‘अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधि संगठनों की ध्रुवीकरण की कोशिश से कश्मीर में वैमनस्य का माहौल बन सकता है’

By भाषा | Updated: October 12, 2021 18:20 IST2021-10-12T18:20:56+5:302021-10-12T18:20:56+5:30

'Attempts to polarize minority representative organizations can create an atmosphere of enmity in Kashmir' | ‘अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधि संगठनों की ध्रुवीकरण की कोशिश से कश्मीर में वैमनस्य का माहौल बन सकता है’

‘अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधि संगठनों की ध्रुवीकरण की कोशिश से कश्मीर में वैमनस्य का माहौल बन सकता है’

(सुमीर कौल)

श्रीनगर, 12 अक्टूबर आतंकवादियों द्वारा पिछले हफ्ते अल्पसंख्यकों की हत्या किये जाने के सदमे से कश्मीर अभी उबर रहा है और घाटी में रहने वाले कश्मीरी पंडितों को डर है कि उनके प्रतिनिधि संगठनों द्वारा सोशल मीडिया पर बहुसंख्यक समुदाय पर मूकदर्शक बने रहने के आरोप लगाने तथा ध्रुवीकरण में संलिप्त रहने से सांप्रदायिक वैमनस्य की भावना जन्म ले सकती है।

उन्होंने कहा कि दोनों समुदायों के बीच सौहार्द है और कश्मीरी पंडित संगठनों के प्रतिनिधियों को जमीनी हालात की जानकारी नहीं है।

रजिस्टेंस फ्रंट के आतंकवादियों ने पिछले सप्ताह कश्मीरी पंडित माखन लाल बिंदरू, स्कूल प्राचार्य सुपिंदर कौर और शिक्षक दीपक चंद की हत्या कर दी थी, जिसके बाद सोशल मीडिया पर अनेक कश्मीरी पंडित संगठनों ने पोस्ट डालकर बहुसंख्यक समुदाय पर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए कुछ नहीं करने का आरोप लगाया।

कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (केपीएसएस) के प्रमुख संजय टिक्कू ने कहा, ‘‘हां, निश्चित रूप से सही बात है। इन संगठनों द्वारा ध्रुवीकरण किये जाने से हम पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ा है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘आज की बात नहीं है। वे पिछले 32 साल से ध्रुवीकरण में लगे हैं। वे अपने तुच्छ फायदों के लिए, ना कि समुदाय के लिए जनता के सामने राष्ट्रवाद के झंडे का इस्तेमाल करते हैं।’’

उन्नीस सौ नब्बे के दशक की शुरुआत में आतंकवाद के चरम पर रहने के दौरान कश्मीरी पंडित समुदाय के सदस्य बड़ी संख्या में घाटी छोड़कर चले गये, लेकिन टिक्कू का परिवार यहीं बना रहा।

उन्होंने चेतावनी दी कि दोनों तरफ के ‘बेडरूम जिहादी’ जम्मू कश्मीर को सांप्रदायिक तनाव की ओर धकेल रहे हैं।

टिक्कू ने कहा, ‘‘मुस्लिम या पंडित समुदाय का कोई भी प्रौद्योगिकी का जानकार व्यक्ति अपने घर में बैठे-बैठे केंद्रशासित प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव को उकसाने की क्षमता रखता है।’’

उन्होंने कहा कि 3545 कश्मीरी पंडित हैं और सरकारी कर्मचारियों के करीब 4000 परिवार हैं, जो घाटी में रहते हैं और उन्होंने अपने मुस्लिम पड़ोसियों के साथ मिलकर हर परेशानी का सामना किया है।

टिक्कू ने कहा, ‘‘सरकार अपना काम कर रही है, सिविल सोसाइटी अपना काम कर रही है, हम अपना काम कर रहे हैं और मैंने बहुसंख्यक समुदाय से अनुरोध किया है कि अल्पसंख्यकों का डर समाप्त करने के लिए अपनी मस्जिदों से अपील करें ताकि कोई घाटी छोड़कर नहीं जाए।’’

शहर के बाहरी हिस्से में कारोबार करने वाले एक कश्मीरी पंडित ने कहा, ‘‘किसी की बदनसीबी उनका राजनीतिक नसीब बन जाती है और उन्हें सड़कों पर प्रदर्शन करते हुए देखा गया है। वे पिछले 30 साल से ऐसा कर रहे हैं। मेरा मानना है कि बिंदरू साहेब की मौत पर हजारों मुस्लिमों ने भी आंसू बहाये।’’

वेस्सू कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष सन्नी रैना को लगता है कि ध्रुवीकरण से उनकी जिंदगी ज्यादा मुश्किल हो गयी है। रैना को 2010 में प्रधानमंत्री के रोजगार पैकेज के तहत नौकरी दी गयी थी।

उन्होंने कहा, ‘‘दिल्ली या मुंबई में बैठे लोग या समाचार चैनलों के स्टूडियो में बैठे लोग, जो कभी कश्मीर नहीं आएंगे लेकिन जब ये लोग जमीनी हकीकत के बारे में बात करते हैं, तो हम पर इसका असर होता है।’’

दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के मत्तन में प्रधानमंत्री पैकेज कर्मचारी संघ के अध्यक्ष विनोद रैना को लगता है कि किसी को सियासी फायदों के लिए माहौल नहीं बिगाड़ना चाहिए।

पेशे से शिक्षक रैना ने कहा, ‘‘जब श्रीनगर में शिक्षकों के मारे जाने की खबर फैली तो हमारे मुस्लिम सहकर्मी हमें सुरक्षित शिविरों तक लेकर आये। दोनों समुदायों के बीच सौहार्द मजबूत है और मुझे उम्मीद है कि यह इसी तरह रहेगा।’’

नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसे मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के नेता कहते हैं कि समाचार चैनलों पर बैठे लोग हमेशा अल्पसंख्यकों की जान जोखिम में डालते हैं।

नेशनल कॉन्फ्रेंस के अनंतनाग जिले के उपाध्यक्ष और मीडिया प्रमुख उमेश तलाशी ने कहा, ‘‘निस्संदेह अल्पसंख्यक समुदाय के लिए मुश्किल वक्त है लेकिन यह कश्मीर के बहुसंख्यक समुदाय के लिए भी उतना ही चुनौतीपूर्ण है।’’

उन्होंने केपीएसएस अध्यक्ष संजय टिक्कू के बयान का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने चेतावनी दी है कि इस तरह की घटनाएं घाटी से कश्मीरी पंडितों के दोबारा विस्थापन के लिए जिम्मेदार होंगी और उन्हें आतंकवादियों का आसान निशाना बनाएंगी।

हालांकि, पीडीपी प्रवक्ता मोहित भान इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं यह नहीं कहूंगा कि कश्मीरी पंडित संगठन हालात का ध्रुवीकरण कर रहे हैं। लेकिन उन्हें निश्चित रूप से उन लोगों के जाल में फंसने से बचने के लिए अतिरिक्त चौकन्ना रहना होगा, जो हालात के ध्रुवीकरण की कोशिश में लगे हैं।

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Web Title: 'Attempts to polarize minority representative organizations can create an atmosphere of enmity in Kashmir'

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