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असम में मदरसे और संस्कृत केन्द्र बंद करने के फैसले का विरोध   

By भाषा | Updated: February 14, 2020 20:48 IST

असम राज्य जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अनफार और बदरुद्दीन अजमल समूहों ने इस कदम का विरोध किया है। जमीयत के राज्य सचिव मौलाना फज्ल-उल-करीम ने कहा कि यह सच नहीं है कि मदरसे केवल धार्मिक शिक्षा प्रदान करते हैं क्योंकि वे इस्लामिक शिक्षाओं के साथ एक विदेशी भाषा के रूप में अरबी पढ़ाते हैं।

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ठळक मुद्देअसम में मदरसे और संस्कृत सिखाने के केन्द्र बंद करने से बीजेपी नीत सरकार के फैसले का विपक्षी दल कांग्रेस और इस्लाम तथा संस्कृत से जुड़े विभिन्न संगठन विरोध कर रहे हैं।बीजेपी ने इस कदम का समर्थन किया है। असम राज्य जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस फैसले को कानूनी चुनौती देने की चेतावनी दी है।

असम में मदरसे और संस्कृत सिखाने के केन्द्र बंद करने से बीजेपी नीत सरकार के फैसले का विपक्षी दल कांग्रेस और इस्लाम तथा संस्कृत से जुड़े विभिन्न संगठन विरोध कर रहे हैं। वहीं बीजेपी ने इस कदम का समर्थन किया है। असम राज्य जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस फैसले को कानूनी चुनौती देने की चेतावनी दी है। राज्य के शिक्षा मंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने कहा था कि राज्य सरकार द्वारा संचालित मदरसे और संस्कृत केन्द्रों को अगले तीन से चार महीनों के भीतर बंद कर दिया जाएगा। 

उन्होंने कहा था कि इन्हें नियमित पाठ्यक्रमों वाले उच्च तथा उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में परिवर्तित कर दिया जाएगा ''क्योंकि धार्मिक शिक्षा, अरबी या ऐसी अन्य भाषाओं से संबंधित संस्थानों को धन मुहैया कराना सरकार का काम नहीं है। '' सरमा ने कहा कि असम में लगभग 1,200 मदरसे और 200 संस्कृत केन्द्र हैं। 

मंत्री ने कहा, ''अगर कोई निजी धन का इस्तेमाल कर धार्मिक शिक्षाएं दे रहा है तो कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन अगर पवित्र कुरान की शिक्षाएं देने के लिये सरकार द्वारा मुहैया कराए गए धन का इस्तेमाल किया जाता है, तो हमें गीता और बाइबल की शिक्षा भी देनी पड़ेगी।'' उन्होंने कहा, ''चूंकि सरकार धर्मनिरपेक्ष संस्था है, इसलिये वह धार्मिक शिक्षाओं में शामिल संगठनों को धन मुहैया नहीं करा सकती।'' उन्होंने कहा कि निजी मदरसे और संस्कृत केन्द्र अपना काम जारी रख सकते हैं, लेकिन हम जल्द ही एक नया कानून लाएंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे एक नियामक ढांचे के अनुसार कार्य कर रहे हैं। 

असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने इस फैसले को मूर्खतापूर्ण करार दिया है। उन्होंने कहा कि प्रशासन को इन संस्थानों कों आधुनिक बनाने पर काम करना चाहिये था। हिंदू परिवारों के कई बच्चों के साथ जोरहाट के मदरसे में पढ़े गोगोई ने कहा, ''सरकार को मदरसों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये और न ही उन्हें किसी धर्म के साथ जोड़कर देखना चाहिये। इन संस्थानों को खत्म करने के बजाय सरकार को इन्हें मजबूत और आधुनिक बनाना चाहिये। था। साथ ही इनमें सामान्य विषयों पेश करना और तकनीक को बढावा देना चाहिये।'' 

इस बीच, असम राज्य जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अनफार और बदरुद्दीन अजमल समूहों ने इस कदम का विरोध किया है। जमीयत के राज्य सचिव मौलाना फज्ल-उल-करीम ने कहा, ''यह सच नहीं है कि मदरसे केवल धार्मिक शिक्षा प्रदान करते हैं क्योंकि वे इस्लामिक शिक्षाओं के साथ एक विदेशी भाषा के रूप में अरबी पढ़ाते हैं। इससे कई छात्रों को डॉक्टर और इंजीनियर बनने में मदद मिलती है और वे मध्य पूर्व के देशों में रोजगार हासिल करते हैं।'' 

करीम ने कहा, ''अगर राज्य सरकार मदरसों को बंद करती है तो जमीयत इस फैसले को रोकने के लिये कानून प्रावधानों का सहारा ले सकती है।'' हालांकि असम बीजेपी ने सरकार के फैसले का स्वागत किया है। असम बीजेपी के प्रवक्ता रूपम गोस्वामी ने कहा कि राज्य सरकार ने सही फैसला लिया है क्योंकि धार्मिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये धन मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी नहीं है।

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