हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं देने के लिए अदालत में अर्जी

By भाषा | Updated: December 3, 2021 17:02 IST2021-12-03T17:02:57+5:302021-12-03T17:02:57+5:30

Appeal to court not to allow same-sex marriage under Hindu Marriage Act | हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं देने के लिए अदालत में अर्जी

हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं देने के लिए अदालत में अर्जी

नयी दिल्ली, तीन दिसंबर दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष शुक्रवार को दायर एक अर्जी में अनुरोध किया गया है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि हिंदू धर्म में अनंत काल से केवल एक पुरुष और महिला के बीच विवाह बंधन की अनुमति है।

इस अर्जी में तर्क दिया गया है कि प्रथागत कानून में समलैंगिक विवाह को शामिल करने जैसे बदलाव उन विवाहों में बहुत आसान, सुविधाजनक और व्यावहारिक होते हैं जो जीवनसाथियों के बीच एक प्रकार के अनुबंध होते हैं, क्योंकि उनका धर्म से खास संबंध नहीं होता और उनकी प्रकृति अधिक सामान्य होती है।

इसमें कहा गया, ‘‘हिंदुओं जैसे समाजों में वैवाहिक बंधन उनके धर्म का हिस्सा होते हैं, जो धार्मिक ग्रंथों के साथ-साथ उनकी दैवीय संस्थाओं से उत्पन्न होते हैं एवं उनसे संबंधित होते हैं और इसी लिए उनके अहम भावनात्मक मूल्य होते हैं।’’

मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने ‘सेवा न्याय उत्थान फाउंडेशन’ की इस अर्जी को तीन फरवरी के लिए सूचीबद्ध किया, जिसमें समलैंगिक विवाहों की मान्यता संबंधी मुख्य याचिका में पक्षकार बनाए जाने और उसका पक्ष भी सुनने का अनुरोध किया गया है। तीन फरवरी को इस संबंधी याचिकाओं के समूह पर सुनवाई की जाएगी।

अर्जी में कहा गया है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह की स्वीकृति दिए जाने की याचिका न केवल हिंदू विवाह की धार्मिक प्रणाली के खिलाफ है, बल्कि यह अकारण अचानक बदलाव लाए जाने का कृत्य है और यह परिवर्तन उस हिंदू समाज की विरासत एवं धार्मिक पारिस्थितिकी तंत्र जैसे अन्य पहलुओं को प्रभावित करेगा, जो धार्मिक 'विवाह के संस्कार' पर अत्यंत निर्भर हैं।

संजीव नेवाड़ और स्वाति गोयल शर्मा के जरिए दायर अर्जी में संगठन ने कहा कि ऐसे विवाहों को या तो विशेष विवाह अधिनियम जैसे धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत पंजीकृत किया जाना चाहिए या मुस्लिम विवाह कानून और सिख आनंद विवाह अधिनियम जैसे सभी धार्मिक कानूनों के तहत इसकी अनुमति दी जानी चाहिए और इसे धार्मिक आधार पर तटस्थ बनाया जाना चाहिए।

इस संगगठन के लिए अधिवक्ता शशांक शेखर झा द्वारा दाखिल इस अर्जी में कहा गया है, ‘‘वेदों के अनुसार, विवाह केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच होता है, ताकि वे अपने सांसारिक एवं धार्मिक कर्तव्यों का निर्वहन करें। दरअसल, हिंदू विवाह के दौरान या विवाह की रस्म का वर्णन करते हुए जिन वेद मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, उनमें से अधिकतर मंत्र एक जैविक पुरुष और एक जैविक महिला का उल्लेख करते हैं। यह प्रथा अनादि काल से लगभग सभी हिंदू संप्रदायों में बिना किसी भिन्नता के विद्यमान है।’’

यह अर्जी समलैंगिक विवाह से संबंधित अभिजीत अय्यर मित्रा की लंबित याचिका के मद्देनजर दायर की गई है, जिसमें दावा किया गया है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा सहमति से किए गए समलैंगिक कार्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने के बावजूद समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह संभव नहीं है और इसमें हिंदू विवाह कानून (एचएमए) और विशेष विवाह कानून (एसएमए) के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की घोषणा किए जाने का अनुरोध किया गया है।

संगठन ने अर्जी में कहा है कि हिंदू धर्म के अनुसार, विवाह एक अनुबंध नहीं है, बल्कि एक धार्मिक कार्य है और एचएमए के साथ छेड़छाड़ करने का कोई भी ऐसा प्रयास, जो हिंदुओं की सदियों पुरानी हानिरहित मान्यताओं को प्रभावित करता है, वह संविधान द्वारा दिए गए हिंदुओं के धार्मिक अधिकारों में धर्मनिरपेक्ष सरकार का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप होगा।

मुख्य याचिका में, केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह का इस आधार पर विरोध किया है कि भारत में विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है बल्कि यह जैविक पुरुष और महिला के बीच एक संस्था है। उसने कहा है कि न्यायिक हस्तक्षेप ‘‘व्यक्तिगत कानूनों के नाजुक संतुलन को पूरी तरह बिगाड़’’ देगा।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: Appeal to court not to allow same-sex marriage under Hindu Marriage Act

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे