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जानिए क्यों अशोक गहलोत की दावेदारी सचिन पायलट पर भारी पड़ेगी?

By विकास कुमार | Updated: December 11, 2018 18:22 IST

अशोक गहलोत अब अपने राजनीतिक करियर के अंतिम पड़ाव पर हैं। इस अंतिम पड़ाव में वो अपने कर्मभूमि की एक बार फिर से सेवा करना चाहते हैं। लेकिन सचिन पायलट भी प्रदेश की कमान संभालने के लिए लालायित दिख रहे है। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। 

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चुनाव नतीजे आ गए। भारतीय जनता पार्टी के लिए कुछ नहीं बचा है इसलिए तोड़-फोड़ की कोई संभावना नहीं है। कांग्रेस जीत के जश्न में डूब गई है और मुख्यमंत्रियों के नाम पर माथापच्ची जारी है। मिठाई, ढोल, पटाखे और गगनचुम्बी नारे चुनाव के नतीजों के बाद ये आम रिएक्शन होते हैं। कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को जितनी खुशी की उम्मीद रही होगी, उससे ज्यादा उन्हें मिल गई है। हिंदी हार्टलैंड के तीन राज्यों पर कांग्रेस का कब्जा हो गया है। 

अगला पड़ाव अब अपने पसंदीदा नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने का है। नेताओं के घर नारेबाजी तेज हो गई है। लोग अपने नेता की आवाज को अपने नारों के जरिये केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंचा रहे हैं। जिसके नारे में बुलंदी ज्यादा होगी वो सत्ता के शीर्ष पर बैठेंगे। सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच मीटिंग का दौर शुरू हो गया है। वहीं मध्य प्रदेश में कमलनाथ, सिंधिया और दिग्विजय सिंह एक दूसरे को मनाने में लगे हुए हैं। 

राजस्थान में कांग्रेस के विधायक दल के मीटिंग की घोषणा हो गई है। कल ग्यारह बजे जनता के द्वारा चुने गए विधायक प्रदेश के मुख्यमंत्री की पसंद को केंद्रीय नेतृत्व के सामने रखेंगे । इस बीच में जनता को समर्थित होने का दावा भी जारी रखेंगे। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के समर्थकों के बीच अपने नेता को राज्य का सर्वोच्च पद दिलाने के लिए होड़ शुरू हो गई है। 

युवा होना वरदान या अभिशाप 

सचिन पायलट गुज्जर समुदाय से आते हैं। उनकी सबसे बड़ी ताकत भी यही है और सबसे बड़ी कमजोरी भी यही है। क्योंकि राजस्थान के राजनीतिक इतिहास में आजतक कोई भी गुज्जर मुख्यमंत्री के पद तक नहीं पहुंचा है। अशोक गहलोत की छवि एक शानदार मैनेजर की है। इसके अलावा उनकी जाति माली है और राजस्थान में सैनियों का हमेशा से दबदबा रहा है। सचिन पायलट के पास अपने पिता की विरासत है लेकिन अनुभव की कमी है। 

सफेद बाल की थ्योरी 

राजस्थान में एक कहावत प्रसिद्ध है कि प्रदेश की जनता ने हमेशा से सफेद बाल वाले नेताओं को पसंद किया है। मोहन लाल सुखाड़िया को छोड़ दें तो ये कहावत बिल्कुल सही है। मोहन लाल सुखाड़िया एक मात्र ऐसे नेता हैं जो 38 साल में प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए थे। कर्नाटक में हारी हुई बाजी कांग्रेस के पक्ष में करने के बाद से अशोक गहलोत राहुल गांधी के दुलारे और सबसे भरोसेमंद हो गए हैं। और सबसे बड़ी बात है कि उन्हें खुद मुख्यमंत्री पद पर बैठने की त्रिव लालसा है। 

दरअसल अशोक गहलोत राहुल गांधी के मैनेजर नहीं बनना चाहते क्योंकि वहां उनकी नहीं सुनी जाती। पी चिदम्बरम और सैम पित्रोदा के लोग राहुल गांधी की टीम में ज्यादा हावी हैं। जिसके कारण अशोक गहलोत को राहुल गांधी से संवाद स्थापित करने में बहुत मुश्किल का सामना करना पड़ता है। 

सबसे बड़ा कारण है कि अशोक गहलोत अब अपने राजनीतिक करियर के अंतिम पड़ाव में हैं।  इस अंतिम पड़ाव में वो अपने कर्मभूमि की एक बार फिर से सेवा करना चाहते हैं। लेकिन सचिन पायलट भी प्रदेश की कमान संभालने के लिए लालायित दिख रहे है। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।   

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