फर्जी समाचारों के प्रसार को रोकने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता वास्तव में समाधान हो सकती है

By भाषा | Updated: November 29, 2021 13:09 IST2021-11-29T13:09:28+5:302021-11-29T13:09:28+5:30

Artificial intelligence may actually be the solution to curbing the spread of fake news | फर्जी समाचारों के प्रसार को रोकने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता वास्तव में समाधान हो सकती है

फर्जी समाचारों के प्रसार को रोकने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता वास्तव में समाधान हो सकती है

सेज़-फंग ली, बेंजामिन सी.एम. फंग, मैकगिल यूनिवर्सिटी

मॉन्ट्रियल, 29 नवंबर (द कन्वरसेशन) युद्ध और सैन्य रणनीति में दुष्प्रचार किया जाता रहा है। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि स्मार्ट टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया के इस्तेमाल से इसे और तेज किया जा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये संचार प्रौद्योगिकियां किसी भी सूचना को कहीं भी पहुंचाने के लिए अपेक्षाकृत कम लागत वाला, कम-अवरोधक तरीका प्रदान करती हैं।

ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है: क्या तकनीकी कारणों से पैदा हुई इस विशाल पैमाने और पहुंच की समस्या को प्रौद्योगिकी का उपयोग करके हल किया जा सकता है? दरअसल, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसे नए तकनीकी समाधानों का निरंतर विकास कुछ हद तक इसका समाधान प्रदान कर सकता है।

प्रौद्योगिकी कंपनियां और सोशल मीडिया उद्यम प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण, मशीन लर्निंग और नेटवर्क विश्लेषण के माध्यम से नकली समाचारों का स्वत: पता लगाने पर काम कर रहे हैं। विचार यह है कि एक ऐसी एल्गोरिदम या प्रणाली विकसित की जाए जो ‘‘फर्जी समाचार’’ के रूप में किसी भी सूचना की पहचान करेगा और इसे कमतर बताकर उपयोगकर्ताओं को इसे न देखने के लिए हतोत्साहित करेगा।

दोहराव और एक्सपोजर

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से, एक ही जानकारी के बार-बार संपर्क में आने से किसी के लिए उस पर विश्वास करना अधिक संभव हो जाता है। जब एआई सूचना के फर्जी होने की पहचान कर लेगा तो वह इसके बार बार सामने आने की संभावना को कम करता है। इससे वह प्रबलित सूचना खपत पैटर्न के चक्र को तोड़ सकता है।

हालाँकि, एआई का किसी सूचना के फर्जी होने का पता लगाना अभी भी अविश्वसनीय है। पहले तो, वर्तमान पहचान इसकी विश्वसनीयता निर्धारित करने के लिए पाठ (सामग्री) और उसके सामाजिक नेटवर्क के आकलन पर आधारित है। स्रोतों की उत्पत्ति और फर्जी समाचारों के प्रसार पैटर्न को निर्धारित करने के बावजूद, मूलभूत समस्या यह है कि एआई सामग्री की वास्तविक प्रकृति को कैसे सत्यापित करता है।

सैद्धांतिक रूप से, यदि प्रशिक्षण डेटा की मात्रा पर्याप्त है, तो एआई-समर्थित वर्गीकरण मॉडल यह व्याख्या करने में सक्षम होगा कि किसी लेख में फर्जी समाचार हैं या नहीं। फिर भी वास्तविकता यह है कि इस तरह के भेद करने के लिए प्रणाली में राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक ज्ञान, या सामान्य ज्ञान की व्यापक आवश्यकता होती है, जो कि प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण एल्गोरिदम में अभी भी कम है।

इसके अलावा, फर्जी समाचारों को जब जान बूझकर ‘‘वास्तविक समाचारों’’ के रूप में पेश करना होता है तो इन्हें अत्यंत बारीकी से तैयार किया जाता है, लेकिन इसमें झूठी या जोड़-तोड़ वाली जानकारी होती है, जैसा कि प्री-प्रिंट अध्ययन से पता चलता है।

