महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए सेना की प्रक्रिया भेदभावपूर्ण : न्यायालय

By भाषा | Updated: March 25, 2021 20:12 IST2021-03-25T20:12:26+5:302021-03-25T20:12:26+5:30

Army's process to award permanent commission to women officers is discriminatory: Court | महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए सेना की प्रक्रिया भेदभावपूर्ण : न्यायालय

महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए सेना की प्रक्रिया भेदभावपूर्ण : न्यायालय

नयी दिल्ली, 25 मार्च उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि थल सेना ने महिला एसएससी (शार्ट सर्विस कमशीन) अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए जो मूल्यांकन प्रक्रिया निर्धारित की है, उसने ‘‘प्रणालीगत भेदभाव’’ को जन्म दिया और इससे उन्हें आर्थिक एवं मनौवैज्ञानिक नुकसान पहुंचा तथा उनकी ‘‘गरिमा को ठेस’’ लगी।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि शीर्ष न्यायालय के पिछले साल के फैसले को क्रियान्वित करने के लिए यह प्रशासनिक आवश्यकता नहीं थोपी जाए। दरअसल, न्यायालय ने यह निर्देश दिया था कि सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान किया जाए।

न्यायालय ने अपने 137 पृष्ठों के फैसले में कहा, ‘‘हमारा मानना है कि सेना ने जो मूल्यांकन प्रक्रिया निर्धारित की है वह याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्रणालीगत भेदभाव करती है। बबीता पुनिया मामले में (पिछले साल के फैसले को) लागू करने के लिए सेना द्वारा निर्धारित की गई मूल्यांकन पद्धति महिलाओं को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती हैं। ’’

न्यायालय का यह फैसला 86 याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर याचिकाओं के एक समूह पर आया है, जिसके तहत उन्होंने उस तरीके पर सवाल उठाया है जो न्यायालय के पिछले साल के फैसले को लागू करने के लिए अपनाया गया।

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि एसीआर मूल्यांकन प्रक्रिया में खामी है तथा वह भेदभावपूर्ण है।

याचिकाओं के जरिए पिछले साल फरवरी में केंद्र को स्थायी कमीशन, पदोन्नति और अन्य लाभ देने के लिए दिए गये निर्देशों को लागू करने की मांग की गई थी।

न्यायालय ने कहा कि महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) मूल्यांकन मापदंड में उनके द्वारा भारतीय सेना के लिए अर्जित उपलब्धियों एवं पदकों को नजरअंदाज किया गया है।

न्यायालय ने कहा कि जिस प्रक्रिया के तहत महिला अधिकारियों का मूल्यांकन किया जाता है उसमें पिछले साल उच्चतम न्यायालय द्वारा सुनाए फैसले में उठायी लैंगिक भेदभाव की चिंता का समाधान नहीं किया गया है।

पिछले साल 17 फरवरी को दिए अहम फैसले में शीर्ष न्यायालय ने निर्देश दिया था कि सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन दिया जाए। न्यायालय ने केंद्र की शारीरिक सीमाओं की दलील को खारिज करते हुए कहा था कि यह ‘‘महिलाओं के खिलाफ लैंगिक भेदभाव’’ है।

न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया था तीन महीनों के भीतर सभी सेवारत एसएससी महिला अधिकारियों के नाम पर स्थायी कमीशन के लिए गौर किया जाए, चाहे उन्हें सेवा में 14 साल से अधिक हो गए हों या चाहे 20 साल।

न्यायालय ने बृहस्पतिवार को दिए फैसले में कहा कि सेना में एसएससी महिला अधिकारियों के लिए एसीआर मूल्यांकन के लिए निर्धारित मापदंड प्रणालीगत भेदभाव है।

पीठ ने कहा, ‘‘एसीआर मूल्यांकन प्रक्रिया से ही यह पता चलता है कि इसमें खामी है और हम इसे अनुचित तथा मनमाना ठहराते हैं।’’

न्यायालय ने कहा, ‘‘जिन महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन नहीं दिया गया है वे हमारे पास चैरिटी के लिए नहीं, बल्कि अपने अधिकारों के लिए आयी हैं।

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Web Title: Army's process to award permanent commission to women officers is discriminatory: Court

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