निर्भया मामला से पहले 1983 में एक साथ फांसी के फंदे पर चढ़े थे चार गुनहगार, 10 को उतारा था मौत के घाट

By भाषा | Updated: January 9, 2020 16:52 IST2020-01-09T16:52:35+5:302020-01-09T16:52:35+5:30

राजेंद्र जक्कल, दिलीप सुतार, शांताराम कन्होजी जगताप और मुनावर हारून शाह को 25 अक्टूबर 1983 को फांसी दी गयी थी। जोशी-अभयंकर सिलसिलेवार हत्याओं में उन्होंने जनवरी 1976 और मार्च 1977 के बीच 10 हत्याएं की थीं। 

As Nirbhaya Convicts Await Execution, Last Time 4 Culprits Were Hanged in 1983 | निर्भया मामला से पहले 1983 में एक साथ फांसी के फंदे पर चढ़े थे चार गुनहगार, 10 को उतारा था मौत के घाट

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Highlightsनिर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में चार दोषियों को 22 जनवरी को फांसी होने वाली है।इससे पहले 1983 में पुणे में सनसनीखेज जोशी-अभयंकर हत्या मामले में चार दोषियों को एक साथ यरवदा केंद्रीय जेल में फंदे पर लटकाया गया था।

निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में चार दोषियों को 22 जनवरी को फांसी होने वाली है लेकिन, यह पहली बार नहीं है कि एक ही दिन चार दोषियों को मृत्युदंड दिया जाएगा। इससे पहले 1983 में पुणे में सनसनीखेज जोशी-अभयंकर हत्या मामले में चार दोषियों को एक साथ यरवदा केंद्रीय जेल में फंदे पर लटकाया गया था।

राजेंद्र जक्कल, दिलीप सुतार, शांताराम कन्होजी जगताप और मुनावर हारून शाह को 25 अक्टूबर 1983 को फांसी दी गयी थी। जोशी-अभयंकर सिलसिलेवार हत्याओं में उन्होंने जनवरी 1976 और मार्च 1977 के बीच 10 हत्याएं की थीं। 

मामले में आरोपी सुभाष चंडक गवाह बन गया था । हत्यारे पुणे के अभिनव कला महाविद्यालय में वाणिज्यिक कला के छात्र थे। वे सभी नशे के आदि थे और दो पहिया वाहन सवारों से लूटपाट करते थे। पहली हत्या 16 जनवरी 1976 को हुई थी। हत्या के शिकार हुए प्रसाद हेडगे कातिलों के सहपाठी थे। उनके पिता कॉलेज के पीछे एक रेस्तरां चलाते थे। हत्यारों ने फिरौती के लिए अपहरण किया था।

इन कातिलों ने 31 अक्टूबर 1976 और 23 मार्च 1977 के बीच नौ और लोगों की हत्याएं की। ये लोग घर में घुसकर घरवालों को आतंकित कर महंगा सामान लूटते थे और फिर लोगों की हत्या कर देते थे। इस तरह की हत्याओं से समूचे महाराष्ट्र में दहशत छा गयी। सहायक पुलिस आयुक्त के तौर पर सेवानिवृत्त हुए शरद अवस्थी भी उस वक्त अदालत में मौजूद थे जब इन कातिलों को मृत्युदंड की सजा सुनायी गयी थी। 

उन्होंने बताया, ‘‘मुझे याद है कि जब आरोपियों को मौत की सजा सुनायी गयी उस समय अदालत परिसर में भारी भीड़ थी। सजा सुनाए जाने के बाद चारों दोषियों को अदालत से बाहर ले जाया गया।’’ उस समय किशोर रहे पुणे के सामाजिक कार्यकर्ता बालासाहेब रूनवाल ने कहा कि हत्याओं से लोगों के बीच इतनी दहशत पैदा हो गयी कि लोग शाम छह बजे के बाद घरों से निकलने से कतराने लगे थे।

Web Title: As Nirbhaya Convicts Await Execution, Last Time 4 Culprits Were Hanged in 1983

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