मानव-एआई भागीदारी

वर्गीकरण विश्लेषण भी विषय से काफी प्रभावित होता है - एआई अक्सर इसकी प्रामाणिकता निर्धारित करने के लिए मुद्दे की सामग्री के बजाय विषयों को अलग करता है। उदाहरण के लिए, कोविड-19 से संबंधित लेखों को अन्य विषयों की तुलना में फर्जी समाचार के रूप में लेबल किए जाने की अधिक संभावना है।

एक समाधान यह होगा कि सूचना की प्रामाणिकता को सत्यापित करने के लिए लोगों को एआई के साथ काम करने के लिए नियुक्त किया जाए। उदाहरण के लिए, 2018 में, लिथुआनियाई रक्षा मंत्रालय ने एक एआई प्रोग्राम विकसित किया, जो ‘‘प्रकाशन के दो मिनट के भीतर दुष्प्रचार को चिह्नित करता है और उन रिपोर्टों को आगे के विश्लेषण के लिए मानव विशेषज्ञों को भेजता है।’’

कनाडा में भी गलत सूचनाओं से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय विशेष इकाई या विभाग स्थापित करके या फर्जी समाचारों के लिए एआई समाधानों पर शोध करने के लिए थिंक टैंक, विश्वविद्यालयों और अन्य तीसरे पक्षों को बढ़ावा देकर इसी तरह का दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है।

सेंसरशिप से बचना

कुछ मामलों में फर्जी समाचारों के प्रसार को नियंत्रित करने को सेंसरशिप और भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा माना जा सकता है। यहां तक ​​​​कि एक इंसान को भी यह तय करने में मुश्किल हो सकती है कि जानकारी फर्जी है या नहीं। और इसलिए शायद बड़ा सवाल यह है कि फर्जी खबरों की परिभाषा कौन और क्या तय करता है? हम कैसे सुनिश्चित करेंगे कि एआई फ़िल्टर हमें झूठी सूचनाओं के जाल में फंसने नहीं देंगे, और किसी सूचना को उससे जुड़े आंकड़ों के आधार पर गलत तरीके से फर्जी नहीं बता देंगे।

फर्जी समाचारों की पहचान करने के लिए एआई प्रणाली के कई गलत इस्तेमाल भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, सत्तावादी सरकारें किसी भी लेख को हटाने को सही ठहराने के लिए या सतापक्ष के विरोधी व्यक्तियों पर मुकदमा चलाने के लिए एआई का उपयोग एक बहाने के रूप में कर सकती हैं। और इसलिए, एआई की किसी भी तैनाती - और इसके लागू होने से संबंधित किसी भी प्रासंगिक कानून - की निगरानी के लिए किसी तीसरे पक्ष के साथ एक पारदर्शी प्रणाली की आवश्यकता होगी।

भविष्य की चुनौतियाँ बनी रह सकती हैं क्योंकि दुष्प्रचार, - विशेषकर जब विदेशी हस्तक्षेप से जुड़ा हो - एक सतत मुद्दा है। ऐसे में आज का आविष्कार किया गया एक एल्गोरिदम भविष्य की नकली खबरों का पता लगाने में सक्षम नहीं हो सकता है।

हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि कनाडा के 50 प्रतिशत उत्तरदाताओं को नियमित रूप से निजी मैसेजिंग ऐप के माध्यम से फर्जी समाचार प्राप्त होते हैं। इसे विनियमित करने के लिए निजता, व्यक्तिगत सुरक्षा और दुष्प्रचार पर रोक के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता होगी।

हालांकि एआई का उपयोग करके दुष्प्रचार का मुकाबला करने के लिए संसाधनों को बेहतर बनाना जरूरी तो है, लेकिन संभावित प्रभावों को देखते हुए सावधानी और पारदर्शिता आवश्यक है। दुर्भाग्य से, नए तकनीकी समाधान इस समस्या को पूरी तरह तो हल नहीं कर सकते।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: Artificial intelligence may actually be the solution to curbing the spread of fake news

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