जम्मू-कश्मीर से संबंधित ऐतिहासिक विधेयकों पर लोकसभा में 85 फीसदी सांसदों का समर्थन पाकर भाजपा ने एक और उपलब्धि हासिल की है. जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 के दो प्रावधानों को खत्म करने से संबंधित विधेयक पर सरकार को 351 सांसदों का समर्थन मिला जबकि 72 ने इसके विरोध में वोटिंग की. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की कुशल रणनीति लोकसभा में भी देखने को मिली.
वहीं, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने संबंधी दूसरे विधेयक को 370 सांसदों का समर्थन मिला जबकि 70 सांसदों ने इसके विरोध में वोटिंग की. 542सदस्यों वाली लोकसभा में 102 सदस्य अनुपस्थित थे. इस आंकड़े के आधार पर मतदान के लिए सिर्फ 440 सदस्य उपस्थित थे. मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के शाम 5 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद वाईएसआर कांग्रेस (22) समेत अन्य पार्टियों का इन विधेयकों को समर्थन मिलता गया.
बसपा (10), बीजद (12), तेदेपा (3), तेरास (9), जद (एस) (1), आप (1) और निर्दलीय (4) का भारी समर्थन हासिल हुआ. राकांपा के समर्थन से निर्वाचित होने के बावजूद महाराष्ट्र के निर्दलीय सांसद नवनीत राणा ने विधेयक का समर्थन करते हुए जोरदार भाषण दिया. यह एक अलग बात है कि सुप्रिया सुले के भाषण के बाद राकांपा सदस्य बहिष्कार करते हुए बाहर चले गए जिन्होंने विधेयक का समर्थन और विरोध भी किया.
पार्टी को राज्यसभा में बहिष्कार करने के बाद लोकसभा में विधेयक का समर्थन करना मुश्किल लगा. यदि भाजपा ने राज्यसभा में अपने केवल 78 सांसद होने के बावजूद दो तिहाई बहुमत हासिल किया, तो उसे लोकसभा में 542 सांसदों में से 401 सांसदों के समर्थन की उम्मीद थी. एक तरह से यह भाजपा नेतृत्व की कलाबाजी थी जिसने गैर राजग दलों को समर्थन देने के लिए मजबूर किया.
कांग्रेस, द्रमुक, सपा, वामदल और कुछ मुस्लिम पार्टियों को छोड़कर कोई भी अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए पर सरकार के फैसले के खिलाफ नहीं था. 22 सदस्यीय तृणमूल कांग्रेस ने भी मतदान से दूर रहने का फैसला किया. दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने विधेयक के समर्थन में ट्वीट किया, जिससे पार्टी नेताओं में उनके भविष्य को लेकर भारी चिंता है.
100 दिनों की समयसीमा निर्धारित :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी के घोषणापत्र को अमलीजामा पहनाने के लिए प्रत्येक कैबिनेट मंत्री के समक्ष 100 दिनों की समयसीमा निर्धारित की थी. सरकार के लिए अयोध्या मामला जिसकी सुप्रीम कोर्ट में अब रोजाना सुनवाई हो रही है, को छोड़कर जम्मू-कश्मीर विधेयक शायद सबसे बड़े कार्यों की अंतिम कड़ी है.