ को मौलिक अधिकार घोषित किया था।

Highlightsउन्हें कर्नाटक उच्च न्यायालय से पदोन्नति देकर उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बनाया गया था।प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने इस मामले पर निर्णय करने के लिए पांच सदस्यीय पीठ का गठन किया था।

अयोध्या भूमि विवाद मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाने वाली उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ में इकलौते मुस्लिम न्यायाधीश एस अब्दुल नजीर धर्म से जुड़े मामलों में याचिकाकर्ताओं की पहली पसंद हैं।

न्यायमूर्ति नजीर ‘तीन तलाक’ मामले में भी पांच सदस्यीय पीठ का हिस्सा थे लेकिन उन्होंने तत्कालीन भारत के प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर के साथ अल्पमत में फैसला दिया था। उच्चतम न्यायालय ने 3:2 से फैसला सुनाते हुए मुस्लिमों में फौरी ‘तीन तलाक’ की 1,400 साल पुरानी प्रथा को गैरकानूनी और असंवैधानिक ठहराया था।

हालांकि, अयोध्या मामले पर फैसले में न्यायमूर्ति नजीर मुस्लिम पक्षकारों की दलीलों से सहमत नहीं हुए और वह एकमत से दिए गए उस फैसले का हिस्सा बन गए कि विवादित 2.77 एकड़ भूमि के कब्जे का अधिकार राम लला को दिया जाएगा। उन्हें कर्नाटक उच्च न्यायालय से पदोन्नति देकर उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बनाया गया था।

अयोध्या मामले में संविधान पीठ का हिस्सा बनने से पहले न्यायमूर्ति नजीर उस तीन सदस्यीय पीठ का हिस्सा थे जिसने 2:1 बहुमत से अपने 1994 के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए वृहद पीठ गठित करने से इनकार कर दिया था। 1994 के फैसले में कहा गया था कि ‘‘मस्जिद इस्लाम धर्म के पालन में अनिवार्य हिस्सा नहीं है।’’

तीन सदस्यीय पीठ के 27 सितंबर 2018 के फैसले ने उच्चतम न्यायालय के अयोध्या भूमि विवाद मामले में सुनवायी करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया था जिसमें भारत के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने इस मामले पर निर्णय करने के लिए पांच सदस्यीय पीठ का गठन किया था।

सबसे पहले अयोध्या विवाद पर सुनवायी करने के लिए जो पांच सदस्यीय पीठ का गठन किया गया था उसमें न्यायाधीश अशोक भूषण के साथ न्यायमूर्ति नजीर का नाम शामिल नहीं था लेकिन दो न्यायाधीशों न्यायमूर्ति एन वी रमण और न्यायमूर्ति यू यू ललित के इनकार के बाद वे इस मामले का हिस्सा बन गए।

इन मामलों के अलावा न्यायमूर्ति नजीर उच्चतम न्यायालय की नौ सदस्यीय उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने अगस्त 2017 में ‘निजता के अधिकार’ को मौलिक अधिकार घोषित किया था। 1983 में वकील बने और कर्नाटक उच्च न्यायालय में वकालत करने वाले न्यायमूर्ति नजीर (61) को 12 मई 2003 में कर्नाटक उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया तथा उन्हें सितंबर 2004 में वहां स्थायी न्यायाधीश बनाया गया। उन्हें 17 फरवरी 2017 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। 

Web Title: Ayodhya Verdict: Justice Nazir is the first choice of petitioners in matters related to religion, involved in 'triple talaq' case

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