अनुच्छेद 370: 2003 का अहसास कर रहे जम्मू-कश्मीर के लोग, देश में 1995 तो यहां 8 साल बाद शुरू हुई थी मोबाइल सेवा
By सुरेश डुग्गर | Published: August 23, 2019 01:22 PM2019-08-23T13:22:40+5:302019-08-23T13:22:40+5:30
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को संशोधित किए जाने से पहले सुरक्षा की दृष्टि से नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदम आम जनमानस के लिए के जिंदगी का हिस्सा बन चुकी सेवाओं से अस्थाई दूरी भी लाए। उन सेवाओं में मोबाइल कम्यूनिकेशन अहम है जोकि कुछ ही हिस्सों में काम कर रहा है।
करीब 16 साल पहले वर्ष 2003 में जब जम्मू कश्मीर में मोबाइल सेवा शुरू हुई थी तो राज्य की जनता को लगा था कि वे अब वाकई 21वीं शताब्दी में पहुंच गए हैं। हालांकि देश में 1995 में ही मोबाइल सेवा लांच हो गई थी और जम्मू कश्मीर को 8 सालों का इंतजार करना पड़ा था।
और अब 4-5 अगस्त की रात से जम्मू कश्मीर की जनता एक बार फिर 2003 के दौर में पहुंच चुकी है जब न ही मोबाइल फोन थे और न ही इंटरनेट। अब हालत यह है कि करीब 95 परसेंट क्षेत्रों में सरकार द्वारा स्थापित ‘मोबाइल बूथों’ से ही लोगों को अपनों की खबर लेनी पड़ रही है और खबर देनी पड़ रही है।
ऐसा भी नहीं है कि जम्मू कश्मीर के प्रत्येक कस्बे या तहसील में इनकी स्थापना हुई हो, बल्कि तहसील मुख्यालयों में मात्र गिनती के 4-5 मोबाइलों से अपनों को खबर करने के लिए लोगों को घंटों इंतजार करना पड़ रहा है।
सिवाय जम्मू, सांबा, कठुआ और उधमपुर के जिलों को छोड़ कर बाकी सब क्षेत्रों में मोबाइल, लैंडलाइन और इंटरनेट अभी बंद हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो खासकर मुस्लिम बहुल इलाकों में ऐसा इसलिए किया गया है ताकि अनुच्छेद 370 को हटा दिए जाने के बाद कोई रोष व्यक्त करने के लिए इन संचार संसाधनों का इस्तेमाल न कर सके।
यूं तो श्रीनगर में 7 दिन पहले ही ऐसे मोबाइल बूथों की स्थापना हो गई थी पर राजौरी, पुंछ, बनिहाल, रामबन, डोडा, किश्तवाड आदि वे क्षेत्र जो कश्मीर वादी से सटे हुए हैं नसीब वाले नहीं थे। कुछेक तहसील मुख्यालयों में 19 दिनों के बाद ऐसे बूथों की स्थापना हुई है। इन बूथों की सच्चाई यह है कि सुबह 10 से शाम 5 बजे के बीच इनका इस्तेमाल करने के लिए लोगों को सैंकड़ों किमी का सफर करना होगा।
ऐसा भी नहीं है कि जम्मू समेत जिन जिलों में मोबाइल सेवा जारी है उसकी हालत अच्छी हो बल्कि पिछले 19 दिनों से लोग सिग्नल की आंख मिचौनी से तंग आ चुके हैं। स्थिति यह है कि एक कॉल करने के लिए कई बार सिग्नल का इंतजार करना पड़ रहा है और कई बार तो बात करते करते आवाज ही दब जाती है।
और 21वीं सदी में लोग बिना इंटरनेट के कैसे जीवन काट रहे हैं जम्मू कश्मीर के लोगों से पूछा जा सकता है जहां बिजनेस और व्यापार भी बिन इंटरनेट सब सुन्न की स्थिति में है।