अटल जी पंचतत्व में विलीनः बीजेपी मुख्यालय से स्मृति स्थल तक की अंतिम यात्रा का आंखो-देखा हाल
By आदित्य द्विवेदी | Updated: August 17, 2018 19:26 IST2018-08-17T19:26:41+5:302018-08-17T19:26:41+5:30
फूलो से लदे वाहन में अटल बिहारी वाजपेयी का पार्थिव शरीर रखा था। उसके पीछे नजर गई तो देखा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और कैबिनेट के अन्य कई मंत्री पैदल चल रहे थे।

अटल जी पंचतत्व में विलीनः बीजेपी मुख्यालय से स्मृति स्थल तक की अंतिम यात्रा का आंखो-देखा हाल
नई दिल्ली, 17 अगस्तः जब मैं राजधानी दिल्ली स्थित भारतीय जनता पार्टी के मुख्यालय पहुंचा तो दोपहर के 12.30 बज चुके थे। यहीं पर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था। उनकी अंतिम यात्रा की तैयारियां चल रही थी। तीनों सेना की टुकड़ियां तैनात थी। मुख्यालय के सामने की सड़क पर यातायात पूरी तरह रोक दिया गया था। मेरी नजर सड़क किनारे लगे बोर्ड पर गई। लिखा था- पंडित दीन दयाल उपाध्याय मार्ग। अटल जी के भाग्य पर मैं मुस्कुरा पड़ा।
पांच दशक लंबी राजनीतिक पारी में अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ नेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय से प्रभावित रहे हैं। दीन दयाल उपाध्याय ने राजस्थान में 9 में से 7 पार्टी विधायको को पार्टी से निकाल दिया था जब उन्होंने राज्य में जमींदारी हटाने के कानून का विरोध किया था। 1964 में उन्होंने पार्टी के सत्ता में सिद्धांत को भी पार्टी कार्यकर्ताओं के सामने रखा था। बाद में इसका विस्तार उन्होंने 1965 में प्रस्तुत किया। उनकी विचारधारा को अटल जी ने शिरोधार्य किया और वहीं से भारतीय जनता पार्टी का भी गठन किया गया। ये दीनदयाल की विचारधारा का ही प्रभाव था कि अटल जी ने संसद में कह दिया जो सरकार खरीदकर जोड़-तोड़ से बनती हो ऐसी सत्ता को मैं चिमटे से भी छूने से इनकार करता हूं। सारी उम्र दीनदयाल उपाध्याय के मार्ग का अनुसरण करने वाले अटल बिहारी, मृत्यु के बाद उसी मार्ग से अंतिम यात्रा में गुजरे तो इससे सौभाग्यशाली क्या हो सकता है!
बीजेपी मुख्यालय में लोगों का आना लगातार जारी था। भीड़ बढ़ती जा रही थी। उस मार्ग से गुजरते हुए हमने कई तरह के लोग देखे। सफेद कुर्ता पायजामा धारी नेता, महिलाएं, भगवा पहने साधु, टोपीधारी मुस्लिम, दिव्यांग सभी अपने चहेते नेता की एक झलक पाने को आतुर थे। हमने कुछ लोगों से बात करनी शुरू की। हाथ में चैनल की माइक आईडी देखकर नेता टाइप लोग आपको जल्दी खोज लेते हैं। इसलिए हमारी बातचीत जिससे शुरू हुई पता चला वो मथुरा के मेयर डॉ. मुकेश आर्य बंधु हैं। मुकेश ने बताया,
'1989 में मथुरा के एक कवि सम्मेलन में अटल जी आए थे। वहीं उनसे पहली मुलाकात हुई थी। अटल जी का मथुरा में आना-जाना लगा रहता है। उन्हें मथुरा के पेड़े और कचौड़ियां बेहद पसंद थी।'
मुकेश के साथ मौजूद विनोद ने बचपन की याद साझा करते हुए कहा कि अटल जी उन्हें एकबार गोद में लेकर एक रुपया दिया था। बात-चीत में ही किसी ने कहा कि वो किसी दल या वर्ग या क्षेत्र के नहीं सबके नेता थे।
अपनी लंबी राजनीतिक पारी में अटल जी किसी क्षेत्र विशेष में बंधे नहीं थे। भारतीय राजनीति को संभवतः वो एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने संसद में चार राज्यों की छह लोकसभा सीटों का प्रतिनिधित्व किया।
