प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ 22वें दिन अयोध्या की विवादित ‘राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि’ पर सुनवाई कर रहा है। मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि उन्हें फेसबुक पर धमकी मिली है लेकिन इस वक्त वो सुरक्षा नहीं चाहते हैं।
इससे पहले 21वें दिन मामले पर बहस करते हुए मुस्लिम पक्षों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने न्यायालय से कहा कि अखाड़ा इस कानूनी अड़चन से पार नहीं पा सकता कि (विवादित) स्थल पर कथित कब्जे पर उसके पुन: दावे से संबद्ध 1959 के मुकदमे की समय सीमा लिमिटेशन कानून के तहत खत्म हो गई। पढ़ें इस मामले से जुड़ी अपडेट्स...
12 Sep, 19 12:17 PM
22वें दिन सुनवाई जारी
उच्चतम न्यायालय ने राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में मुस्लिम पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता को मिल रहे धमकी भरे संदेशों पर गुरुवार को संज्ञान लिया। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा, ‘‘इसकी आलोचना की जानी चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए।’’ जैसे ही पीठ ने अयोध्या मामले पर अपनी 22वें दिन की सुनवाई शुरू की सुन्नी वक्फ बोर्ड और अन्य की ओर से मुकदमे की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता धवन ने आरोप लगाया कि उन्हें फेसबुक पर धमकी भरा संदेश मिला है और बुधवार को शीर्ष अदालत के परिसर में कुछ लोगों ने उनके लिपिक की पिटाई कर दी थी। धवन ने कहा, ‘‘सुनवाई के लिए यह माहौल उचित नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि अदालत में ऐसा नहीं होना चाहिए और इसपर न्यायाधीश महोदय की ओर से एक टिप्पणी पर्याप्त होगी। इस पीठ में न्यायमूर्ति एस. ए. बोबड़े, न्यायमूर्ति डी. वाई. चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस. ए. नजीर शामिल हैं। धवन की बात पूरी होने के बाद मामले की सुनवाई शुरू हो गयी।
12 Sep, 19 11:21 AM
धमकी मिली लेकिन नहीं लेंगे सुरक्षाः राजीव धवन
12 Sep, 19 11:20 AM
21वें दिन सुनवाई की हाईलाइट्स
मुस्लिम पक्षकारों के वकील धवन ने न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर की सदस्यता वाली पीठ से कहा कि निर्मोही अखाड़ा के मुताबिक ‘‘उसका रहा’’ शब्द ने मुकदमा दायर करने के लिए लिमिटेशन अवधि को विस्तारित किया। धवन ने सुन्नी वक्फ बोर्ड और मूल वादी एम सिद्दीक सहित अन्य की ओर से पेश होते हुए कहा, ‘‘इसका जवाब है कि यह (भूमि) उनकी(अखाड़े की) नहीं रही है और अखाड़ा ना तो ट्रस्टीशिप पर अंग्रेजों के कानून के तहत और ना ही शिबैत(उपासक) के रूप में इस जमीन का मालिक है।