Ayodhya Verdict: जानिए क्या है आर्टिकल 142 जिसका इस्तेमाल कर सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के लिए ट्रस्ट बनाने का दिया आदेश
By विनीत कुमार | Published: November 9, 2019 08:13 PM2019-11-09T20:13:46+5:302019-11-09T20:13:46+5:30
अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 142 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आदेश दिये कि मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाया जाए और सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के लिए पांच एकड़ भूखंड आवंटित किया जाये।
सुप्रीम कोर्ट ने राज जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में शनिवार को सर्वसम्मति से फैसला दे दिया। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ करते हुये केंद्र को निर्देश दिया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिये किसी वैकल्पिक लेकिन प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ भूखंड आवंटित किया जाये। कोर्ट ने तीन महीने में केंद्र सरकार को एक ट्रस्ट बनाने को भी कहा जिसे विवादित जमीन मंदिर के लिए दी जाएगी।
खास बात ये है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 5 एकड़ जमीन की मांग नहीं की थी। साथ ही ये भी अहम है कि ट्रस्ट बनाने की भी मांग नहीं की गई थी। इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने इन बातों को अपने आदेश में रखा। दरअसल कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 142 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ये आदेश दिये।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने कहा, 'संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत इस न्यायालय में निहित शक्तियों के प्रयोग में, हम यह निर्देश देते हैं कि केंद्र सरकार द्वारा बनाई जाने वाली ट्रस्ट या निकाय में निर्मोही अखाड़ा को उस किस्म से उचित प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है, जैसे कि केंद्र सरकार ठीक समझती है।'
इस आदेश में ये भी कहा गया कि निर्मोही अखाड़ा को मंदिर निर्माण के लिए योजना तैयार करने में 'उचित भूमिका' सौंपी जाए। यह इस बात के बावजूद था कि निर्मोही अखाड़ा द्वारा दायर किए गए मुकदमे में चीफ जस्टिस गोगेई समेत जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस धनंजय वाई चन्द्रचूड, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने ये कहा कि निर्मोही अखाड़ा राम लला की मूर्ति का उपासक या अनुयायी नहीं है। पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि निर्मोही अखाड़े का दावा कानूनी समय सीमा के तहत प्रतिबंधित है।
आर्टिकल 142 के मायने क्या हैं
आर्टिकल 142 सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले में आवश्यक तौर पर 'पूर्ण न्याय' करने के लिए आदेश पारित करने की अनुमति देता है। आर्टिकल 142 कहता है, 'अपने अधिकार क्षेत्र के तहत सुप्रीम कोर्ट इस तरह के निर्णय को पारित कर सकता है या ऐसा आदेश दे सकता है जो किसी भी कारण या मामले में पूर्ण न्याय करने से पहले आवश्यक है..।'
वैसे ये पहला बड़ा केस नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने इस संवैधानिक प्रावधान को लागू किया है। इससे पहले इसका शीर्ष बीजेपी नेताओं लाल कृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ बाबरी मस्जिद गिराये जाने के केस में मामले को रायबरेली से लखनऊ ट्रांसफर करने के मामले में भी इस्तेमाल हो चुका है। कोर्ट ने 2017 के अपने फैसले में उल्लेख किया था कि केस 25 साल से पेंडिंग पड़ा है और इसे 'न्याय को टालना' भी कहा था।
सुप्रीम कोर्ट साथ ही आर्टिकल 142 को 1989 में भोपास गैस त्रासदी से प्रभावित हजारों लोगों को राहत पहुंचाने के लिए भी किया। भोपाल गैस मामले में यूनियन कारबाइड केस नाम से प्रचलित मामले में कोर्ट ने पीड़ितों को मुआवजा देने को सुनिश्चित किया था।
ऐसे ही 2014 में इस प्रावधान का 1993 के बाद सभी कोल ब्लॉक आवंटन को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इस्तेमाल किया। यही नहीं, 2013 के आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में जांच के लिए जस्टिस मुकुल मुद्गल कमिटी बनाने के आदेश में कोर्ट ने इस प्रावधान का इस्तेमाल किया।