हम आगे बढ़े तो देखा अटल जी की अंतिम यात्रा का काफिला तैयार था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वहां मौजूद थे। यात्रा में कुछ विलंब हो रहा था तो हमने स्मृति स्थल को आगे बढ़ने का फैसला किया। जिस सड़क से यात्रा गुजरनी थी उसे पूरी तरह खाली करा लिया गया था। सड़क के दोनों ओर लोग पुष्प लेकर अपने चहेते नेता का इंतजार कर रहे थे। बीच-बीच में अटल जी की होर्डिंग्स लगी हुई थी। आम कार्यकर्ता जो पार्थिव शरीर के दर्शन नहीं कर सके वो वहीं पर पुष्प चढ़ा रहे थे। वहीं पुष्प चढ़ा रही बीजेपी दिल्ली महिला मोर्चा की महामंत्री से हुई। उन्होंने कहा कि भले ही अटल जी ने सालों पहले सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया हो लेकिन उनका होना ही हमारे लिए प्रेरणा था। उनका जाना संपूर्ण विश्व की क्षति है। उन्होंने बताया कि जब भी उनसे मिलने जाते तो वो कहते थे 'टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता, छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता।'
अब तक धूप में पसीने से तर-बतर हो चुके थे। सामने आईटीओ मेट्रो स्टेशन था। हमने कुछ देर यहीं रुककर इंतजार करने का फैसला किया। वहां हैरान परेशान से कुछ युवक आए। पानी की तलाश में थे। हमने अपना पानी दिया। उन्होंने बताया कि राजस्थान से आए हैं। अटल जी को आखिरी बार देखना चाहते हैं। किसी पार्टी से कोई वास्ता नहीं है लेकिन अटल जी से प्रभावित हैं। अटल जी की कविताएँ उन्हें बहुत पसंद हैं और आज भी अक्सर सुनते रहते हैं। हमने उनसे अटल जी की कोई पसंदीदा कविता सुनाने का अग्रह किया। बिना किसी झिझक के शब्दों का जोड़-तोड़ करते हुए ये कविता सुनाई-
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा
रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं।
कविता से याद आया। पूरी यात्रा में हमें कई जगह अटल जी की तस्वीर लगी तख्ती लिए हुए युवा दिखाई दिए। उसमें दो लाइनें लिखी हुई थीं-
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं
लौटकर आउँगा, कूच से क्यों डरूं?
अटल जी की तस्वीर वाली एक टी-शर्ट पहने गिरीश चंद्र वर्मा ने बताया कि वो यहां स्वच्छता के माध्यम से अटल जी को श्रद्धांजलि देने आए हैं। उनके साथ 100 से ज्यादा लोग हैं। वो आस-पास बिखरा सामान समेटकर डस्टबिन में डालने का काम कर रहे हैं। उनके साथ मौजूद एक शख्स ने बताया कि 30 साल पहले उनकी शादी में अटल जी आए थे। उनके पिता उस वक्त दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष थे।
हम थोड़ा और आगे बढ़े। रास्ते में भीड़ बढ़ती जा रही थी। एक उचित स्थान देखकर हम वहीं खड़े हो गए और अटल जी के वाहन का इंतजार करने लगे। अचानक सड़क पर हलचल बढ़ गई। सुरक्षाकर्मी हरकत में आ गए। लोगों ने नारे लगाने शुरु कर दिए। प्रमुखता से दो ही नारे लगाए जा रहे थे- भारत माता की जय और अटल जी अमर रहें। इस बीच अटल जी की आखिरी यात्रा का काफिला दिखाई देने लगा। उन्हें पूरे राजकीय सम्मान के साथ ले जाया जा रहा था। इस यात्रा का प्रोटोकॉल कुछ इस तरह था-
सबसे पहले एक काले रंग की टाटा सफारी गाड़ी गुजरी। उसके पीछे भारतीय थल सेना का एक वाहन था। उसके ठीक पीछे नेवी और वायुसेना के जवानों का वाहन था। उसके पीछे फूलों से सजा-धजा एक ट्रक था। उसके ठीक पीछे काले रंग का एक वाहन था जिसमें जैमर लगे हुए थे। उसके पीछे एक वाहन था जिसमें अटल जी का पार्थिव शरीर एक ताबूत में रखा हुआ था।
ताबूत फूलों से लदा था। वो चिर निद्रा में लेटे हुए थे। उसके पीछे नजर गई तो देखा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और कैबिनेट के अन्य कई मंत्री पैदल ही चल रहे हैं। उनके चेहरे पर अपने मार्गदर्शक नेता के दूर चले जाने का दुख साफ झलक रहा है। वातारण में 'अटल जी अमर रहें' का उद्घोष बढ़ता ही जा रहा था।

