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मुस्लिमों को वैकल्पिक जमीन मुहैया कराते हुए SC ने कहा : गलत कृत्यों को ठीक किया जाना चाहिए

By भाषा | Updated: November 10, 2019 07:00 IST

अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर का रास्ता साफ करते हुए ऐतिहासिक निर्णय देते हुए प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि मुस्लिमों ने मस्जिद का त्याग नहीं किया और अदालत को सुनिश्चित करना चाहिए कि ‘‘गलत कृत्यों को ठीक किया जाए।’’

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ठळक मुद्देपीठ ने कहा, ‘‘अदालत अगर मुस्लिमों के हक को नजरअंदाज करती है तो न्याय नहीं होगा जिन्हें मस्जिद के ढांचे से ऐसे माध्यमों से वंचित कर दिया गया जिसे किसी धर्मनिरपेक्ष देश में नहीं किया जाना चाहिए था।’’ पीठ में न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर भी शामिल थे।

उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को फैसला दिया कि अयोध्या में मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिम पक्ष को पांच एकड़ वैकल्पिक जमीन आवंटित की जाएगी और कहा कि उनके धार्मिक स्थल को ‘‘गैर कानूनी तरीके से तोड़े’ जाने के बदले उन्हें जमीन दिया जाना आवश्यक है।

अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर का रास्ता साफ करते हुए ऐतिहासिक निर्णय देते हुए प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि मुस्लिमों ने मस्जिद का त्याग नहीं किया और अदालत को सुनिश्चित करना चाहिए कि ‘‘गलत कृत्यों को ठीक किया जाए।’’

सुन्नी वक्फ बोर्ड को जमीन आवंटित करने का निर्देश देने में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का प्रयोग करते हुए पीठ ने कहा कि जमीन मालिकाना विवाद के लंबित रहने के दौरान ‘‘मस्जिद का पूरा ढांचा सोच समझकर गिरा दिया गया।’’

पीठ ने कहा, ‘‘अदालत अगर मुस्लिमों के हक को नजरअंदाज करती है तो न्याय नहीं होगा जिन्हें मस्जिद के ढांचे से ऐसे माध्यमों से वंचित कर दिया गया जिसे किसी धर्मनिरपेक्ष देश में नहीं किया जाना चाहिए था।’’

पीठ में न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर भी शामिल थे।

उच्चतम न्यायालय ने 1045 पन्नों के फैसले में कहा कि संविधान हर धर्म को बराबरी का हक देता है और ‘‘सहिष्णुता तथा परस्पर शांतिपूर्ण सह अस्तित्व हमारे देश और यहां के लोगों की धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्धता को मजबूत करते हैं।’’

इसने कहा, ‘‘आवंटित भूमि का क्षेत्र तय करते हुए यह आवश्यक है कि मुस्लिम समुदाय को उनका धार्मिक ढांचा गैर कानूनी तरीके से तोड़े जाने के बदले भूमि दी जाए।’’

पीठ ने 18 दिसम्बर 1961 को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड अैर अयोध्या के नौ मुस्लिम निवासियों द्वारा दायर मुकदमे पर भी सुनवाई की जिसमें मांग की गई थी कि विवादित ढांचा को सार्वजनिक मस्जिद घोषित किया जाए जिसे आम रूप से ‘बाबरी मस्जिद’ कहा जाता है। इसमें आसपास की भूमि को सार्वजनिक मुस्लिम कब्रगाह भी घोषित करने की मांग की गई थी।

मुकदमे में दावा किया गया था कि बाबरी मस्जिद को मुगल शासक बाबर ने 433 वर्ष पहले मुस्लिमों के सार्वजनिक इबादल स्थल के तौर पर इस्तेमाल के लिए बनाया था। उन्होंने दावा किया कि मुकदमा की जरूरत 23 दिसम्बर 1949 को हुई जब हिंदुओं ने कथित तौर पर गलत रूप से उस स्थान पर प्रवेश किया और मस्जिद के अंदर मूर्तियां रखकर इसे अपवित्र कर दिया।

उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि ऐसा कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं पेश किया गया जिससे प्रतीत होता है कि मस्जिद के नीचे जमीन इसका मालिकाना हक साबित करती हो। पीठ ने कहा, ‘‘जो दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए गए वे बताते हैं कि ब्रिटेन की सरकार ने मस्जिद की देखभाल और देखरेख की मंजूरी दी थी।’’

पीठ ने दस्तावेजी साक्ष्यों का हवाला देते हुए कहा कि 1856-57 में सांप्रदायिक दंगा भड़कने से पहले हिंदुओं को परिसर में पूजा करने से नहीं रोका गया। पीठ ने गौर किया, ‘‘1856-57 के दंगों के बाद पूजा स्थल पर रेलिंग लगाकर इसे बांट दिया गया ताकि दोनों समुदायों के लोग पूजा कर सकें।’’

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